मैं, मेरे ईष्देव और मेरी संस्कृति
मैं, मेरे ईष्देव और मेरी संस्कृति घने जंगलों में न तो अस्पताल थे, न बिजली और न ही कोई संगी साथी। जब कोई घर का सदस्य बीमार पड़ जाता तो आपके लिए उचैण (भेंट,एक मुट्टी चावल व एक पैसा रखकर) प्रार्थना की जाती और ठीक होने पर आपको चढ़ा दी जाती। मेरे सुख दुख में कोई सरकार, कोई आधिकारी नहीं था। मेरा परिवार अपना धर्म व आस्था को बचाने के लिए यहां आ बसे थे। मेरे दादा,दादी के के सिवा मैंने घर के पास एक अपनी विधवा दादी का घर देखा था। इसका पति चीन के साथ हुए युद्द में शहीद हो गया था। इसके सिवा कोई नहीं था गांव में जंगल में सिर्फ दो घर ही थे। न तो पास में पानी की सुविधा और यहां तक पहुंचने के लिए सड़क से पैदल रास्ता भी 3 घंटे का जंगल से होकर। मेरे दादा ने कच्चे मकान में छोटा सा मंदिर बनाया था। भगवान की मूर्तियां,चित्र व एक घंटी। जो सुबह-शाम बजती थी । राम चरित मानस की चौपाइयां एक श्लोकी रामायण जो मैं सुनता और मुझे यह याद हो गईं थी। कुछ अन्य ग्रंथ भी थे लेकिन मुझे उनके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं। सारा कुछ कुलदेवता के नाम से ही होता था। वही हमारे रक्षक थे। कुछ भी होता तो विभूति लगा दी जाती