महागाथाएं जो लोगों की आत्माओं में बसती हैं- द ग्रैंडनेरेटिव
महागाथाएं जो लोगों की आत्माओं में बसती हैं- द ग्रैंडनेरेटिव
महागाथाएं किसी भी देश के लोगों को एक सूत्र में बांधती हैं , उनकी भाषा, कल्चर, रंग,क्षेत्र आदि अलग हो सकते हैं। अमेरिका जब अपनी महागाथा का बखान करता है तो वह केवल सकारात्मक पहलुओं महान इतिहास व महान हीरोज के बारे में ही बताता है, वह कभी देश में काले गोरे का रंग भेद, गुलामी, मूलनिवासियों का नरसंहार,बेघर लोगों, महिलाओं के अधिकारों का हनन आदि नकारात्मक पहलुओं पर कभी भी बात नहीं करता। यही कारण है कि आपको किसी भी साहित्य, फिल्म में अमेरिका महान की महागाथा के खिलाफ कुछ नहीं मिलेगा। ऐसा ही चीन, जापान व अन्य विकसित यूरोपिय देशों के बारे में मिलेगा।
भारत और इसकी महागाथा- आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत की जब महागाथा की बात होती है तो विदेशी मुगल व अंग्रेज लुटेरे आक्रमणकारियों की महानता के किस्से ही आपको इतिहास की किताबों में लिखे मिलते हैं। अंग्रेजों ने हमें किक्रेट दिया, अंग्रेजी दी, और रेलवे दी मुगलों ने हमें मटनटिक्का व ताजमहल दिया। इन हमलावरों ने हमें सभ्य बनाया इनके आने से पहले हम असभ्य थे। जिस महागाथा को गाते हमारे इतिहास के हीरो आदि ने बलिदान दे दिया उन महागाथाओं को काल्पनिक कहा गया और इस प्रकार उन गाथाओं के महानयकों का मजाक उड़ाते हुए उनका चरित्र हनन किया गया। महाराणा प्रताप, रानी झांसी, शिवाजी, सम्भा जी जिस रणचंडी की महागाथा को गाते रण क्षेत्र में दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते थे,उन महानायकों नायिकाओं को काल्पनिक घोषित कर दिया गया। जो भी ग्रंथ इस महागाथा का हिस्सा बने हुए थे उन्हें भी नष्ट करने का प्रयास किया गया।
माता, दादी पिता अपने बच्चों को जिन महानायकों की महागाथा की कहानियां सुनाते थे, वे एकाएक बंद हो गईं और इन महागाथा को आगे बढ़ाने की एक कड़ी टूट गई।
जब आज किसी विद्वान आईएएस अधिकारी जो दूसरे देशों में जाकर भारत के राजदूत बनने वाले होते हैं उनसे पूछा गया कि भारत की महागाथा क्या है तो वे इस प्रश्न से सकपका गए। इनमें से कुछ कहने लगे कि भारत की महागाथा कोई नहीं है, हम तो दलित होते हैं और हम तो मानते हैं कि भारत अंग्रेजों व मुगलों के आने से पहले अस्तित्व में था ही नहीं यह तो छोटे-छोटे जनपदों में बंटा था। कुछ कहने लगे भारतम में महागाथा जैसी कोई चीज नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे किसी कम्पनी का सीईओ यह कहे कि वह किसी कम्पनी में काम तो करता है, लेकिन उसे यह नहीं पता कि कम्पनी के बारे में उसे क्या लोगों को बताना है। ज्यादातर लोग वही रटे रटाए संवाद बोलते हैं जैसे भारत में बुराई, गरीबी, जातिवाद महिलाओं पर अत्याचार, दलितों पर अत्याचार आदि। उनके पास भारत की महागाथा कहने के लिए कोई मैटर नहीं है क्योंकि उन्हें इसके बारे में पढ़ाया ही नहीं गया है।
महागाथा की हत्या- मुगल व अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की कि भारत की महागाथा को खत्म कर दिया जाए लेकिन मध्यकालीन समय में संतों,महापुरुषों व देशप्रेमियों ने इन महागाथाओं को फिर से लिखा और जनमानस में एक नया जोश भर दिया। ऐसा ही जोश शंकराचार्य जी ने ईसा से 500 वर्ष पूर्व देश के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठों की स्थापना करके देश को एक सूत्र में पिरोया था। कुम्भ व अन्य मेलों की शुरुआत भी इसी महागाथा को जीवित रखने का प्रयास है। जिसमें देश के कोने-कोने से हर जाति सम्प्रदाय के लोग बिना किसी निमंत्रण के एक जगह पर एकत्र हो जाते हैं। इनमें कोई दक्षिण भारत से होता है तो कोई पूर्व के सुदूर गांव से दोनों की भाषा भी नहीं मिलती सम्प्रदाय भी अलग होता है फिर भी ये मिलते हैं।
भारत की महागाथा की हत्या करने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई। इसके तहत कोई भी ग्रंथ जो इस महागाथा का हिस्सा था जो जनमानस में एकता व महानता का जोश भरता था उसके नायकों व ग्रंथों को झूठ साबित करने के लिए हर सम्भव प्रयास किया गया। कई राष्ट्रवादी प्रचारक भी इनके झांसे में अनजाने में आ गए और लोजिक के नाम पर अंग्रेजों का फ्री में करने लगे। अंग्रेज चाहते थे कि जनमानस अपने सारे ग्रंथों व नायकों को छोड़ दें क्योंकि जब तक ये इन महानायकों व महान ग्रंथों से जुड़े रहेंगे वे फिर उनको चुनौती देते रहेंगे। उन्होंने महाभारत को लोगों के घरों से निकलवा दिया यह अफवाह फैलाकर कि यह झूठा है इसे रखने से घर में क्लेश हो जाता है। वर्तमान में भारत का कोई ग्रैंडनेरेटिव नहीं है।
महागाथाएं किसी भी देश के लोगों को एक सूत्र में बांधती हैं , उनकी भाषा, कल्चर, रंग,क्षेत्र आदि अलग हो सकते हैं। अमेरिका जब अपनी महागाथा का बखान करता है तो वह केवल सकारात्मक पहलुओं महान इतिहास व महान हीरोज के बारे में ही बताता है, वह कभी देश में काले गोरे का रंग भेद, गुलामी, मूलनिवासियों का नरसंहार,बेघर लोगों, महिलाओं के अधिकारों का हनन आदि नकारात्मक पहलुओं पर कभी भी बात नहीं करता। यही कारण है कि आपको किसी भी साहित्य, फिल्म में अमेरिका महान की महागाथा के खिलाफ कुछ नहीं मिलेगा। ऐसा ही चीन, जापान व अन्य विकसित यूरोपिय देशों के बारे में मिलेगा।
भारत और इसकी महागाथा- आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत की जब महागाथा की बात होती है तो विदेशी मुगल व अंग्रेज लुटेरे आक्रमणकारियों की महानता के किस्से ही आपको इतिहास की किताबों में लिखे मिलते हैं। अंग्रेजों ने हमें किक्रेट दिया, अंग्रेजी दी, और रेलवे दी मुगलों ने हमें मटनटिक्का व ताजमहल दिया। इन हमलावरों ने हमें सभ्य बनाया इनके आने से पहले हम असभ्य थे। जिस महागाथा को गाते हमारे इतिहास के हीरो आदि ने बलिदान दे दिया उन महागाथाओं को काल्पनिक कहा गया और इस प्रकार उन गाथाओं के महानयकों का मजाक उड़ाते हुए उनका चरित्र हनन किया गया। महाराणा प्रताप, रानी झांसी, शिवाजी, सम्भा जी जिस रणचंडी की महागाथा को गाते रण क्षेत्र में दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते थे,उन महानायकों नायिकाओं को काल्पनिक घोषित कर दिया गया। जो भी ग्रंथ इस महागाथा का हिस्सा बने हुए थे उन्हें भी नष्ट करने का प्रयास किया गया।
माता, दादी पिता अपने बच्चों को जिन महानायकों की महागाथा की कहानियां सुनाते थे, वे एकाएक बंद हो गईं और इन महागाथा को आगे बढ़ाने की एक कड़ी टूट गई।
जब आज किसी विद्वान आईएएस अधिकारी जो दूसरे देशों में जाकर भारत के राजदूत बनने वाले होते हैं उनसे पूछा गया कि भारत की महागाथा क्या है तो वे इस प्रश्न से सकपका गए। इनमें से कुछ कहने लगे कि भारत की महागाथा कोई नहीं है, हम तो दलित होते हैं और हम तो मानते हैं कि भारत अंग्रेजों व मुगलों के आने से पहले अस्तित्व में था ही नहीं यह तो छोटे-छोटे जनपदों में बंटा था। कुछ कहने लगे भारतम में महागाथा जैसी कोई चीज नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे किसी कम्पनी का सीईओ यह कहे कि वह किसी कम्पनी में काम तो करता है, लेकिन उसे यह नहीं पता कि कम्पनी के बारे में उसे क्या लोगों को बताना है। ज्यादातर लोग वही रटे रटाए संवाद बोलते हैं जैसे भारत में बुराई, गरीबी, जातिवाद महिलाओं पर अत्याचार, दलितों पर अत्याचार आदि। उनके पास भारत की महागाथा कहने के लिए कोई मैटर नहीं है क्योंकि उन्हें इसके बारे में पढ़ाया ही नहीं गया है।
महागाथा की हत्या- मुगल व अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की कि भारत की महागाथा को खत्म कर दिया जाए लेकिन मध्यकालीन समय में संतों,महापुरुषों व देशप्रेमियों ने इन महागाथाओं को फिर से लिखा और जनमानस में एक नया जोश भर दिया। ऐसा ही जोश शंकराचार्य जी ने ईसा से 500 वर्ष पूर्व देश के विभिन्न हिस्सों में शक्तिपीठों की स्थापना करके देश को एक सूत्र में पिरोया था। कुम्भ व अन्य मेलों की शुरुआत भी इसी महागाथा को जीवित रखने का प्रयास है। जिसमें देश के कोने-कोने से हर जाति सम्प्रदाय के लोग बिना किसी निमंत्रण के एक जगह पर एकत्र हो जाते हैं। इनमें कोई दक्षिण भारत से होता है तो कोई पूर्व के सुदूर गांव से दोनों की भाषा भी नहीं मिलती सम्प्रदाय भी अलग होता है फिर भी ये मिलते हैं।
भारत की महागाथा की हत्या करने के लिए एक बड़ी साजिश रची गई। इसके तहत कोई भी ग्रंथ जो इस महागाथा का हिस्सा था जो जनमानस में एकता व महानता का जोश भरता था उसके नायकों व ग्रंथों को झूठ साबित करने के लिए हर सम्भव प्रयास किया गया। कई राष्ट्रवादी प्रचारक भी इनके झांसे में अनजाने में आ गए और लोजिक के नाम पर अंग्रेजों का फ्री में करने लगे। अंग्रेज चाहते थे कि जनमानस अपने सारे ग्रंथों व नायकों को छोड़ दें क्योंकि जब तक ये इन महानायकों व महान ग्रंथों से जुड़े रहेंगे वे फिर उनको चुनौती देते रहेंगे। उन्होंने महाभारत को लोगों के घरों से निकलवा दिया यह अफवाह फैलाकर कि यह झूठा है इसे रखने से घर में क्लेश हो जाता है। वर्तमान में भारत का कोई ग्रैंडनेरेटिव नहीं है।
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