श्रद्धा क्या है, मानव इसको कैसे समझता है और जीवन कैसे जीता है
श्रद्धा क्या है, मानव इसको कैसे समझता है और जीवन कैसे जीता है
श्रद्धा मानव से उस समय से ही जुड़ जाती है जब वह इस संसार में जन्म लेता है। वह अपनी मां की कोख, हाथ सांस, आवाज व धड़कन आदि से जुड़ा होता है। मां के स्तनों से जब दूध उतरता है तो उसको नहीं पता होता कीवह क्या अपने मुंह में ले रहा है। लेकिन जब दूध अमृत उसके पेट में पहुंचता है तो उसकी भूख व प्यास शांत हो
जाती है। उस नवजात के लिए उसकी मां ही सबकुछ है और वह पूरी तरह उस पर ही निर्भर है। वह अपनी मां के शरीर की गर्मी व ऊष्मा से भी तरोताजा होता है।
बड़ा होने पर उसे मां अपने वीरों की कहानियां सुनाती है तो उसके मन में श्रद्धा और बढऩे लगती है। भक्ति का भी उसे पता लगने लगता है। मानव को माता-पिता ही श्रद्धा का पहला सबक सिखाते हैं। अलग अलग धर्मों विचारधाराओं में पैदा हुआ इंसान अपनी मान्यताओं के अनुसार अपनी श्रद्धा का पालन उस देश के कानून के अनुसार कर सकता है। समस्या तब आती है जब कुछ लोग जिनके मनों में दूसरे धर्मों, सम्प्रदायों के प्रति चालाकी से नफरत भरी जाती है, दूसरों की श्रद्धा का किसी एजैंडे के तहत मजाक उड़ाते हैं।
हर सिख के लिए उसका ग्रंथ केवल एक पुस्तक नहीं गुरु का जीता जागता स्वरूप है। दूसरों की नजरों में वह में वह शायद एक ग्रंथ ही हो लेकिन हर सिख उसको गुरु की तरह विराजमान करता है। महंगे से महंगे दोशाला, रुमाले चढ़ाता है,सिर पर विराजमान करता है और सुखासन में सुदंर कमरे पलंग जिसमें पंखे, एसी, लाइटें आदि सभी आधुनिक सुख सुविधाएं होती हैं, में विराजमान करता है। इस प्रकार धार्मिक कार्य पूर्ण श्रद्धा से किए जाते हैं।
ईसाई बाईबल को पवित्र पुस्तक मानते हैं और इसमें लिखे वचनों को पढ़ते हैं और उनका पालन करने की
कोशिश करते हैं। इसी प्रकार मुसलमान भी कुरान जिसे वे अपनी पवित्र पुस्तक मानते हैं और उसमें लिखी आयतों के अनुसार अपने जीवन को चलाने का प्रयास करते हैं।
इसी तरह हिन्दू भी भगवानों की मूर्तियों में साक्षात अपने ईष्ट देवों को देखते हैं और भक्ति व श्रद्धा से भर जाते हैं। वे अपने पवित्र ग्रंथों के प्रति भी बहुत श्रद्धा रखते हैं।श्रद्धा क्या है, मानव इसको कैसे समझता है और जीवन कैसे जीता है.
अब समस्या कहां पैदा होती है। समस्या वहां पैदा होती है जब हर कोई दूसरे की श्रद्धा को गलत ठहराने लगता है। उसकी भावना को न जानते हुए उसका मजाक उड़ाना शुरु कर देता है। दूसरे के प्रति नफरत भरी बातें फैलानी शुरु कर देता है। हां आप उससे सहमत नहीं हो सकते लेकिन आपको उनकी श्रद्धा का मजाक उड़ाने का कोई हक नहीं। जब हम एक दूसरे को परस्पर आदर देने लगें तो सभी समस्याओं का हल हो जाएगा।
प्रथम व दूसरे विश्व युद्ध के बाद करोड़ों लोग मारे गए, खरबों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। इतनी हिंसा हुई कि लोग त्राहि-त्राहि कर उठे।
भारत में हजारों मंदिर तोड़ दिए गए लाखों निर्दोष लोगों का धर्म के नाम बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। इस सबके पीछे एक ही कारण था और वह था नफरत। दूसरे इंसान को खत्म करने की इच्छा। विश्व के नेताओं ने माना कि हम सभी को इसी धरती पर रहना सीखना होगा। सभी विचारधाराओं के लोगों को हमें टोलरेल करना होगा। यहां वे फिर एक गलती कर गए परस्पर आदर यानि म्यूचल रिस्पैक्ट शब्द उन्होंने प्रयोग नहीं किया ।
टोलरेट का मतलब
टोलरेट का मतलब है कि मेरी विचारधारा यानि मैं ही ठीक हूं पर कोई बात नहीं मैं आपको टोलरेट कर सकता हूं। ऐसे ही की बस में या किसी रैस्टोरैंट में वह आपको अपने सामने या पास में बैठाना नहीं चाहता लेकिन वह टोलरेट कर सकता है। या आप अपनी पत्नी को घर जाकर यह कहें कि मैं तो आपको टोलरेट कर सकता हूं। इसका मतलब यह है कि मैं आपको प्यार या आदर नहीं दे सकता जिसके आप
हकदार हो। लेेकिन परस्पर आदर में ऐसे नहीं है।
आप मूर्ति पूजा में विश्वास रखते हैं, देवी-देवताओं में भगवान देखते हैं भले ही मैं आपसे सहमत न होऊं पर मैं आपके विश्वास को व आपको आदर देता हू लेकिन बदले में आपको भी मेरी श्रद्धा का आदर करना होगा। लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह बहुत ही मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं है।
कभी न कभी तो हमें इस बात को समझना ही होगा। यदि हम टोलरेंस की जगह परस्पर आदर को स्थान दें तो एक सभ्य समाज का सृजन कर सकते हैं।
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