कुम्भ मेला या गंगा स्नान क्या है, इन्हें कैसे टार्गेट किया जाता है
कुम्भ मेला या गंगा स्नान क्या है, इन्हें कैसे टार्गेट किया जाता है
कुम्भ मेला व गंगा स्नान भारतीय संस्कृति का मिलन स्थल है। विभिन्न विचारधाराओं का एक सा मिलना और फिर वापस अपने मूल स्थल पर लौट जाना। दुनिया में सबसे बड़ा मेला जहां 25 करोड़ से अधिक लोग मिलते हैं, आपस में विचार विमर्श करते हैं और स्नान करते हैं। कोई चोरी नहीं होती, कोई छेड़छाड़ की घटना नहीं, न ही कोई बीमारी फैलती है। हजारों सालों से यह राष्ट्रीय एकता का अनौखा संगम। इतने बड़े मानव समूह को देखकर पूरा विश्व दांतों तले उंगलियां दबा लेता है। कोई शैव है, वैष्णव है, निर्मला है सब एक सूत्र में यहां आकर बंध जाते है।
सैकुलर सरकार, मिशनरी व वामपंथी नहीं चाहते कि हिन्दुओं की एकता हो और वे इसे टार्गेट करने का पूरा प्रयास किया जाता है। कुम्भ मेले पर टीवी पर एड चलाई जाती है जिसमें एक बेटा अपने बूढ़े बाप को मेले में छोड़कर भागता दिखाया जाता है। समाचार पत्रों में खबरें छपाई जाती हैं कि मेले में लाखों कंडोम बांटे गए हैं, इतने लोगों के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं बीमारी फैल सकती है आदि। मेले में मिशनरी सदस्य दवाई देने के नाम पर टैंट लगाकर बाइबल बांटते नजर आते हैं। विदेशी भी यहां आकर आंकड़े एकत्र करते हैं कि कौन सी जाति, धर्म, क्षेत्र के लोग आए हैं। वे कितने समय से आ रहे हैं और बात यहीं खत्म नहीं होती। ये लोग उनके गांवों तक पहुंच जाते हैं और पूरे गांव का आंकड़ा तैयार करते हैं। यह पिछले कई सालों से हो रहा है।
कहानी इस प्रकार है- एक गांव से 500 सभी जातियों के लोगों जत्था कुम्भ मेला सदियों से आ रहा है। जत्था तैयार होता है चलने को, रास्ते में कुछ लोग उनके जत्थे में मिल जाते हैं। कुछ दूर जाकर ये घुसे लोग अपना प्रपंच शुरु करते हैं, कि इस बार वहां बीमारी फैली है लोग मर सकते हैं। यह सुनकर जत्थे से 50 लोग वापस मुड़ जाते हैं, कुछ दूर जाने पर जाति का कार्ड खेला जाता है, दलितों को भड़काया जाता है कि ये तो आपका मेला है ही नहीं आपका तो शोषण किया गया आपको ये लोग बैवकूफ बना रहे हैं, ऐसा सुनकर दलित भड़क जाते हैं और इनमें से 100 लोग वापिस चले जाते हैं। अब महिलाओं को टर्गेट किया जाता है महिलाओं को छेड़ना शुरु किया जाता है और इस तरह झड़प हो जाती है, वे आगे से न आने का प्रण कर लेती हैं। अब अफवाह फैलाई जाती है कि वहां बच्चों को उठाने का गिरोह और बच्चे गायब हो जाते हैं । इससे जत्थे में भय फैल जाता है। इसके बाद ब्राह्मण,क्षत्रीय व वैश्य को हर हथकंडे से भ्रमित किया जाता है। रास्ते में कहा जाता है कि पहले वाला रास्ता बंद है,हमें दूसरे रास्ते जाना है। यह दूसरा रास्ता खतरनाक होता है। इस रास्ते पर मलेछ इनपर हमला कर देते हैं और इसमें जत्थे के 10 लोगों की मौत हो जाती है। किसी तरह से यह जत्था कई शंकाएं लेकर डरा हुआ पहुंच तो जाता है लेकिन अगले वर्ष से न आने की सौगंध खा लेता है।
वर्तमान में इस गांव से कोई भी सदस्य कुम्भ मेले या गंगा स्नान को नहीं जाता। एक गांव की सांस्कृतिक कड़ी तोड़ दी गई है। इन सांस्कृतिक कड़ियों को तोड़ने का प्रयास जारी है और करोड़ों रुपए इसपर खर्च किए जाते हैं। इसके खिलाफ लिखने के लिए व बोलने के लिए तथाकथित तिलक लगाकर बोलने वाले प्रचारकों को पैसे बांटे जाते हैं।
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