हिन्दू महिलाओं को गायत्री मंत्र पढ़ना चाहिए कि नहीं?
किसी को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए, यह वह अपने विवेक,बुद्धि व अनुभव के आधार पर करता है। यदि वह किसी विषय के बारे में जानकारी नहीं रखता तो वह उस विषय के जानकार से उससे जानकारी प्राप्त करता है। धार्मिक विषय में भी कुछ ऐसा ही है। हर धर्म, सम्प्रदाय या पंथ का अनुसरण करने वाला अपने धर्म गुरुओं व मुल्लाओं व पादरियों के पास ही जाता है। वे जो उसे बताते हैं वह उनका अनुसरण करने का प्रयास करता है। वे उसे उसके धर्म के अनुसार बताते हैं कि क्या खाना है क्या नहीं खाना, कैसा पहनावा पहनना है, कितनी शादियां कर सकता है, कितने बच्चे पैदा कर सकता है,कहां जा सकता है और कहां जाना निषेध है। क्या उसके लिए गुनाह है और क्या गुनाह नहीं है, क्या पवित्र है और क्या अपवित्र नहीं है, जिस जीव का मांस खाना धर्म के अनुसार है और किसका नहीं आदि। जैसे पुरुषों के लिए आज्ञाएं व निषेध हैं वैसे ही महिलाओं के लिए भी हैं। आज दुनियाभर में लाखों चर्च हैं लेकिन उनमें कोई भी महिला पादरी, बिशप या पोप नहीं है। महिला क्रप्टो तृप्ति देसाई जब शनि मंदिर में जबरन घुसती है तो उसे रोका नहीं जाता लेकिन यही महिला हाजी दरगाह में नहीं