एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, ताकि किसी से अन्याय न हो

एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, ताकि किसी से अन्याय न हो

कोई आपके खिलाफ झूठी शिकायत कर देता है और उसकी सच्चाई की जांच के बिना ही आपको गिरफ्तार कर लिया जाए  और आपकी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया जाए। आपने किसी का रेप किया भी न हो और आपको
सिर्फ शिकायत के आधार पर गिरफ्तार कर लिया जाए, आपकी प्रताडऩा की जाए। या फिर आप पर चोरी का
झूठा आरोप लगाकर लोग आपको मारने लगे और आपकी मौत हो जाए। फिर जांच करने के बाद पता चले कि आप तो निर्दोश हैं। इस बात एक आम आदमी के केस के तौर पर देखें। वह दलित भी हो सकता है और स्वर्ण भी
हो सकता है। दहेज प्रताडऩा, यौन उत्पीडऩ के मामले ज्यादातर जांच के बाद झूठे ही साबित होते हैं। तलाक लेने
के लिए पति अपना केस मजबूत बनाने के लिए वकील की मदद से पत्नी पर कई झूठे आरोप लगाता है और पत्नी भी अपने पति से छुटकारा पाने से लिए की तरह के हतकंडे अपनाती है। ऐसा ही चल रहा है। लेकिन जांच के बाद जब सच्चाई सामने आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। निर्दोष का आत्मसम्मान मिट्टी में मिला दिया गया होता है। झूठी शिकायतों का मकसद ऐसा ही होता है। हम इन मामलों को किसी दलित-स्वर्ण के साथ नहीं जोड़ेंगे।
अन्याय किसी के साथ भी नहीं होना चाहिए, सभी को न्याय मिलना चाहिए। जांच करने के बाद यदि सच्चाई सामने आती है तो दोषी को सजा मिलनी ही चाहिए। अपराध के मामले में किसी को छूट तो किसी को सजा नहीं
मिलनी चाहिए। न्याय होना चाहिए।  ऐसा पाया गया कि एससी/एसटी एक्ट की आड़ में कुछ असमाजिक तत्व ब्लैकमेल करने के लिए झूठे केस दर्ज करवा देते हैं। पुलिस की कथित मिलीभगत से समझौते के तह सौदा तय होता है और रुपए ऐंठने के बाद मामला रफा-दफा करवा दिया जाता है। 70 प्रतिशत मामले झूठे ही पाए गए, न्याय मिलने से ज्यादा कानून का दुरुपयोग करके एक वर्ग विशेष के साथ अन्याय हो रहा था। सभी बुद्धिजीवियों का फर्ज  है कि इस मामले को न्याय से देखा जाए ताकि किसी के साथ भी अन्याय न हो।

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