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श्रद्धा क्या है, मानव इसको कैसे समझता है और जीवन कैसे जीता है

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श्रद्धा क्या है, मानव इसको कैसे समझता है और जीवन कैसे जीता है श्रद्धा मानव से उस समय से ही जुड़ जाती है जब वह इस संसार में जन्म लेता है। वह अपनी मां की कोख, हाथ सांस, आवाज व धड़कन आदि से जुड़ा होता है। मां के स्तनों से जब दूध उतरता है तो उसको नहीं पता होता की वह क्या अपने मुंह में ले रहा है। लेकिन जब दूध अमृत उसके पेट में पहुंचता है तो उसकी भूख व प्यास शांत हो जाती है। उस नवजात के लिए उसकी मां ही सबकुछ है और वह पूरी तरह उस पर ही निर्भर है। वह अपनी मां के शरीर की गर्मी व ऊष्मा से भी तरोताजा होता है। बड़ा होने पर उसे मां अपने वीरों की कहानियां सुनाती है तो उसके मन में श्रद्धा और बढऩे लगती है। भक्ति का भी उसे पता लगने लगता है। मानव को माता-पिता ही श्रद्धा का पहला सबक सिखाते हैं। अलग अलग धर्मों विचारधाराओं में पैदा हुआ इंसान अपनी मान्यताओं के अनुसार अपनी श्रद्धा का पालन उस देश के कानून के अनुसार कर सकता है। समस्या तब आती है जब कुछ लोग जिनके मनों में दूसरे धर्मों, सम्प्रदायों के प्रति चालाकी से नफरत भरी जाती है, दूसरों की श्रद्धा का किसी एजैंडे के तहत मजाक उड़ाते हैं। हर सिख के लिए