मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा व विसर्जन क्या है

मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा व विसर्जन क्या है


इस संसार में हर वो चीज जो बनी है उसका अवसान होना ही है। पंच तत्वों के बने शरीर ने एक दिऩ इन्हीं में मिल जाना है। किसी समाचार में छपे अक्षरों को मानव इतना आदर नहीं देता जितना कि उसके धर्म ग्रंथ में उन्हीं अक्षरों को देता है। अपने परिजनों को जिस आदर भाव से देखता है शायद अंजान व्यक्ति को उस भाव से नहीं देखता। इसी प्रकार एक व्यक्ति अपने धर्म ग्रंथों को जितना आदर देता है शायद दूसरों को वह इतना आदर नहीं दे पाता। एक व्यक्ति अपने धार्मिक स्थान के सरोवर में नहाकर तो पुण्य कमाने का दावा करता है लेकिन यदि वही दूसरा अपनी अराध्य नदी में करे तो उसे वह आदर नहीं देता। इस प्रकार परस्पर आदर की भावना न होना एक तरह की नफरत ही होती है।
मूर्तियों को जागृत करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ताकि भक्त उससे साक्षात दर्शन कर सके। यह एक पवित्र विधी है जो स्थाई भी होती है और थोड़े दिनों के लिए भी। यही मूर्तियों को बुतों से पृथक करती है। बुत के लिए कोई प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती और न ही उन्हें पूजा जाता है। बुत केवल एक स्मृति चिन्ह की तरह होते हैं। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा, पूजन के बाद उनको विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा कुछ समय या दिनों के लिए ही की जाती है। जिस प्रकार आपके घर में र्पक्के रहने वाले परिजन होते हैं और कुछ मेहमान जो कुछ दिन आने के बाद दोबारा अपने घरों को चले जाते हैं। यही दुनिया का विधान है।
अस्थाई तौर पर बनाई मूर्तियों को भी विदाई दे दी जाती है जो पंच भूत में मिल जाती है। अगले वर्ष फिर से उनकी स्थापना की जाती है और उनका पूजन होता है यह विधी लगातार परम्परा गत चलती जाती है। शादियां होती रहती हैं नए दूल्हे आते हैं और दुल्हने विदा होती हैं। पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और फिर बहार आने पर आ जाते हैं। समय पर फसलें उगाई जाती हैं और फिर काट ली जाती हैं। नए जीव का स्वागत होता है और आयु भोग चुके का अवसान अंतिम संस्कार करके कर दिया जाता है। पुराने कपड़े को बदल दिया जाता है, उसकी जगह नया आ जाता है। यही प्रकृति है यही इसके नियम हैं। 

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