लहसुनिया नग पहनने से क्या लाभ मिलते हैं
लहसुनिया नग पहनने से क्या लाभ मिलते हैं
लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। इसे वैदूर्य मणि, सूत्र मणि, केतु रत्न, कैट्स आई, विडालाक्ष भी कहा जाता है।
लहसुनिया का रंग हल्का पीला होता है। यह रत्न बिल्ली की आंख जैसा लगता है।
सभी नवग्रहों की श्रेणी में अन्तिम ग्रह केतु असल में राहु का शरीर है।केतु व राहु वास्तव में हवा जैसे ग्रह हैं अर्थात इनका कोई पिंड नहीं है। केतु पाप ग्रहों में जाना जाता है। यह जातक की कुण्डली में शुभ स्थिति में होने पर यह अच्छे परिणाम भी देता है, लेकिन ऐसा संयोग कम लोगों के भोग्य में होता है। लगभग समस्त जातक राहु, केतु, शनि एवं मंगल ग्रहों से पीड़ित ही मिलते हैं। केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए ही लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है।
लहसुनिया का स्वामी केतु ग्रह है- इसमें सफेद धारियां पाई जाती हैं, जिनकी संख्या आमतौर पर दो, तीन या फिर चार होती है। जिस लहसुनिया में आढ़ाई धारी पाई जाती हैं, वह उत्तम कोटि का माना जाता है। यह चार रंगों में मिलता है- सफेद, काला, पीला सूखे पत्ते जैसा और हरा| इन सभी पर सफेद धारियां अवश्य होती हैं, ये धारियां कभी-कभी धुएं के रंग की भी होती है|
लहसुनिया को धारण- करने से पूर्व यह परीक्षण कर लेना उचित होता है कि कहीं इसमें ऐसे दोष तो नहीं हैं जिनके कारण यह रत्न अहितकारी परिणाम प्रदान करे। नीचे लिखे चिन्हों से युक्त लहसुनिया सदोष कहा जाता है -
यदि रत्न में आभाहीनता दिखाई दे तो ऐसा आभाहीन रत्न धनहानि करता है। रत्न खण्डित, गडढ़ेदार एवं दरार युक्त है तो यह दोष शत्रु संख्या में वृद्धि करता है। रत्न कि चमक में यदि ज्वाला का आभास जो की अत्यधिक प्रचण्ड ज्योतियुक्त हो तो, ऐसा वैदूर्य रत्न वैवाहिक जीवन में आग लगाता है। पत्नीघात इसका प्रमुख दोष है।
लहसुनिया रत्न पहनने के लाभ
वह जातक लहसुनिया रत्न धारण करके लाभान्वित हो सकता है, जिसकी कुण्डली में केतु ग्रह की स्थिति अनुकूल तो हो पर निर्बल हो। शुभ स्थिति वाले केतु को यदि वह निर्बल है तो सबल बनाकर उसका लाभ प्राप्त करने के लिए इस रत्न को धारण करना चाहिए।
पाश्चात्य ज्योतिषियों के अनुसार वे समस्त लोग बिना किसी शंका के लहसुनिया रत्न धारण कर सकते हैं, जिनका जन्म 15 मार्च से 14 अप्रैल के मध्य हुआ हो। यह रत्न भूत प्रेत की बाघा से ग्रस्त लोगों के लिए भी बहुत लाभदायक रहता है। यह पेट में गैस तथा पित्त नाशक भी होता है। इसे धारण करने से रात्रि में भयानक स्वप्न नहीं आते है, इसे धारण करने से यह दमें तथा सांस नली की सूजन में आराम पहुचाता है। लहसुनिया धारण करने से बल, तेज, पराक्रम, सम्पत्ति, सुख, आनन्द, पुत्र की प्राप्ति होती है।
यह दिमागी परेशानी, शारीरिक दुर्बलता, दुःख, दरिद्रता, भूत-बाधा से छुटकारा दिलाता है। जन्मकुण्डली के भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति देखकर ज्योतिषी यह मालूम कर लेते हैं कि केतु की स्थिति कैसी है, एवं कौन कौन से ग्रह कुण्डली में कारक अवस्था में है एवं कौनसे ग्रह विरोधी हैं। लहसुनिया धारण करने से दुख:-दरिद्रता समाप्त हो जाता है। यह रत्न भूत बाधा तथा काले जादू से दूर रखने में सहायक माना जाता है। भूत-प्रेत का डर सता रहा हो तो लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए, इससे भूत-प्रेत संबंधि डर दूर होता है।
लहसुनिया धारण करने से केतू जनित समस्त दोष शांत हो जाते है। यह रत्न राहू, केतू, व शनि तीनों की दशा में भी अपना विशेष रूप प्रभाव दिखता है। कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु उपस्थित हो तो लहसुनिया रत्न पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।
कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया अवश्य पहनना चाहिए। केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी लहसुनिया धारण करना फायदेमंद होता है। कुंडली में केतु शुभ भावों का स्वामी हो और उस भाव से छठे या आठवें स्थान पर बैठा हो तो भी लहसुनिया पहना जाता है। कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या भाग्येश के साथ हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। कुंडली में केतु धनेश, भाग्येश या चौथे भाव के स्वामी के साथ हो या उनके द्वारा देखा जा रहा हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। लहसुनिया यदि अनुकूलता करे तो धन दौलत में तेजी से वृद्धि करता है। आकस्मिक दुर्घटना, गुप्तशत्रु से भी यह रक्षा करता है। लहसुनिया रत्न धारण करने से गुप्त शत्रुओं एवं सरकारी सजा से बचाव होता है |
लॉटरी, घुड़दौड़, आदि से गुप्त धन की प्राप्ति होती है | यह रत्न संतान सुख , मुख रोग , चेचक रोग , एनीमिया आदि रोगों में पहनना लाभप्रद होता है | व्यापार में वृद्धि होती है एवं अनेकों रोगों से मुक्ति मिलती है जैसे कि चेचक,रक्त अल्पता , अंडकोष, आदि से बचाव होता है | लहसुनिया आध्यात्मिक गुणों के लिए जाना जाता है। यह केतु के दोष पूर्ण प्रभाव से दूर करने में मदद करता है और बढ़ती ठंड के कारण शरीर में होने वाली बीमारियों को भी कम करता है। यह मन को शांत रखता है।
कुछ ज्योतिषियों का मत है कि केतु एक छाया ग्रह है. उसकी अपनी कोई राशि नहीं है, अत: जब केतु लग्न त्रिकोण अथव् तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में स्थित हो तो उसकी महादशा, में लहसुनिया धारण करने से लाभ होता है|यदि जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, सप्तम, अष्टम, या द्वादश भाव में स्थित हो तो इसे धारण नहीं करना चाहिए|
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लहसुनिया को धारण करने से शारीरिक दुर्बलता खत्म होती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है।माना जाता है कि यह रत्न दमे के रोगियों के लिए अत्याधिक लाभकारी होता है। कई रत्न ज्योतिषी श्वास नली में सूजन की परेशानी होने पर लहसुनिया धारण करने की सलाह देते हैं।
लहसुनिया रत्न धारण विधि--
लहसुनिया अथवा वैदूर्य को किसी ऐसे दिन धारण करना चाहिए, जब चन्द्रमा मीन, मेष या धनु राशि का हो, अथवा उस दिन अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र हो। इसे धारण करने का समय सूर्यास्त से लगभग एक पहर रात बीते तक उत्तम होता है। यह भी फौलाद, स्वर्ण अथवा पंचधातु की अँगूठी में धारण किया जाता है।
आयुर्वेद विज्ञान में भी वैदूर्य रत्न का उल्लेख बड़ी प्रचुरता से मिलता है। अन्य रत्नों की भाँति इस खनिज रत्न की भी भस्म चूर्ण के प्रयोग से अनेकों प्रकार की जटिल शारीरिक व्याधियों का उपचार किया जाता है। जटिल और अतिकष्टप्रद रोगों के निवारणार्थ वैदूर्य भस्म में विशेष गुण उपलब्ध है। इसका सेवन उपदंश, मूत्रकृच्छ जैसे सिफलिस और गोनोरिया, नपुंसकता, अतिसार, नेत्ररोग, श्वास विकार, पाण्डु, कामला आदि रोगों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
प्रसूता के लिए भी यह रत्न धारणीय है। इसके प्रभाव से प्रसव पीड़ा कम होती। यही नहीं, इसको धारण करने से अजीर्ण एवं प्रदर रोग का निवारण भी किया जाता है।
लहसुनिया का प्रयोग-
सोने या चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़ाकर सोमवार के दिन धारण करना चाहिए। चूंकि यह एक बेहद प्रभावशाली रत्न होता है इसलिए इसे धारण करने से पहले ज्योतिषी से सलाह परामर्श कर लेना चाहिए। लहसुनिया रत्न को चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर विधिपूर्वक, उपासना-जपादि करें. फिर श्रद्धा सहित इसको अद्र्धरात्रि के समय म्ाध्यमा या कनिष्ठा उंगली में धारण करें. इसका वजन 3 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए, इसे धारण करने से पहले ओम कें केतवे नम: मंत्र का 17000 बार जप करना चाहिए | लहसुनिया रत्न की अंगूठी सोने या चांदी में बनवाकर, कच्चे दूध व गंगाजल से धोकर अनामिका अंगुली में निम्नलिखित मंत्र के उच्चारण के साथ धारण करनी चाहिए -
OM स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
अँगूठी को दूध में व् गंगाजल में स्नान करवा कर केतुदेव के मंत्र " ॐ ह्रीं केतवे नमः " का उच्चारण 108 बार करके अँगूठी को सिद्ध करके अनामिका उँगली में पहनना चाहिए |
लहसुनिया को खूब अच्छी तरह से परख कर एवं विश्वस्त दूकान से ही खरीदें क्योंकि लहसुनिया रत्न की जितनी अच्छी गुणवत्ता होगी उतना ही अच्छा लाभ देगा |
आप भृगुपंडित के अनुभवी एवं योग्य ज्योतिषाचार्य एवं पंडितों की टीम द्वारा सिद्ध ,शुद्ध एवं संस्कारित लहसुनिया रत्न भृगुपंडित के ऑफिस से फोन करके मंगवा सकते हैं | ज्योतिषशास्त्र में हर ग्रह के दोष को दूर करने एवं उसकी शांति के लिए उपाय किए जाते हैं।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य, शनि या अन्य कोई भी ग्रह दोष है तो आप भृगुपंडित के अनुभवी एवं योग्य ज्योतिषाचार्य एवं पंडितों से ग्रह दोष पूजा करवा सकते हैं। इस पूजा की सबसे खास बात ये है कि आप अपने घर बैठे ही ऑनलाइन इस पूजा में शामिल हो सकते हैं।
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लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। इसे वैदूर्य मणि, सूत्र मणि, केतु रत्न, कैट्स आई, विडालाक्ष भी कहा जाता है।
लहसुनिया का रंग हल्का पीला होता है। यह रत्न बिल्ली की आंख जैसा लगता है।
सभी नवग्रहों की श्रेणी में अन्तिम ग्रह केतु असल में राहु का शरीर है।केतु व राहु वास्तव में हवा जैसे ग्रह हैं अर्थात इनका कोई पिंड नहीं है। केतु पाप ग्रहों में जाना जाता है। यह जातक की कुण्डली में शुभ स्थिति में होने पर यह अच्छे परिणाम भी देता है, लेकिन ऐसा संयोग कम लोगों के भोग्य में होता है। लगभग समस्त जातक राहु, केतु, शनि एवं मंगल ग्रहों से पीड़ित ही मिलते हैं। केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए ही लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है।
लहसुनिया का स्वामी केतु ग्रह है- इसमें सफेद धारियां पाई जाती हैं, जिनकी संख्या आमतौर पर दो, तीन या फिर चार होती है। जिस लहसुनिया में आढ़ाई धारी पाई जाती हैं, वह उत्तम कोटि का माना जाता है। यह चार रंगों में मिलता है- सफेद, काला, पीला सूखे पत्ते जैसा और हरा| इन सभी पर सफेद धारियां अवश्य होती हैं, ये धारियां कभी-कभी धुएं के रंग की भी होती है|
लहसुनिया को धारण- करने से पूर्व यह परीक्षण कर लेना उचित होता है कि कहीं इसमें ऐसे दोष तो नहीं हैं जिनके कारण यह रत्न अहितकारी परिणाम प्रदान करे। नीचे लिखे चिन्हों से युक्त लहसुनिया सदोष कहा जाता है -
यदि रत्न में आभाहीनता दिखाई दे तो ऐसा आभाहीन रत्न धनहानि करता है। रत्न खण्डित, गडढ़ेदार एवं दरार युक्त है तो यह दोष शत्रु संख्या में वृद्धि करता है। रत्न कि चमक में यदि ज्वाला का आभास जो की अत्यधिक प्रचण्ड ज्योतियुक्त हो तो, ऐसा वैदूर्य रत्न वैवाहिक जीवन में आग लगाता है। पत्नीघात इसका प्रमुख दोष है।
लहसुनिया रत्न पहनने के लाभ
वह जातक लहसुनिया रत्न धारण करके लाभान्वित हो सकता है, जिसकी कुण्डली में केतु ग्रह की स्थिति अनुकूल तो हो पर निर्बल हो। शुभ स्थिति वाले केतु को यदि वह निर्बल है तो सबल बनाकर उसका लाभ प्राप्त करने के लिए इस रत्न को धारण करना चाहिए।
पाश्चात्य ज्योतिषियों के अनुसार वे समस्त लोग बिना किसी शंका के लहसुनिया रत्न धारण कर सकते हैं, जिनका जन्म 15 मार्च से 14 अप्रैल के मध्य हुआ हो। यह रत्न भूत प्रेत की बाघा से ग्रस्त लोगों के लिए भी बहुत लाभदायक रहता है। यह पेट में गैस तथा पित्त नाशक भी होता है। इसे धारण करने से रात्रि में भयानक स्वप्न नहीं आते है, इसे धारण करने से यह दमें तथा सांस नली की सूजन में आराम पहुचाता है। लहसुनिया धारण करने से बल, तेज, पराक्रम, सम्पत्ति, सुख, आनन्द, पुत्र की प्राप्ति होती है।
यह दिमागी परेशानी, शारीरिक दुर्बलता, दुःख, दरिद्रता, भूत-बाधा से छुटकारा दिलाता है। जन्मकुण्डली के भावों में बैठे ग्रहों की स्थिति देखकर ज्योतिषी यह मालूम कर लेते हैं कि केतु की स्थिति कैसी है, एवं कौन कौन से ग्रह कुण्डली में कारक अवस्था में है एवं कौनसे ग्रह विरोधी हैं। लहसुनिया धारण करने से दुख:-दरिद्रता समाप्त हो जाता है। यह रत्न भूत बाधा तथा काले जादू से दूर रखने में सहायक माना जाता है। भूत-प्रेत का डर सता रहा हो तो लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए, इससे भूत-प्रेत संबंधि डर दूर होता है।
लहसुनिया धारण करने से केतू जनित समस्त दोष शांत हो जाते है। यह रत्न राहू, केतू, व शनि तीनों की दशा में भी अपना विशेष रूप प्रभाव दिखता है। कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु उपस्थित हो तो लहसुनिया रत्न पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।
कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया अवश्य पहनना चाहिए। केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी लहसुनिया धारण करना फायदेमंद होता है। कुंडली में केतु शुभ भावों का स्वामी हो और उस भाव से छठे या आठवें स्थान पर बैठा हो तो भी लहसुनिया पहना जाता है। कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या भाग्येश के साथ हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। कुंडली में केतु धनेश, भाग्येश या चौथे भाव के स्वामी के साथ हो या उनके द्वारा देखा जा रहा हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। लहसुनिया यदि अनुकूलता करे तो धन दौलत में तेजी से वृद्धि करता है। आकस्मिक दुर्घटना, गुप्तशत्रु से भी यह रक्षा करता है। लहसुनिया रत्न धारण करने से गुप्त शत्रुओं एवं सरकारी सजा से बचाव होता है |
लॉटरी, घुड़दौड़, आदि से गुप्त धन की प्राप्ति होती है | यह रत्न संतान सुख , मुख रोग , चेचक रोग , एनीमिया आदि रोगों में पहनना लाभप्रद होता है | व्यापार में वृद्धि होती है एवं अनेकों रोगों से मुक्ति मिलती है जैसे कि चेचक,रक्त अल्पता , अंडकोष, आदि से बचाव होता है | लहसुनिया आध्यात्मिक गुणों के लिए जाना जाता है। यह केतु के दोष पूर्ण प्रभाव से दूर करने में मदद करता है और बढ़ती ठंड के कारण शरीर में होने वाली बीमारियों को भी कम करता है। यह मन को शांत रखता है।
कुछ ज्योतिषियों का मत है कि केतु एक छाया ग्रह है. उसकी अपनी कोई राशि नहीं है, अत: जब केतु लग्न त्रिकोण अथव् तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में स्थित हो तो उसकी महादशा, में लहसुनिया धारण करने से लाभ होता है|यदि जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, सप्तम, अष्टम, या द्वादश भाव में स्थित हो तो इसे धारण नहीं करना चाहिए|
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लहसुनिया को धारण करने से शारीरिक दुर्बलता खत्म होती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है।माना जाता है कि यह रत्न दमे के रोगियों के लिए अत्याधिक लाभकारी होता है। कई रत्न ज्योतिषी श्वास नली में सूजन की परेशानी होने पर लहसुनिया धारण करने की सलाह देते हैं।
लहसुनिया रत्न धारण विधि--
लहसुनिया अथवा वैदूर्य को किसी ऐसे दिन धारण करना चाहिए, जब चन्द्रमा मीन, मेष या धनु राशि का हो, अथवा उस दिन अश्विनी, मघा या मूल नक्षत्र हो। इसे धारण करने का समय सूर्यास्त से लगभग एक पहर रात बीते तक उत्तम होता है। यह भी फौलाद, स्वर्ण अथवा पंचधातु की अँगूठी में धारण किया जाता है।
आयुर्वेद विज्ञान में भी वैदूर्य रत्न का उल्लेख बड़ी प्रचुरता से मिलता है। अन्य रत्नों की भाँति इस खनिज रत्न की भी भस्म चूर्ण के प्रयोग से अनेकों प्रकार की जटिल शारीरिक व्याधियों का उपचार किया जाता है। जटिल और अतिकष्टप्रद रोगों के निवारणार्थ वैदूर्य भस्म में विशेष गुण उपलब्ध है। इसका सेवन उपदंश, मूत्रकृच्छ जैसे सिफलिस और गोनोरिया, नपुंसकता, अतिसार, नेत्ररोग, श्वास विकार, पाण्डु, कामला आदि रोगों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
प्रसूता के लिए भी यह रत्न धारणीय है। इसके प्रभाव से प्रसव पीड़ा कम होती। यही नहीं, इसको धारण करने से अजीर्ण एवं प्रदर रोग का निवारण भी किया जाता है।
लहसुनिया का प्रयोग-
सोने या चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़ाकर सोमवार के दिन धारण करना चाहिए। चूंकि यह एक बेहद प्रभावशाली रत्न होता है इसलिए इसे धारण करने से पहले ज्योतिषी से सलाह परामर्श कर लेना चाहिए। लहसुनिया रत्न को चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर विधिपूर्वक, उपासना-जपादि करें. फिर श्रद्धा सहित इसको अद्र्धरात्रि के समय म्ाध्यमा या कनिष्ठा उंगली में धारण करें. इसका वजन 3 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए, इसे धारण करने से पहले ओम कें केतवे नम: मंत्र का 17000 बार जप करना चाहिए | लहसुनिया रत्न की अंगूठी सोने या चांदी में बनवाकर, कच्चे दूध व गंगाजल से धोकर अनामिका अंगुली में निम्नलिखित मंत्र के उच्चारण के साथ धारण करनी चाहिए -
OM स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः
अँगूठी को दूध में व् गंगाजल में स्नान करवा कर केतुदेव के मंत्र " ॐ ह्रीं केतवे नमः " का उच्चारण 108 बार करके अँगूठी को सिद्ध करके अनामिका उँगली में पहनना चाहिए |
लहसुनिया को खूब अच्छी तरह से परख कर एवं विश्वस्त दूकान से ही खरीदें क्योंकि लहसुनिया रत्न की जितनी अच्छी गुणवत्ता होगी उतना ही अच्छा लाभ देगा |
आप भृगुपंडित के अनुभवी एवं योग्य ज्योतिषाचार्य एवं पंडितों की टीम द्वारा सिद्ध ,शुद्ध एवं संस्कारित लहसुनिया रत्न भृगुपंडित के ऑफिस से फोन करके मंगवा सकते हैं | ज्योतिषशास्त्र में हर ग्रह के दोष को दूर करने एवं उसकी शांति के लिए उपाय किए जाते हैं।
अगर आपकी कुंडली में सूर्य, शनि या अन्य कोई भी ग्रह दोष है तो आप भृगुपंडित के अनुभवी एवं योग्य ज्योतिषाचार्य एवं पंडितों से ग्रह दोष पूजा करवा सकते हैं। इस पूजा की सबसे खास बात ये है कि आप अपने घर बैठे ही ऑनलाइन इस पूजा में शामिल हो सकते हैं।
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