हिन्दू धर्म में अवतारवाद क्या है?
हिन्दू धर्म अवतारवाद में विश्वास रखता है और यह इसका एक मजबूत स्तम्भ भी है। अब्राहमिक रिलीजनों में अवतारवाद की परिकल्पना नहीं है। अब्राहमिक रिलीजनों के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेता, वह ईश्वर का बेटा हो सकता है और मैसेंजर भी लेकिन इनका जन्म प्राकृतिक नहीं होता। दूसरी तरफ हिन्दू धर्म में ईश्वर अवतार लेता है यह अवतार प्राकृतिक भी हो सकता है अथवा अप्राकृतिक रूप से भी। यानि मां की कोख से भी पैदा हो सकता है और नहीं भी। वराह अवतार, कुर्म अवतार, मतस्य अवतार व नरसिंह अवतार आदि अप्राकृतिक रूप से प्रकट होते हैं जबकि राम, कृष्ण,शिव आदि किसी भी तरह से अवतार ले सकते हैं।
अवतार ईश्वर स्वयं ही होते हैं जो धराओं पर लीलाएं करने के लिए, जीवों को संदेश देकर विलीन हो जाते हैं। अब्राहमिक रिलीजनों में लीलाओं का कोई कंसैप्ट नहीं है। अब्राहमिक रिलीजनों में ईश्वर कहीं दूर बैठा है लेकिन हिन्दू धर्म में ईश्वर कण-कण में है, कुछ भी ईश्वर के बिना नहीं है। अब्राहमिक रिलीजनों में ईश्वर सातवें आसमान में अपने सिंहासन पर बैठा है और वह निराकार है। लेकिन हिन्दू धर्म में ईश्वर आपके अंग-संग है और वह किसी भी समय किसी भी रूप में आपके समक्ष प्रकट हो सकता है।
हिन्दू धर्म में ईश्वर एक भी है और अनेक भी, वह कभी भी अपने असंख्य रूप बना लेता है और कभी एक ही हो जाता है। जबकि अब्राहमिक रिलीजनों में ईश्वर एक ही है और उसके समानांतर दूसरा कोई नहीं, वे अपने विश्वास को ही उन्मादी रूप से सत्य व सही मानते हैं और दूसरों के विश्वासों को पूरी तरह से रिजैक्ट कर देते हैं। हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म का कंसैप्ट है, जीवन चक्र कभी रुकता नहीं। 84 लाख योनियों में जीव विचरता रहता है और पुनर्जन्म लेता रहता है। अब्राहमिक रिलीजनों में मानव मरने के बाद दफना दिया जाता है और उनकी अवधारणा है कि कयामत के दिन ईश्वर सातवें आसमान से नीचे आएंगे और सभी मुर्दे क्रबों से उठ खड़े होंगे और उन्हें जन्नत की तरफ लेकर जाया जाएगा।
पुनर्जन्म व अवतारवाद हिन्दू धर्म के सुदृढ़ स्तम्भ हैं। यदि अवतारवाद को निकाल दिया जाए तो लाखों मंदिर विरान हो जाएंगे, एक सभ्यता का हीं अंत हो जाएगा। अवतारवाद हिन्दू धर्म को समय-समय नवीनता व आत्मसुधारवाद की निरंतर चलती प्रक्रिया की तरफ ले जाता है। यह अवतारवाद ही है जो हिन्दू धर्म को प्राचीन होते हुए भी हमेशा तरोताजा व नवीन रखता है क्योंकि इन नायकों को आधार मानकर नए-नए ग्रंथ, काव्य, संत आदि प्रकट होते रहते हैं। वहीं पुनर्जन्म का सिद्धांत हर जीव को ईश्वर तत्व की तरफ जाने का अधिकारी बनाता है। अवतारवाद व पुनर्जन्म की अवधारणा हर समय हिन्दुओं को एकतरफा वेदों व परमसत्य की तरफ ले जाने की तरफ प्रेरित करते रहते हैं।
अवतारवाद हिन्दुओं को व्यहारिक, समस्याओं से जूझते हुए, धर्म रक्षा के लिए लड़ने की तरफ ले जाते हैं और साथ ही ईश्वरतत्व की भी अनुभूति करवाते हैं। अवतार एक दूसरे से अलग होते हुए भी एक जाल की भांति एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जैसे राम कृष्ण से जुड़े हैं, माता दुर्गा शिव से और शिव राम से। यदि हिन्दू पुनर्जन्म व अवतारवाद को रिजैक्ट कर देते हैं तो यह सांस्कृतिक व धार्मिक पहचान के विध्वंस की शुरुआत होगी जो वामपंथ, नास्तिवाद व अब्राहमिक रिलीजनों में उनका अवसान करवाएगा। आज हिन्दू सबकुछ रिजैक्ट करते-करते यहां तक पहुंच गए हैं कि उनके बच्चों का आसानी से वामपंथ, नास्तिकवाद व अब्राहमिक रिलीजनों में झुकाव हो गया कि उनको पता ही नहीं कि वे 90 प्रतिशत गैर हिन्दू हो चुके हैं।
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