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Showing posts from January, 2018

आप बन सकते हैं करोड़पति जानिए कैसे

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  आप बन सकते हैं करोड़पति जानिए कैसे आप भी करोड़ों में खेल सकते हैं। धनवान हो सकते हैं। इसके लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।  आपने देखा होगा कि बहुत सारे लोग दरिद्रता में जीवन जी रहे हैं। कभी आपने उनके बीच जाकर देखा कि उनकी दरिद्रता के  मुख्य कारण कारण क्या हैं वे लोग धनवान क्यों नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि वे मेहनत नहीं करते पर फिर भी उनके पास पैसा नहीं है। आईए हम बताते हैं आपको धनवान कैसे बनना है। सबसे पहले आपके  सपने होने चाहिएं और उन सपनों को को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। कोई बात नहीं आप धनवान नहीं हो सके तो कोई गिला नहीं पर आप अपनी संतान को धनवान बनने के गुर सिखा सकते हैं। आप विद्या अर्जित करें जितना हो सके महान लोगों के विचार सुनते पढ़ते रहें। घर में सफाई रखें, ऊंची आवाज में बात न करें, ऊंची आवाज में गाने आदि न चलाएं, घर में टूटा सामान न रखें, सदा ईश्वर में विश्वास रखें क्योंकि यह आपको गिरने नहीं देगा, घर में तारें बिखरने न दें, पत्नी पर कभी हाथ न उठाएं, उसका आदर करें, मंदिर जरूर जाएं, धर्म ग्रंथों का मनन करें, पानी की बर्बादी न करें, किसी के साथ फालतु न बैठें, नश

धर्म और आध्यामिक्ता क्या है इसमें क्या अंतर है

धर्म और आध्यामिक्ता क्या है इसमें क्या अंतर है आज कल विदेशों व भारत में एक नई जमात ने जन्म लिया है वह है आध्यात्मिकता। इसे स्प्रीचुल कह सकते हैं। इस विचारधारा पर चलने वाले लोग कहते हैं कि हम किसी धर्म विशेष को नहीं मानते और न ही नकारते हैं। हम सिर्फ आध्यात्मिक हैं। हम किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़े। इनके प्रमुख भी ऊपर से ऐसा ही कहते दिखते हैं। वे कहते हैं कि हम आध्यात्मिकता सिखाते हैं और किसी धर्म का प्रचार नहीं करते। ये कहते हैं कि सभी धर्म एक से हैं और सभी हमें परमात्मा तक पहुंचाते हैं। सारी संसार माया है और इस माया के बंधन से मुक्त होना है। यही आध्यात्मिक इतने पदार्थवादी हैं कि जब अपने पर बात आती है तो ये लोग महंगे वस्त्र पहनते हैं, अच्छी चीज खरीदने के लिए 10 जगह मोल भाव करते हैं। अपने लिए सबसे बढिय़ा चीज की अपेक्षा करते हैं। अपने बच्चों को सबसे बढिय़ा स्कूलों में भेजते हैं। उस समय ये भूल जाते हैं कि सब कुछ तो परमात्मा का ही है,किसी में कोई अंतर नहीं, ये तो सबकुछ यहीं रह जाना है। लेकिन यदि उन्हें कोई कहे कि आपके धर्म पर आक्रमण हो रहा है, लोग भूख से मर रहे हैं तो ये लोग परमात्मा क

किसी भी विचारधारा से सहमति, असहमति क्या स्वाभाविक है?

किसी भी विचारधारा से सहमति, असहमति क्या स्वाभाविक है? मेरे एक परम मित्र मुझसे इस बात से नाराज हो गए कि मैं उनकी विचारधारा या मत से सहमत नहीं हूं। वे कहते कि ईश्वर एक है और वह निराकार है। इसके लिए वह धर्म ग्रंथों का अपने नजरिए से  अनुवाद करके अनेकों उदाहरण देते हैं और मेरे पर दबाव डालते हैं कि मैं भी इसे मानू क्योंकि उनके अनुसार यही परम सत्य है। मैं उनसे असहमत होता हूं तो वह क्रोधित हो जाते हैं और कई दिनों तक नाराज रहते हैं और मुझे बुलाते तक नहीं। वह मेरी असहमति का आदर नहीं करते। वह मेरे क्या विचार हैं सुनने को भी तैयार नहीं हैं। विचारों का खुले दिल से आदान-प्रदान होना चाहिए। जिन बातों पर असहमति हो उन्हें एक तरफ कर देना चाहिए और जिन पर सहमति है उनपर एकसारता से चर्चा करनी चाहिए। इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आप अपने विचार तो पेश करें लेकिन ये कोशिश न हो कि दूसरे के विश्वास को ठेस पहुंचे। मसलन मैं कहता हूं कि ईश्वर नहीं है या साकार है तो दूसरे पक्ष को चाहिए वह इसका आदर करे मेरे विश्वास को गलत या झूठ बताने का प्रयास न करे। इस विषय पर डिबेट होती है तो इसमें भी ध्यान रखा जाए। मुझे याद

क्या भारत के और टुकड़े होंगे?

क्या भारत के और टुकड़े होंगे? आज टीवी चैनलों व सोशल मीडिया पर कुछ मुस्लिम नेता भारत में रहते मुस्लमानों के लिए एक और अलग देश की मांग करते कि रहे हैं। वे कह रहे हैं कि 1947 मे भी मुसलमान 17 करोड़ थे और उन्होंने अलग देश पाकिस्तान व बंगलादेश के रूप में बना लिया था। अब दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें भारत में अलग देश बनाने से नहीं रोक सकती। वे यह नहीं कहते कि वे पाकिस्तान या बंगलादेश चले जाएंगे। वे यहीं पर एक और अलग देश बनाने की मांग करेंगे। अब कुछ लिबरल गैंग कहेंगे कि उनकी मांग उचित है हम 20 करोड़ मुसलमानों की आवाज नहीं दबा नहीं सकते यदि वे अलग देश की मांग करते हैं तो यह उनका हक है और इसी मांग को अगले 2019 के चुनाव में मुद्दा भी बनाया जाएगा। अलग देश के नाम पर 95 प्रतिशत मुस्लिम एक जगह वोट देंगे और यह राजनीतिक उठा पटक के लिए काफी है। 1947 में भी लगभग ऐसा ही हुआ था। इस मुद्दे पर अधिक से अधिक मुस्लिम संसद तक कूच करेंगे और किसी भी राजनीतिक पार्टी का भविष्य तय करेंगे। रूस भी इसी कारण टूटा था। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है विश्व में अब भारत ऐसा देश है जिसमें मुस्लिम आबादी दूसरे नम्बर पर है। पा

समझदार मूर्ख राजा, मूर्ख समझदार प्रजा व तख्तापलट

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समझदार मूर्ख राजा, मूर्ख समझदार प्रजा व तख्तापलट एक देश में एक राजा राज करता था। वह पढ़ा-लिखा, दयालु व बहुत ही समझदार था। जनता भी जैसा वह कहता वैसा करती थी। एक दिन उसने जनता को कहा कि उसके देश की जनसंख्या बहुत बढ़ गई है और अन्न व रोजगार लोगों को नहीं मिल पा रहा इसलिए जिनके ज्यादा बच्चे हैं वे उन्हें देश से बाहर कर दें या जहर देकर मार दें। यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उसे अपने बच्चे दे दें वह उन्हें कारागार में डाल देगा। इससे कुछ बीमारी से मर जाएंगे और कुछ भूख से। कुछ जो बच जाएंगे उन्हें दूसरे देश से लड़ाने के लिए सैनिक बना देंगे। जनता ने वैसा ही किया किया जैसा राजा ने बताया था। कुछ लोग चालाक थे उन्होंने ऐसा नहीं किया किसी भी तरह अपने बच्चों को छिपा लिया, कुछ को विदेश भेज दिया और राजा के अधिकारियों को पैसा देकर उन्हें पटा लिया। कुछ सालों के बाद राजा के देश में जनसंख्या कम हो गई। राजा बहुत खुश हुआ कि अब सब को काम मिलेगा और अन्न मिलेगा। इसने देश में रोजगार पैदा किए, अन्न से लोगों का पेट भरने लगा। छोटी-छोटी झोंपडिय़ों में रहने वाले लोग बड़े मकानों में रहने लगे। खूब धन आने लगा। पड़ोसी

भारतीय धार्मिक परम्पराएं व इब्रहामिक परम्पराओं में क्या अंतर हैं

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भारतीय धार्मिक परम्पराएं व इब्रहामिक परम्पराओं में क्या अंतर हैं भारतीय धार्मिक परम्पराएं वे हैं जो हजारों सालों से भारतवर्ष के जीवन मूल्यों,जीवन शैली व धर्म आदि से प्रत्यक्ष का परोक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं। ये भारतीय जनमानस के जीवन पर असर भी डालती हैं। ये परम्पराएं किसी तरह से कोई कमरे, फ्रेम या किसी जगह तक सीमित नहीं हैं। हम आपको बहुत ही आसान तरीके से बताएंगे कि इब्रहामिक रिलीजनों के लोगों को का माइंटसेट कैसे है। कुछ वर्ष पहले मैं अमेरिका में रेलगाड़ी में सफर कर रहा था। यूं ही साथ में बैठी एक महिला से से वार्तालाप शुरू हो गई। उसने पूछा कि आपका धर्म क्या है तो मैंने बताया कि मैं भारतवासी हूं और मेरा धर्म सनातन हिंदू जिसे वैदिक भी कहते हैं, है। इसके बाद उसने अगला प्रश्न किया कि आपकी धाॢमक किताब, ईश्वर का संदेश देने वाला या ईश्वर का पुत्र या संदेशवाहक कौन है। मैंने उत्तर दिया हमारी धार्मिक पुस्तकें वैसे तो 4 वेद हैं लेकिन इसके इलावा हजारों पुस्तकें हैं जिनका हम मनन अनुसरण अपने सम्प्रदाय के अनुसार करते हैं। हमारा कोई एक मैसेंजर नहीं हमारे हजारों संत महापुरुष,देवी-देवता हैं जिनका हम

कासगंज हिंसा-क्या मरने वाले युवा गली के गुंडे थे

कासगंज हिंसा-क्या मरने वाले युवा गली के गुंडे थे उत्तर प्रदेश में गणतंत्र दिवस पर तिरंगा यात्रा निकालने वालों का एक वीडियो मीडिया में बार-बार चलाया जा रहा है। इस वीडियो को ऐसे चलाया जा रहा है कि देखने वाला एक वर्ग यह समझे कि उनके साथ जो कुछ हुआ ठीक हुआ। ऐसे कमैंटरी की जा रही थी कि वाहनों पर सवार निहत्थे युवक तिरंगा लगाकर जैसे किसी पर हमला करने जा रहे हों। एक चैनल तो यहां तक कह रहा था कि देखिए कि ये चीनी टोपी व पश्चिमी परिधान पहना युवक क्या तिरंगा यात्रा निकाल रहा है या कुछ और करने जा रहा है। मीडिया ने यह नहीं दिखाया कि हमलावरों ने पहले से कैसे से तैयारी की हुई थी। कहां से गोली चली और हमलावरों ने पत्थरबाजी कैसे की। जो लोग चंदन की मौत खुश थे और इसे एक जीत मान रहे हैं,ये वीडियो उनके लिए है। देखो एक हीरो बनने जा रहे युवक को कैसे मार गिराया। किसी ने भी यह नहीं दिखाया या कि हमलावर कौन थे और उनकी पृष्टि भूमि क्या थी। मरने और मारने वालों का धर्म क्या था। रेलगाड़ी में हुई लड़ाई के बाद तुरंत मीडिया को पता चल गया था जुनेद किस धर्म का था और अवार्ड वापसी गिरोह सक्रिय हो गया था। मीडिया व

शुक्र ग्रह क्या है और इसके क्या प्रभाव हैं

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शुक्र ग्रह क्या है और इसके क्या प्रभाव हैं शुक्र ग्रह वृष एवम तुला राशि का स्वामी है। कुंडली में यह दूसरे व सातवें भाव का मालिक है। यह सधारणयता राशि चक्र 13 माह में पूरा करता है। 18 महीनों में 40 दिन तक यह वक्रीय ही रहता है। इस समय में भावनात्मक गड़बड़, उत्तेजना में उतार-चढ़ाव ,लड़़ाई-झगड़ा, वियोग-विद्रोह, विरह, अलगाव,स्थाई तबादला तथा रिश्तों में पक्का बिगाड़ होने की सम्भावना होती है। यह सूर्य के ईर्द-गिर्द 48 अंश के बीच रहता है। सूर्य के ईर्द-गिर्द घूमने में लगभग 225 दिन लेता है। यह अन्य ग्रहों से अधिक चमकदार दिखाई देता है। बुध के साथ अथवा यह शुभ हो तो यह ललित कला, चित्रकला, वा्चन कला आदि में प्रवीणता देता है। प्रेम-प्यार, घर सुख,पत्नी सुख, मनमोहक मुखड़ा, उत्तम भाषा शैली, मिलनसार स्वभाव, बढिय़ा, सुंदर कपड़े पहनने का शौकीन व वाहन प्रदान करता है। यदि शुक्र निर्बल हो तो हल्कापन, अपशब्द बोलने वाला तथा कई प्रकार के अवगुण प्रदान करने वाला होता है। यह पाप ग्रह के साथ अथवा नेगेटिव हो तो अशुभ फल देता है।  सूर्य के साथ इसकी मित्रता नहीं हो सकती, शुक्र जब तक शनि के कार्यों से दूर रहेगा ने

महान लेखक, चिंतक, मनोविज्ञानिक, दार्शनिक राजीव मल्हौत्रा से मैं कैसे मिला

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www.bhrigupandit.com महान लेखक, चिंतक, मनोविज्ञानिक, दार्शनिक राजीव मल्हौत्रा से मैं कैसे मिला सन 2006 में मैंने अपने घर में वाईफाई इंटरनेट लगाया था। क्योंकि मैं ज् योतिष,धर्म व दर्शन के बारे में ज्ञान अर्जित करना चाहता था। ज्योतिष को मैं प्रोफैशनल तौर 1999 में ही अपना चुका था लेकिन आय न होने के कारण मुझे नौकरी करनी पड़ रही थी। थोड़ा- थोड़ा इनवैस्ट करना पड़ता और काम जारी रखना पड़ता। बीच में वैब साइट का काम चलता रहता था। इंटरनेट को खंगालना जारी रहती। यूट्यूब पर विचारों को सुनता रहता। एक दिन मुझे एक वीडियो मिला जिसमें राजीव जी अंग्रेजी में सम्बोधित कर रहे थे। वीडियो की क्वालिटी बडिय़ा नहीं थी। मैंने शुरू में सुना और फिर वीडियो को नहीं देखा। दिमाग में एक तरह का घमंड भी था कि मैं ज्यादा जानता हूं। मैंने जितना अध्ययन किया है, इसने क्या किया होगा। यह क्या जानता होगा। ऐसे कुछ दिन बीत गए। कुछ दिन बाद राजीव जी का एक हिन्दी वीडियो हम कौन हैं-विभिन्नता बारे था,सामने आया। अमेरिका में हिन्दी परिवार के सदस्य दविन्द्र सिंह उनका परिचय दे रहे थे कि कैसे इस महापुरूष ने इस क्षेत्र में कदम रखा। कई कम्

ईश्वर क्या है और इसका स्वरूप क्या है?

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ईश्वर क्या है और  इसका स्वरूप क्या है? पूरे विश्व में इस बारे में हर कोई आज भी यह प्रश्न पूछता है ईश्वर क्या है और इसका स्वरूप क्या है? कोई कहता है कि ईश्वर निराकार है, कोई साकार रूप को मानता है। कोई नास्तिक है जो ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है। कोई यह दावा करता है कि वह एक है और कहीं दूर किसी सातवें आसमान में रहता है। हर कोई अपनी-अपनी बुद्धि व धर्म ग्रंथों का हवाला देकर या अपने फ्रेम में  उसे ढाल कर इसकी व्याख्या करता है। ईश्वर है या नहीं ये हमेशा विवाद का विषय भी बनता रहा है जो कि नहीं होना ेचाहिए। एक दूसरे के विश्वास आदमी नकारता है और उसका पुरजोर विरोध भी करता है जो उससे सहमत नहीं होता तो उससे दूरियां भी बना लेता है। ईश्वर को हम किसी एक परिभाषा में नहीं बांध सक ते। क्या ईश्वर के  पास कोई फार्मूला है कि उसने एक ही रहना है अनेक नहीं होना,उसने निराकार ही रहना है या मूर्तिमान नहीं होना या व शून्य नहीं हो सकता या सबकुछ भी नहीं हो सकता। क्या उसे मानव की सोच के अनुसार ही होना होगा? वह कहता है कि निराकार है तो वैसा ही हो। मानव गणना करता है, मापता-तोलता है,गर्मी सर्दी महसूस करता है, उसे

कासगंज घटना के बाद चौकन्ना रहने की जरूरत

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कासगंज घटना के बाद चौकन्ना रहने की जरूरत कांसगंज की घटना ने देश के राष्ट्रवादियों को झकजोर कर रख दिया है। इस हमले में 2  निर्दोश युवकों के शहीद होने से लोग सन्न रह गए। बिकाऊ मीडिया ने भी इस घटना को बेचने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। हर चैनल में यह हैडलाइन थी कि 2 पक्षों में हुई पत्थरबाजी व झड़प। क्या तिरंगा यात्रा निकालने वालों ने वहां रह रहे या निकल रहे लोगों पर हमला किया था? नहीं ऐसा नहीं हुआ वहां उनपर गोलियां चलाई गईं व पत्थरबाजी की गई। ये घटना उसी तरह की है जिस तरह कश्मीर में भटके नौजवान सुनियोजित तरीके  से  सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करते हैं। लेकिन यात्रा निकालने वालों  को जरा सी भी भनक नहीं थी कि उनके साथ अगले मोड़ पर क्या होने वाला है। यदि उन्हें पता होता तो वे उस क्षेत्र में जाते ही क्यों? उन्हें तो यह था कि लोग उन पर फूलों की बारिश करेंगे। पत्थरबाजों व गोलियां चलाने वालों से पहले वहां हमले का सामान जमा हो चुका था। अब जो होना था वह हो गया जो मारे गए वे बच्चे वापस नहीं आ सकेंगे। नेता लोग अपनी रोटियां सेंक कर चले जाएंगे। आरोपियों पर सालों केस चलेगा। इस दौरान गवाह मुकर जाएं

केन्द्रीय विद्यालयों में प्रार्थना क्या एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है?

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www.bhrigupandit.com केन्द्रीय विद्यालयों में प्रार्थना क्या एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है? आजकल देश में एक  बहस हो रही है कि केन्द्रीय विद्यालयों में करवाई जा रही प्रार्थना एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है। इसे बंद करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाली गई है और सुप्रीम कोर्ट ने भी तुरंत इस मामले में केन्द्र सरकार से जबाव मांगा है। ये वही अदालत है जो कहती है कि हिदुत्व एक जीवन पद्धति है। एक छोटा सा देश था। उस देश के वासी अपनी भाषाओं में बात करते थे। अपने धर्म का पालन करते थे। उनका खान-पान पहरावा, भाषा अलग-अलग जरूर थी लेकिन वे फिर भी जमीनी स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए थे। फिर अरब देश से हमलावर आए और अपने साथ भाषा,,खान-पान वे अपना रिलीजन भी लाए। उसे देश के करोड़ो लोगों को अपने साथ शामिल कर लिया और वापस नहीं गए यहीं बस गए। उन्होंने उस देश की संस्कृति, भाषा, धर्म को रिजैक्ट कर दिया और अपना उनपर थोप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी संख्या के बल पर देशके अलग टुकड़े भी कर लिए। अब इस गुलाम रहे देश में जो लोग अपनी भाषा, धर्म व पहरावा पहनते थे उस पर भी उंगली उठने लगी कि इससे कुछ ल

तुम न आए प्रीतम, मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए

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तुम न आए प्रीतम, मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए मैंने आंखों पे काजल, माथे पे टीका, गालों पे लाली लगाई थी, आइना बार-बार देखा,बालों पे कंघी फिराई थी, माला मोतियों की वक्ष पर मैं देख-देख मुस्कराई थी। प्रीतम तुम आ जाते, प्रीतम तुम नहीं आए , मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए। मैं तुम्हारे प्रेम की प्यासी, एक नजर तो देख लेते, मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता, मेरी नसों में रवानी होती, तुम क्यों न आए, क्यों इंतजार करवाया। प्रीतम आ जाओ इकबार, बस बाहों में भर लेना, चूम लेना मुझको, इन अधरों के रस पी लेना, मैं अपना मन हल्का कर लूंगी, प्यार तुम्हारे को आंचल में भर लूंगी, पीया आ जाओ न इकबार बस इकबार। कामाग्नि में मैं जलकर अंगार हो रही हूं, प्रेम तुम्हारा पाने को बेताब हो रही हूं, तुम मेरे कामदेव बन ऐसा खेल खेल जाते, जन्मों की मेरी तन मन की प्यास बुझा जाते। मेरा जिस्म मिट्टी न हो जाए, तुम आ जाते इकबार ुपर प्रीतम तुम नहीं आए , मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए।

क्या दलित हमेशा से ही दबे,कुचले व शोषित रहे?

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www.bhrigupandit.com क्या दलित हमेशा से ही दबे,कुचले व शोषित रहे? आज जहन में एक प्रश्न उठता है कि क्या दलित हमेशा दबे कुचले व शोषित ही रहे? आज हम इस फैलाए गए भ्रम की विवेचना करते हैं। जब से यह सृष्टि बनी पहले काला आया या गोरा, पहले स्वर्ण आए या दलित। पहले पुरुष आया या नारि। हम सिर्फ मानव की बात करेंगे। सभी कहेंगे कि सिर्फ मानव ही आया पहले न तो कर गोरा न ही काला, दलित या स्वर्ण। जब सब एक साथ आए तो क्या एक ही पक्ष का मानव सदा शोषित व प्रताडि़त होता रहा? कहने का मतलब आज जो लोग अपने आप को दलित कहते हैं क्या वे जब से सृष्टि बनी प्रताडि़त व शोषित होने का प्रमाणपत्र लेकर पैदा हुए थे या भगवान ने उन्हें कहा था कि हमेशा के लिए दलित व प्रताडि़त ही रहो। ऐसा बिल्कु ल भी नहीं है। जो आज स्वयं को दलित कहते हैं उनका इतिहास इतना गौरवशाली रहा है कि यदि उन्हें यह बताया जाए तो  वे अपने पूर्वजों गर्व करेंगे। लेकिन प्रताडऩा के साथ अन्य वर्गों के खिलाफ उनके दिमागों में पूरी तरह से नफरत भर कर राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं। आइए जरा दलितों के गौरवमई इतिहास पर नजर डालते हैं।  भगवान कृष्ण यदुवंशी थे। यादव आज

चंद्र ग्रहण पर 31 जनवरी को लगेगा, पढि़ए क्या करें क्या न करें

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www.bhrigupandit.com चंद्र ग्रहण पर 31 जनवरी को लगेगा, पढि़ए क्या करें क्या न करें ग्रहण के पूर्व व इस दौरान हमें लोगों के फोन आते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना। शास्त्रों के अनुसार इसके क्या लाभ हैं और क्या नुक्सान हैं। गर्भवति महिलाएं भी अपने होने वाले बच्चों के बारे में पूछती हैं कि उन्हें ग्रहण के दौरान किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यह भी पूछा जाता है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। शारीरिक संबंध बनाने चाहिए या नहीं। पूजा करनी चाहिए कि नहीं। सूतक क्या होता है इत्यादि। उनकी सभी जिज्ञासाओं का समाधान करने के लिए हमनें ग्रहण के बारे में शास्त्र सम्वत जानकारियां लोगों तक पहुंचाने का प्रबंध किया है। इस लेखको पढ़ कर सभी लोगों के ग्रहण संबंधी जिज्ञासा दूर होगी। साल 2018 में दो चंद्र ग्रहण लगेंगे। पहला चंद्र ग्रहण 31 जनवरी 2018 को दिखाई देगा जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 27-28 जुलाई 2018 में होगा। ये दोनों पूर्ण चंद्र ग्रहण होंगे और भारत सहित अन्य देशों में दिखाई देंगे। इसकी शुरुआत 31 जनवरी को दोपहर 04.21 से होगी और समापन रात्रि 09.38 पर होगा। ग्रहण  के दौरान कुछ कार

दावोस में प्रधानमंत्री ने हिन्दी में भाषण क्यों दिया,शाहरूख खान ने मोदी बारे क्या कहा

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दावोस में प्रधानमंत्री ने हिन्दी में भाषण क्यों दिया दावोस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दी में अपना भाषण क्यों दिया जबकि वहां पर मौजूद लगभग 95 प्रतिशत लोगों को हिन्दी समझ नहीं आती है। पीएम मोदी ने अपना भाषण वहां मौजूद लोगों के लिए नहीं दिया था। उन्होंने अपना भाषण भारत के सवा सौ करोड़ लोगों को दिया। वे दावोस में सम्बोधित जरूर कर रहे थे लेकिन वे अपने भारतवासियों को दिल की बात कह रहे थे। वैश्वीकरण, व्यापार व आतंकवाद पर उनका विशेष फोकस था। आज भारत विकासशील देशों से आगे निकल रहा है। 2018 में भारत जीडीपी मामले में चीन को पछाड़ देगा। आतंकवाद में मोदी जी ने एक विशेष बात कही कि गुड टेररिज्म और बैड टैररिज्म वाली परिभाषा छोड़कर रह किस्स के आतंकवाद को खत्म करना होगा। आपको याद होगा की भारत के आजाद होने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजी में अपना भाषण दिया था। इस भाषण को समझने वाले उस समय एक प्रतिशत भी भारतीय नहीं थे। ये भाषण उन्होंने भारतीयों के लिए नहीं उन शासकों के लिए पढ़ा था जो उन्हें सत्ता सौंप रहे थे। चलो शाहरूख खान जो मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने पर देश छोड

फिल्म पद्मावति विवाद क्या है-एक दृष्टिकोण

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फिल्म पद्मावति विवाद क्या है-एक दृष्टिकोण आपको याद होगा कि फ्रांस में एक अखबार के कर्मचारियों को गोलियों से मार दिया गया था क्योंकि अखबार में कुछ कार्टून छापे गए थे। ऐसी घटनाओं से मिलती कई उदाहरणे हैं। कमल हासन अपनी फिल्म विश्वरूपम के लिए आंखों में आंसु लेकर हाथ जोड़कर माफी मांगता नजर आता है लेकिन फिल्म को बैन कर दिया जाता है। इसके बाद यही शख्स हिन्दुओं को आतंकवादी कह कर उसी वर्ग को खुश करता है। इसके बाद सिन्स फिल्म का भी यही हश्र होता है। यूरोप में को एक डायरैक्चर की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी जाती है कि उस पर आरोप था कि उसने एक धर्म के विरोध में फिल्म बनाई थी। महारानी पद्मावति राजस्थान ही नहीं पूरे भारत का गौरव है। राजस्थान में तो बच्चा-बच्चा रानी पद्मावति की वीर गाथाओं परिचित है। यह उसी तरह है जैसे रानी लक्ष्मी बाई का नाम हर भारतीय आदर से लेता है। अब आप देखेंगे कि कोई भी मीडिया वाला इसका विरोध नहीं कर रहा क्योंकि उसे लगातार इस फिल्म के विज्ञापन मिल रहे हैं। मीडिया वाले इसका विरोध करने वाली करणी सेना को एक गुंडा तत्व के रूप में पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। करणी सेना उन राष्

भारत विखंडन, नक्सलवाद, अलगाववाद व नफरत की विचारधाओं कहां से पैदा होती हैं

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भारत विखंडन, नक्सलवाद, अलगाववाद व नफरत की विचारधाओं कहां से पैदा होती हैं भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था ऐसी बन चुकी है कि यह अब छोटे-छोटो टुकड़ों में बंटती जा रही है। यह भारत को भीतर से विखंडित कर रही है। कुछ बाहरी शक्तियां भी इसमें शामिल हैं। सुधारवाद, समाजवाद, समानता व अधिकार के भेष में भी भारत विखंडित शक्तियां काम कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर जिन क्षेत्रों में दलितों की संख्या अधिक है वहां से उठे उम्मीदवार उस वर्ग को उच्च वर्ग के खिलाफ भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ता अपने वोट पक्के करने के लिए वह नफरत का जमकर सहारा लेता है। उनको आश्वासन देता है कि आप मुझे जिताओ मैं आपको न्याय दिलाऊंगा। इसी प्रकार जिन क्षेत्रों में जिस वर्ग की जनसंख्या अधिक  है वहां ऐसा फंडा अपनाया जाता है। औवैसी हैदराबाद में अपने वोटरों के बीच कुछ और होते हैं और दिल्ली में आकर उनका मिजाज कुछ और होता है। विरोधियों की पार्टियों में दावतों का आनंद उठाते हैं वहां वह ऐसा भाषण नहीं देते क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं होता। यह तो है विखंडित भारत की एक दो उदाहरणे। लेकिन बड़े स्तर पर भी भारत विखंडित विचारधाराएं हैं जो वि

अमेरिका के मूल निवासियों की तरह विदेशी भारतीयों को क्यों नहीं खत्म कर सके

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www.bhrigupandit.com अमेरिका के मूल निवासियों की तरह विदेशी भारतीयों को क्यों नहीं खत्म कर सके अमेरिका में जब मूल रेड इंडियन का विदेशी हमलावरों के खात्मा कर दिया उनकी जमीनों पर कब्जे कर लिए तो क्या कारण हैटन कि यही विदेशी भारतीयों को नहीं खत्म कर सके। जब विदेशी हमलावरों ने भारत में हमला किया तो उनकी मंशा भारत जो उस समय सोने की चिडिय़ा कहलाता था,को लूटने की थी। वे चाहते थे कि यहां से लूट का माल अपने देशों में ले जाया जाए। भारत के लोग दुनिया के एक नम्बर के बढिय़ा कारिगर थे। लोहे व जिंक को ढालकर बढिय़ा हथियार पूरी दुनिया को यहीं से सप्लाई होते थे। सिल्क में भी इनका जबाब नहीं था। सिल्क विदेशों में सोने से महंगा बिकता था। भवन व वास्तु कला में भी भारतीय कारिगरों का कोई मुकाबला नहीं था। आभूषणों ,हीरें आदि की नक्काशी में निपुण थे। यह कालाएं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती थी। जब दुनिया के लोग पढऩा भी नहीं जानते थे तो यहां के लोग वेदों के ज्ञाता थे। ज्योतिष, आयुर्वेद व योग में यहां के लोग दक्ष थे। अरबी हमलावरों ने यहां आकर अपना धर्म फैलाने व यहां के लोगों का धर्मपरिवर्तन करवाने के लिए उनका

कोलम्बस ने अमेरिका को खोजा नहीं था, आक्रमण किया था

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www.bhrigupandit.com कोलम्बस ने अमेरिका को खोजा नहीं था, आक्रमण किया था कोलम्बस के अमेरिका में पहुंचने से पहले वहां के मूल निवासी नेटिव इंडियन हजारों सालों से वहां रह रहे थे। तो क्या उन्होंने अमेरिका को नहीं खोजा था। कोलम्बस ने अमेरिका को खोजा नहीं था ,उसने वहां आक्रमण करके मूल निवासियों का नरसंहार किया था। अपने संस्मरण में कोलम्बस लिखता है कि किस तरह उन्होंने यातनाएं देकर मूल निवासियों का खात्मा किया था। उस समय अमेरिका के मूल निवासियों की जनसंख्या पूरे यूरोप के समान थी। यूरोप के लोगों ने जब अमेरिका रास्ता अपनाया तो उन्होंने वहां जाकर लूटपाट व नरसंहार ही किया। वे अपने साथ अफ्रीका के काले गुलाम भी लेकर गए थे। आज मूल निवासियों की जनसंख्सा नामात्र ही रह गई है। उनकी तरफ से अमेरिका के निवासियों को पूछने वाला कोई नहीं है कि क्यों उनपर इतने अत्याचार किए गए, क्यों उनका नरसंहार किया गया। कुछ अमेरिकी कहते हैं कि ये मूल लोग बीमारी से मरे। पर ये बीमारियां फैलाने वाले कौन थे। हजारों सालों से तो वे यहां रह रहे थे तब तो वे नहीं मरे। दुनिया को मानवाधिकारों का फाठ पढ़ाने वाला अमेरिका अपने अतीत

मंदिर बनाने क्यों जरूरी हैं और इससे क्या लाभ हैं

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मंदिर बनाने क्यों जरूरी हैं और इससे क्या लाभ हैं आज कुछ विधर्मी लोग मंदिर बनाने का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि मंदिर नहीं बनाने चाहिए। इनके स्थान पर अस्पताल व विद्ययाल आदि बनाने चाहिए। उनकी हां में हमारे भी कुछ मूढ़ बुद्धिजीवि मिलाने लग गए हैं। आइए आज इस कथन की भारतीय दृष्टिकोण से विवेचना करते हैं। एक मंदिर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सैंकड़ों लोगों को रोजगार देता है। जब एक मंदिर का निर्माण होता है तो धर्म प्रचार के लिए भूखंड खरीदा जाता है। उस भूखंड का भूमि पूजन होता है। इस पूजन में पूजा सामग्री व अन्य सामान को दुकान से खरीदा जाता है। ब्राह्मण पूजन करते हैं और उनको रोजगार मिलता है। फिर शुरू होता है मंदिर निर्माण का कार्य बिल्डिंग मैटीरियल,सरिया,सीमैंट, बजरी, मिट्टी, बल्ले आदि दुकानों से खरीदे जाते हैं। फिर मजदूरों व मिस्त्रियों को मंदिर के निर्माण में लगभग 5 साल तक पक्का रोजगार मिल जाता है। पलम्बर, इलैक्टीशियन, पेंटर, तरखान आदि को भी रोजगार मिल जाता है। मीनाकारी करने वाले कारीगरों को अच्छा वेतन मिलता है। जब मंदिर तैयार हो जाता है तो मंदिर में स्थापित करने के लिए भगवान की सुंदर मूर्

inter-faith marriage क्या होती है और इसमें क्या ध्यान में रखना है | what is inter-faith marriage

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इंटर फेथ मैरिज क्या होती है और इसमें क्या ध्यान में रखना है इंटर फेथ मैरिज वह संबंध है जब दो अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग आपस में विवाह करते हैं। भावनाओं में बह कर वे विवाह तो कर लेते हैं लेकिन जब व्यवहारिक रूप से उन्हें सामने आई परेशानियों से जूझना पड़ता है तो इसके भयंकर परिणाम भी सामने आते हैं। हम इसके विरोधी नहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि दोनों पक्षों को विवाह से पहले सभी प्वाइंटों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए । कोई भी प्वाइंट छिपाया नहीं चाहिए। उदाहरण के तौर पर जब एक हिन्दू महिला मुस्लिम लड़के से निकाह करती है तो उसे पता होना चाहिए कि निकाह के बाद उसका धर्म परिवर्तन होगा और इसके बाद उस पर शरिया के कानून लागू होंगे। जैसे उसका शौहर उसे तलाक जब चाहे दे सकता है, वह 4 शादियां कर सकता है, उसे बुर्के में भी रहना पड़ सकता है, उसके होने वाले बच्चों का धर्म भी इस्लाम ही होगा और इनकी शादी इनब्रिडिंग हो सकती है यानि अपने ही रिश्तेदारों में, उसे हलाल खाना होगा जिसमें गोमांस भी शामिल हो सकता है, तलाक होने पर बच्चों पर अधिकार केवल पिता का ही होगा इत्यादि।  मेरे एक लिबरल मित्र ने बड़ी शान स

मंदिर व संत महापुरुष हिन्दुओं की एकता में असफल साबित हुए

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मंदिर व संत महापुरुष हिन्दुओं की एकता में असफल साबित हुए मंदिरों का प्रबंध कमेटियों के अधीन होता है जिसमें हिन्दू पदाधिकारी होते हैं। मंदिरों के कर्ताधत्र्ता होते हैं। यही पुजारियों व कर्मचारियों की नियुक्तियां करते हैं। चढ़े हुए दान इत्यादि का का लेखा-जोखा भी रखते हैं। लेकिन ये लोग धर्म प्रचार कैसे करना है, कैसे लोगों को अपने साथ जोडऩा है, कैसे लोगों के प्रश्नों का उत्तर देना है आदि के बारे में प्रशिक्षित नहीं होते। ज्यादातर सदस्यों को तो संस्कृत या धर्म ग्रंथों का ज्ञान भी नहीं होता। पुजारी भी इस तरह प्रशिक्षित नहीं होते कि धर्म के बारे में लोगों को उचित ज्ञान दे सकें। वे सिर्फ प्रशाद व धार्मिक क्रिया क्लापों तक ही सीमित रहते हैं। विभिन्न मंदिरों के पदाधिकारियों का आपस में तालमेल नहीं होता। अलग-अलग राजनितिक पार्टियों से जुड़े होने के कारण ये एक दूसरे को सहयोग भी नहीं देते। उन्हें यह भी ज्ञान नहीं होता कि उनके क्षेत्र में कितने हिन्दू रह गए हैं। दूसरी तरफ चर्च आदि के कार्य धर्म प्रचार एक कारपोरेट कम्पनी की तरह होता है। वहां प्रचारकों को वेतन दिया जाता है। कैसे घर-घर जाकर प्रचार कर

एक सभ्य समाज में अपराधी तत्व कैसे पनपते हैं

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एक सभ्य समाज में अपराधी तत्व कैसे पनपते हैं एक शहर के हिस्से में धनवान लोग रहते थे। बहुत ही मेहनती, पढ़े लिखे व समझदार लोग थे। जरूरतमंदों की सेवा भी करते थे। धन से धार्मिक कार्य भी मिलकर करते थे। इसी दौरान वहां के लोगों को लूटने के लिए कुछ लुटेरे सक्रिय हो गए। उन्होंने कुछ लोगों को जान से मारने की धमकी दी कि यदि आपने अपने रंगदारी नहीं दी तो वे उनके बच्चों का अपहरण कर लेंगे और परिजनों की हत्या कर देंगे। हर किसी को अपने व्यापार व धन की फिक्र हो गई। कुछ तो धमकाने से डर गए और रंगदारी देने लग पड़े। इस तरह लुटेरों का काम चल पड़ा। पहले वे थोड़े-थोड़े पैसे मांगते थे। फिर उनका लालच बढ़ गया और वे ज्यादा की मांग करने लगे। लुटेरों की संख्या भी बढ़ गई थी। अब कुछ लोग धन देने में आना-कानी करने लगे,लेकिन उनमें से किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे पुलिस तक जा सकते। इसी दौरान धन देने से इंकार करने पर लुटेरों ने एक धनी की हत्या कर दी। कुछ की जवान लड़कियों को भी उठा लिया गया। इससे वे और डर गए और जान बचाने के लिए रंगदारी देने लग पड़े। शिकायत न मिलने पर पुलिस भी सबकुछ जानते हुए चुप रही। कुछ को तो हिस्स

विचार कैसे बनते और कैसे बदलते हैं

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विचार कैसे बनते और कैसे बदलते हैं एक गांव से शहर में आया मजदूर जब कमा कर अपने गांव वापस जाता है तो वह शहरी कपड़े खरीदता है। अपने आप को शहरी साबित करने के लिए वह हर प्रकार का प्रपंच रचता है। शहर में अपने कल्चर अपने साथ ले जाता है। गांव से शहर में सैटल हुआ व्यक्ति हर कोशिश करता है कि वह ग्रामीण कल्चर से जल्दी से जल्दी पीछा छुड़ा ले क्योंकि उसे यह चिंता रहती है कि उसे कोई ग्रामीण न कह दे। इसी प्रकार जब कोई अनिवासी कैनेडा या अमेरिका से भारत आता है तो वह अपने साथ अपने साथ पश्चिमी कल्चर व पहनावा भी लेकर आता है। राजा की तरह हर कोई बनना चाहता है उसकी नकल करना चाहता है लेकिन राजा कभी नहीं चाहता कि प्रजा की तरह दिखे। इसी तरह समाज के कुलीन वर्ग के लोग जो करते हैं उनका निम्न या मध्यम वर्ग  अनुसरण करता है। निम्न या मध्यम वर्ग में एक ऐसी इच्छा होती है कि वह कुलीन अमीर वर्ग में शामिल हो जाए। जो कुलीन वर्ग में होता है वह नहीं चाहता कि वह निम्न वर्ग में शामिल हो। आपको जितने भी नाटक व विज्ञापन दिखाए जाते हैं वे गरीब की झोंपड़ी के नहीं दिखाए जाते। इस प्रकार दोनों तरफ नफरत, घमंड व हीनता की मानसिकता

क्या सनातन धर्म एक जीवन पद्धति ही है धर्म नहीं?

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www.bhrigupandit.com क्या सनातन धर्म एक जीवन पद्धति ही है धर्म नहीं? आजकल कुछ मूढ़ लोग जो समझते हैं कि वे धर्म के जानकार हैं। ऊंचे पदों पर बैठे  एक माइंडसैट से सोचते हैं, कहते हैं कि सनातन धर्म सिर्फ एक जीवन पद्धति है। ये लोग हर चीज को धर्म के आयने से नहीं देखते उन अंग्रेजी स्कूलों के पढ़ाए गए पाठ्यक्रम से आयने से देखते हैं जो ईसाई मिशनरियों के द्वारा चलाए जाते हैं। अब हम बात करते हैं जीवन पद्धति की। कुत्तों, गधों व अन्य जानवरों की भी अलग-अलग जीवन पद्धति है क्या तो फिर वह भी धर्म होना चाहिए। कुत्ते अपना जीवन जीते हैं , गधे अपना जीवन वे जिस परिवेश  में रहते हैं तो वह क्या धर्म है। कीट पतंगों, जलचरों, पक्षियों आदि सभी की अपनी-अपनी जीवन पद्धति है तो क्या इसेधर्म कह देेेंगे? ये लोग धर्म परिभाषा जानने के लिए शंकराचार्य, संतों, मुनियों,गुरूअूों की सलाह नहीं लेंगे, उनसे नहीं पूछेंगे की धर्म क्या है। भगवान कृष्ण ने धर्म के बारे में क्या कहा, वेद क्या कहता है, उनसे नहीं पूछेंगे जिन्होंने इस धर्म में अपनी कई पीढिय़ां खपा दीं। ये भड़वे देव दत्त पटनायक,पंकज मिश्रा, वैंगी डोनियर, अरुंधती राय

भारतीय धार्मिक विचारधाराओं का कैसे विश्व के देशों में विस्तार हुआ

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www.bhrigupandit.com भारतीय धार्मिक विचारधाराओं का कैसे विश्व के देशों में विस्तार हुआ अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि यदि भारतीय धर्म या विचारधाराएं इतना महान थीं तो विश्व में क्यों नहीं फैली? क्यों ईसाई व इस्लाम धर्म फैला? इसको मामने वाले इतने ज्यादा गिणती में क्यों हैं। लगभग 2 हजार पहले जब ये दोनों रिलीजन पैदा नहीं हुए थे तो पूरे विश्व में पैगेन व सनातन धर्म को मानने वाले लोग थे। भारत वर्ष में धर्म कभी भी राजनैतिक नहीं रहा। एक राजा दूसरे राजा से लड़ते थे। हारने वाले राजा को कुछ शर्तें माननी होती थीं और यदि वह अधीनता स्वीकार कर लेता तो उसे जीतने वाले राजा के अधीन रहना होता था। या फिर उसे देश छोड़ कर जाना होता था। इस दौरान युद्ध नियमों का कठोरता से दोनों पक्ष पालन करना होता था। जीतने वाला राजा व उसके सैनिक महिलाओं,बूढ़ों व बच्चों पर हथियार नहीं उठाते थे। हारने वाले राज्य की प्रजा को धर्म के नाम पर सताया नहीं जाता था। सब कुछ वैसा ही रहता था। देश का धन भी देश में ही रहता था। भारतीय राजाओं  ने कभी किसी विदेशी देश पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन फिर भी हिन्दू व बौद्ध धर्म कंबोडिया, इंडोनेश

क्या सत्य सनातन वैदिक धर्म बाकी मतों,पंथों को खत्म कर देगा?

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क्या सत्य सनातन वैदिक धर्म बाकी मतों,पंथों को खत्म कर देगा? कुछ मूढ़ कम पढ़े लिखे, भारतीय धाॢमक परम्मराओं का ज्ञान न रखने वाले अपने प्रचार में ऐसा कहते हैं कि हिन्दू धर्म अन्य धर्मों को खा जाएगा। ये तो ऐसा कहना हुआ कि एक मां अपने बच्चों को मार कर खा जाएगी। हिन््रदू धर्म ऐसा विशाल धर्म है कि यह लगभग सभी पंथ,सम्प्रदायों की जननी है। ये सभी इसी के पेट से निकले हैं। इसी ने इनका पालन पोषण भी किया। विदेशी हमलावरों से पहले भारत में बुद्ध धर्म ने जन्म लिया। ये धर्म वैदिक परम्पराओं का विरोधी था लेकिन इतिहास में कहीं भी ऐसा वाक्या नहीं मिलता कि वैदिक धॢमयों ने बौद्ध धर्म अपनाने वालों पर हमला किया हो या इनका नरसंहार किया हो। गौतम बुद्ध बिना किसी सुरक्षा में गांव-गांव जाते और उनका स्वागत होता। हिन्दू वैदिक धर्म को मानने वाले अपनी इच्छा से बुद्ध की शरण में जा रहे थे। ऐसा समय  आया कि अफगानिस्तान, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश के इलाके बुद्ध हो गए। बिहार तो बौधियों का पवित्र स्थल बन गया था। हर वर्ग के लोग बुद्ध के अहिंसा, प्रेम व आत्म ज्ञान के मुरीद हो चुके थे।  आदि शंकराचार्य जी के आने  के बाद जब

भगवान कृष्ण व अर्जुन का संवाद-एक दृष्टिकोण

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भगवान कृष्ण व अर्जुन का संवाद-एक दृष्टिकोण यूद्ध करने सेेे मुख मोड़ चुके अर्जुन का अपने गुरु भगवान कृष्ण से संवाद होता है। भगवान कहते हैं और अर्जुन प्रश्न करता करता है। भगवान उसका उत्तर देते हैं। अर्जुन संतुष्ट नहीं होता तो भगवान व्याख्या करते हैं। इस प्रकार गुरु-शिष्य का संवाद तब तक जारी रहता है जब तक अर्जुन के सारे संशय दूर नहीं हो जाते। वर्तमान में हर किसी को अपने गुरु से ऐसे ही संवाद करना करना होगा। अपने संशय दूर करने होंगे। तभी इस कलियुग रूपी कुरु क्षेत्र में अधॢमयों का विनाश करना होगा। हर किसी को अर्जुन की तरह तैयारी करनी होगी। बौद्धिक क्षत्रिय भी बनना होगा। अपने विरोधियों को परास्त करना होगा। आज अधर्मी कंचन इलाहा, वैंगी डोनियर जैसे हजारों पेड लेखक भारतीय धाॢमक परम्पराओं की खिल्ली उड़ाते हैं। ये अपनी पुस्तक मैं हिन्दू क्यों नहीं हूं, में धर्म के बारे अभद्र टिप्पणियां करते हैं और इनको पैसा देने वालों में बड़े अमीर घराने भी हैं। आज ऐसे लाखों अर्जुनों की जरूरत है जो ऐसे विधॢमयों को उचित जवाब दे सकें। 

जर्मनी सहित अन्य देशों में यहूदियों के नरसंहार के पीछे असली कारण क्या थे?

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जर्मनी सहित अन्य देशों में यहूदियों के नरसंहार के पीछे असली कारण क्या थे? येरूशलम में ईसा के जन्म लगभग हजार वर्ष पहले यहूदियों का धर्म पैदा हो गया था। यहूदी धर्मग्रंथ टोरा को मानते हैं। अरब सहित सारी सत्ता का धु्रवीकरण यहूदियों के हाथों में था। उस समय पूरे यूरोप व अरब में पेगेन धर्म प्रचलित था। लोग कबीलों में रहते थे। इन कबीलों के अपने-अपनेे नियम थे। इन लोगों के अपनी-अपनी आस्थाएं और भगवान थे। यहूदी इनको जेंनटाईल कहते थे। इनमें और यहूदियों में आपसी झड़पें होती रहती थीं। टोरा में कई जगहों पर किल आल द जेनटाईल के आदेशानुसार कई जेनेटाईल कबीलों के लोगों की हत्याएं ककरने का विवरण मिलता है। ईसा मसीह यहूदी परिवार में पैदा हुए थे। उनके क्रूस पर लटकाए जाने के 200 साल ईसाई धर्म का उत्थान हुआ और बाईबल लिखा गया। इसमें टोरा की ही तरह इब्राहिम की व अन्य कहानियां हैं। ईसाइयों की झड़पें यहूदियों से होती थी। मौका मिलते दोनों कम नहीं करते। इन दोनों धर्मों ने मिलकर पेगेन धर्म को मानने वालों का खात्मा करना शुरू कर दिया। इसके बाद इस अभियान में इस्लाम भी शामिल हो गया। पूरे यूरोप में लगभग 500 सालों में

मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है- Gand Mool 2023

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मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है गंडमूल नक्षत्रों  में पैदा हुए बच्चों के बारे में अलग-अलग विचार हैं। लोगों को पूरी जानकारी न होने के कारण वे छोड़े परेशान हो जाते हैं। गंडमूल नक्षत्रों में पैदा हुए बच्चों को जिस नक्षत्र मेंवे पैदा हुए होते हैं उसी नक्षत्र में उनकी पूजा की जाती है। कर्मकांड में पारंगत पंडित जी या निपुण ज्योतिषि इस काम को बहुत ही अच्छे ढंग से कर देते हैं। लोगों को इसके लिए ज्यादा परेशान होने की अावश्यकता नहीं है। भगृपंडित जी के पास 25 साल का अनुभव है अौर वह इस काम को अच्छे ढंग से करवा देते हैं। हम अापको मूल नक्षत्रों की पूरी जानकारी व पूजा का पूरा विधान यहा बता रहे हैं।  Gandmool dates 2021   september 2022 ki Date Neeche hai AAge गंड मूल नक्षत्रों के लिए हर कोई जानना चाहता है। इन नक्षत्रों में पैदा हुए 2500 जातकों के जीवन को जांचा गया। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने यह कार्य किया था। वर्तमान में ऐसा इसलिए किया गया कि जाना जा सके कि इनके प्रभावों का क्या परिणाम है। जांच में सभी बातें सटीक व सी पाई गईं। What are Gandmool Naksha