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इंडीजेनिएस कल्चर क्या है?

  इंडीजेनिएस कल्चर क्या है इंडीजेनिएस कल्चर को मूल निवासियों को संस्कृति कहा जाता है। मूल निवासी जैसा खाते हैं, पहनते हैं, जैसी भाषा बोलते हैं, उनकी धार्मिक आस्था, समाजिक परम्पराएं आदि इंडीजेनियस कल्चर के अधीन आते हैं। किसी भी देश, स्थान आदि को गुलाम या उपनिवेश बनाना है तो उसकी मूल संस्कृति को धवस्त करना बहुत जरूरी होता है। जब विदेशी हमलावर भारत आए तो उन्होंने इसकी मूल संस्कृति को धवस्त करना शुरु कर दिया। कोई भी चिन्ह, ग्रंथ या मंदिर (स्थानों के मूल नामों को बदल दिया गया) हो उसे नष्ट इसलिए करने का प्रयास किया गया क्योंकि इससे उस देश की संस्कृति की पहचान सृदृढ़ होती थी।  अफ्रीका देश नाइजीरिया में पहले ईसाइयों ने हमला किया और वहां के लोगों को ईसाई बनाकर वहां के मूल धर्म वूडू को नष्ट कर दिया गया। वूडू पर कानूनी पाबंदी लगा दी गई और इस धर्म को काले जादू व मानव के लिए खतरनाक घोषित कर दिया गया। इसके पुजारियों का भयंकर नरसंहार किया गया। इसके बाद इस्लामी हमलावरों ने भी ऐसा ही किया। वर्तमान में नाइजीरिया की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई है और 50 प्रतिशत इस्लामी है और दोनों की एक की जाति रेस के न

हिन्दुओं का धर्मांतरण व मतांतरण एक गम्भीर चुनौती

  हिन्दुओं का धर्मांतरण व मतांतरण एक गम्भीर चुनौती हिन्दुओं के धर्मांतरण तो एक गम्भीर समस्या बन चुका है लेकिन इससे भी बड़ी समस्या हिन्दुओं के मतांतरण की है। यह धर्मांतरण से भी ज्यादा गम्भीर समस्या बन चुकी है। मतांतरण की उदाहरण हिमाचल प्रदेश के एक गांव से लेते हैं। यह गांव हिमाचल का एक प्रचीन गांव है। यहां के लोग भोले-भाले व अपनी संस्कृति से प्यार करने वाले हैं। सदियों से यह गांव बाहरी लोगों की नजरों बचा रहा। लोग अपने अपनी परम्पराओं के अनुसार चल रहे थे। गांव में सभी जातियों के हिन्दू लोग बिना किसी परेशानी के रहते थे। इनकी समस्याएं व मतभेद तो थे लेकिन ये किसी धार्मिक कार्य, किसी के दुख-सुख में एक दूसरे का साथ देते थे। एक साथ त्यौहार मनाते थे। यह छोटा सा गांव अपने आप में एक पूरा समाज था। bahri लोगों ने दलित हिन्दुओं को अपना निशाना बनाया और उनका मतांतरण करने में सफल हुए। ये लोग पूरी तरह से संगठित एक बड़ी कम्पनी की तरह काम करते थे। बस ये लोग गांव वालों को ट्रैप करने में सफल रहे। इस प्रकार इन गांववासियों का मतांतरण हो गया। ये मतांतरित हुए लोग सैकुलर व वामपंथी विचारधारा की तरफ मोड़ दिए गए।

क्या नजरिया है ?

एक ही वस्तु को लेकर नजरिए अलग-अलग हैं। एक गाय को देखकर इसे एक पशु को तौर पर देखता है जिसे नकारा होने पर भैंस, बकरी, मुर्गी, सूअर की तरह काट कर खाया जा सकता है, एक पौराणिक जब गाय को देखता है तो वह उसे मां का दर्जा देता है और सोचता है कि कैसे इस जीव की मदद की जाए, इसे ठंड लगे तो कहीं से खाली बोरियों से उसे ढकने का प्रयास करता है, भूख लगे तो इसे चारा देने का प्रयास करता है, वह अन्य कई जीवों की तरफ भी इसी तरह का नजरिया रखता है, एक किसी गाय या बछड़े को देखता है तो वह लार लमकाने लगता है कि किसी तरह वह इसे चुरा ले और इसका गोश्त खाए या इसे बेचे, उसे कोई लेना-देना नहीं कि गाय दुधारू है, गर्भवति है कि नहीं। जैसे ही किसी पेड़ को देखता है और उसे पता चलता है कि इस पेड़ का धार्मिक महत्व है तो वह इसे कटवाने का प्रयास करता है, पौराणिक व्यक्ति  पर्यावरण के बारे में जानता भी न हो लेकिन वह पीपल, बरगद, तुलसी, आम, केला आदि को देखता है तो उसको नमन करता है, दीया जलाता है,पानी देता है, काटने से परहेज करता है, अपने परिवार की सुख समृद्दि के लिए धागे बांधता है, चुनरी चढ़ाता है देव व देवी का दर्जा प्रदान करता

जाति व्यवस्था का सकारात्मक दृष्टिकोण क्या है ?

  जाति व्यवस्था का सकारात्मक दृष्टिकोण क्या है यूरोप व पश्चिमी देशों में भाषा, क्षेत्र व रंगभेद को लेकर समाज सदा हिंसक रहा है। काले-गोरे, मालिक-गुलाम की दूरी व नफरत सदा हावी रही है। ये समाज बाहरी लोगों व गुलामों के प्रति काफी हिंसक रहे हैं। इनका समाज सदा काले-गोरे, मालिक-गुलाम, स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब में हिंसक तौर पर बंटा रहा है। जब रूस की क्रांति हुई तो समाज के एक वर्ग ने दूसरे वर्ग पर करोड़ों की संख्या में हमला करके सत्ता पर कब्जा कर दिया और जघन्य नरसंहार किया। ऐसा ही फ्रांस, जर्मनी आदि कई देशों में हुआ ये वास्तव में क्रांतियां नहीं थी। एक हिंसक समाज का दूसरे समाज का नरसंहार करके सत्ता पर कब्जा करना था। जब पश्चिमी देशों में ऐसा कुछ हो रहा था को भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ। समाज मूलत कर्म के आधारित चार वर्गों में बंटा था। ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य व शूद्र जिन्हें अनतज्य भी कहा जाता है। ये चारों वर्ण समाज में काम करते हुए इसे उत्कृष्ट व समृद्ध बना रहे थे। भारत में पश्चिम की तरह काले-गोरे का कभी भेदभाव नहीं था। कभी भी उच्च वर्ग ने मिलकर निम्न वर्ग पर हमला किया और न ही कभी निम्न वर्ग ने उ

आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस कैसे समाज में कैसे हलचल फैलाएगी

  आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस कैसे समाज में कैसे हलचल फैलाएगी आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस यानि कृत्रिम बुद्धि विकसित व विकासशील देशों के समाजों में हलचल फैला सकती है। कहीं पर इसके प्रभाव बुरे हो सकते हैं तो कहीं पर अच्छे। अब जब टैस्ला की ड्राइवर के बिना चलने वाली गाड़ियां सड़कों पर दौड़ने लगीं हैं तो दुनियाभर के करोड़ों कार ड्राइवरों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। नई नौकरियों के अवसर भी प्रदान होंगे लेकिन ये नौकरियां आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस के माहिर लोगों के लिए ही होंगी। आर्टिफिशिएल इंटैलीजैंस में मशीन मानवीय फैसले लेती है। आपकी क्या विचारधारा है, आप क्या खाते हैं, आपको क्या पसंद है, आपका चेहरा, आपकी हर गतिविधी, आपकी उंगलियों के निशान आदि सारा कुछ एक मशीन में जमा हो जाता है। एक ऐसी मशीन जो कभी भूलती नहीं वह आपकी सारे जीवन का डाटा अपने पास रखती है। कभी आपने जाना है कि आपको हर चीज ई-मेल, फिंगर सैंसर, फेस सैंसर, इनफोरमेशन आदि फ्री में उपल्बध करवाने वाले सर्च ईंजन जैसे गूगल, याहू, माईक्रोसोफ्ट कैसे खरबों के मालिक हैं। सोचिए की फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल पर किसी हद तक आश्रित हो चुके हैं। आप नेट पर