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स्वतंत्र विचारधारा क्या होती है, यह कैसे उपजती है

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स्वतंत्र विचारधारा क्या होती है, यह कैसे उपजती है भारतीय धार्मिक परम्पराअों में स्वतंत्र विचारधारा का महत्वपूर्ण स्थान है।  कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जब अर्जनु युद्ध करने से इंकार कर देता है तो भगवान उसे उसका धर्म बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए। फिर भी अर्जुन के मन में संशय रहते हैं अौर वह बार-बार भगवान से प्रश्न करता है। उसके प्रश्नों के उत्तर मिलने के बाद ही वह युद्ध करने के लिए तैयार होता है। शिष्य अपने गुरु से अपनी शंकाएं दूर करवाता है। भगवान उसे चुप रहने के लिए नहीं कहते उसके हक प्रश्न का बेबाकी से उत्तर देते हैं। अर्जुन पर किसी दूसरी विचारधारा का प्रभाव नहीं था,वह तो अपने विरोध में खड़े अपने सगे-संबंधियों को देखकर मोहित हो गया था।  भगवान बुद्ध को जब अात्मज्ञान हुअा तो उन्होंने बेबाकी से उसके बारे में बताना शुरु किया। उनकी विचारधारा अागम, वैदिक व ईश्वरवाद के विरोध में थी लेकिन  भारतीयों ने उनकी विचारधारा को अादर दिया। जिस गांव में भी तथागत जाते उन्हें पूरा सम्मान दिया जाता। कहीं कोई उनपर हमला करने का प्रयास नहीं होता। बुद्ध की नास्तिकता को भी वही अादर मिलता जो वैदिक धर्म