एक चाय बेचने वाले का संघर्ष और त्याग की गाथा

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एक चाय बेचने वाले का संघर्ष और त्याग की गाथा
एक बालक जो सिर्फ 6 या 8 वर्ष का होता है और अपने पिता के साथ रेलवे स्टेशन में चाय बेचता है। मां  बड़े परिवार को पालने के लिए लोगों के घरों का काम करती है लेकिन हिम्मत नहीं हारती। छोटा सा बच्चे ने भी देखा होगा कि उसके कपड़े फटे हाल में हैं उसके पैरों में जूते नहीं हैं। कड़कती ठंड हो या गर्मी वही चप्पलें पहन कर वह सरकारी स्कूल में नीचे बैठकर शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश करता है। यह दलित परिवार का बच्चा हर सुविधा से वंचित है। शो रूमों में अच्छे कपड़े, खिलौने देखकर मन मचलता होगा। मिठाइयों की दुकान में सज मिठाइयां खाने का मन करता होगा। घर में दूध भी कभी मिलता होगा या कभी नहीं। कभी थोड़ी रोटी खाकर या भूखे पेट सोना पड़ा होगा। उच्च वर्ग के या अमीरों के तिरस्कार को भी सहना पड़ा होगा। यह वो बच्चा था कि उसके मन में तिरस्कार करने वालों के लिए कोई नफरत नहीं, अपने धर्म से उसने प्यार करना सीथा और सबसे ऊपर अपने देश के लिए जीना व मरना चाहे भूखे ही रहना। ऐसे बच्चे मां भारती की गोद में मिट्टी से मिट्टी होकर
मन खुश रखकर अपने देश की सेवा करने निकलते रहते हैं। कितने लोगों ने स्टेशन पर गाली भी दी होगी, कितने लोगों ने पैसे भी मार लिए होंगे, किसी दुष्ट ने तो मारा भी होगा। क्या कारण था कि यह बच्चा कभी कुंठित नहीं हुआ, क्या कारण था कि इस बच्चे ने कभी यह नहीं सोचा कि उसके वर्ग के लोगों को श्रेष्ठता मिले, क्या कारण था कि इस बच्चे ने कभी भी अपने को देशे अलग नहीं रखा। यह बच्चा भी माल खाकर कोट पैंट टाई लगाकर विदेशों की सैर करता और जो इसके आका कहते यह वही करता।
मां लोगों के घरों का काम करती, बीमार भी पड़ती होगी और दवाई भी न मिलती होगी या दवाई के लिए पैसे भी
न होते होंगे। यह सबकुछ भारत के एक बच्चे के साथ नहीं लाखों बच्चों से साथ होता है। इसमें परिस्थितियां कुछ
भिन्न जरूर हो सकती हैं लेकिन गरीबी वही है। यह बच्चा आज भी उन लाखों गरीब बच्चों का दुख जानता है समझता है। यह बच्चा आज भी यही कहता है कि मेरे सवा सौ करोड़ देश वासी, मेरी माताएं, मेरी बहनें। यह भी
कह सकता था कि मेरे दलित भाई ही असली हकदार हैं। इन्हें विशेषाधिकार दिए जाएं क्यों नहीं इसके परिजन करोड़ों पति हो गए। देश के लिए घर छोडऩा बहुता मुश्किल है। जिनके मनों में कुछ करने का होता हैं वही घर छोड़ सकते हैं।
एक महान उपलब्धि जो लोगों में स्वाभिमान भर दे, जो लोगों को साथ लेकर चले,जो जाति-पाति, धर्म से ऊपर उठकर काम करे। ये चायवाला बच्चा समझता है कि आज जो काम करके जाएगा वह करोड़ों लोगों की भलाई
के लिए होगा। गरीबी क्या होती है वो मेरे जैसे लोग ही समझ सकते हैं। कैसे गरीबी में जिया जाता है,कैसे खून के आंसू पिए जाते है।  मैं ऐसे लाखों बच्चों का दिल से सम्मान करता हूं और समझता हूं इनकी पीड़ा क्योंकि मैं
इसी गरीबी का शिकार हूं पर मैं फिर भी उत्साहित हूं।

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