्रओशो का सच, कैसे वह अपने विचारों को बेचता था
्ओशो का सच, कैसे वह अपने विचारों को बेचता था आप सोचिए कि आप उन लोगों के बीच में बैठे हैं जो गंजे हैं या केशधारी हैं। आप गंजों को कंधी व केशधारियों को शेवटी के बारे में नहीं बताएंगे। ओशो भली भांति जानता था कि भारत के बारे में उसके पोजीटिव विचारों को कोई नहीं सुनेगा। इसलिए उसने वामपंथियों का मार्ग अपनाया और अमेरिकी जो चाहते थे वह उनकों सुनाया। सम्भोग से समाधी तक जैसी उलजलूल किताबें फ्री सैक्स को बढ़ावा देती थी उन्हें मान्यता प्रदान करती थी। उसे पता था कि इसका जितना विरोध होगा उतना ही प्रचार होगा। भारतीय सभ्यता, प्राचीन ग्रंथों का उसने जो अध्ययन कि वह वामपंथियों द्वारा की गई अभद्र टिप्पणियां थीं। जो एक तरफ तो इस इतिहास को मिथिक मानते थे और दूसरी तरफ इस पर बहस भी करते थे। बड़ी चालाकी से अपना एजैंडा दर्शकों के सामने डाला जाता था और वे उसे चुगने लगते थे। अगर राम,रावण, कृष्ण आदि मिथक थे तो उन पर अपनी टिप्पणियां किस प्रकार से कर सकते हैं। ये वैसा ही होता है कि जिस प्रकार फिल्म को देखने के बाद लोग अपनी राय देते हैं कि हीरो को ऐसा करना चाहिए था,ऐसा नहीं। उनकी इस राय से फिल्म को कोई प्रभाव नह