एक चेरिटेबल अस्पताल की मौत
एक चेरिटेबल अस्पताल की मौत बात आज से 20 साल पहले की है। मेरे शहर के बीचों-बीच एक चैरिटेबल अस्पताल बना था। दानी सज्जनों ने इस के लिए बहुत कुछ दान दिया। कमरे, जैनरेटर आदि के लिए धनवानों ने दान दिया और यह एक भव्य अस्पताल बन कर उभरा। मैं बात कर रहा हूं 20 साल पहले कि जब मैं पहली बार यहां गया तो यहां कि सुविधाओं और मरीजों का विश्वास देखकर मन में प्रबंधकों के प्रति व दानियों के प्रति मन में श्र्द्धा भर आई। मेरे कान में बचपन से इंफैक्शन थी सो मैंने यहीं से अपने कान का आप्रेशन करवाने का फैसला किया। इस अस्पताल में उस समय हर रोज 2500 से अधिक मरीज आते थे और लगभग सभी बैड मरीजों से भरे रहते थे। बहुत ही चहल पहल रहती थी। शहर के काबिल डाक्टर यहां अपनी सेवाएं देने के लाइन में खड़े रहते थे। मेरा आप्रेशन हुआ और मुझे कमरा दे दिया गया। इस अस्पताल के बारे में जो मेरे मन में श्रद्दा थी वह उड़ने में देर न लगी। प्रबंधकों ने ऐसी कुछ नर्सें भर्ती की रखीं थी जिन्हें पता ही नहीं था कि टीका कैसे लगाना है, मरीज से बात कैसे करनी है। मेरे कमरे में नर्स आई और बहुत ही गलत व्यवहार से बोली की दवाइयां दो टीका लगाना