भारतीय धार्मिक परम्पराएं क्या हैं
भारतीय धार्मिक परम्पराएं क्या हैं
भारतीय धार्मिक परम्पराओं, दर्शन व धर्मों में सनातन, जैन बौध,सिख व सम्प्रदाय पंथ आदि आते हैं। इन सब की जड़ें भारतीय हैं। इनमें आपसी सहमति व असहमतियां हैं। एक पंथ सम्प्रदाय की श्रद्दा व विश्वास दूसरे से भिन्न है। एक किसी सरोवर में नहाकर पुण्य कमाना मानता है तो दूसरा किसी नदी में, एक किसी पुस्तक पर आस्था रखता है तो दूसरा किसी दूसरी पुस्तक पर, एक ईश्वर को साकार मानता है तो दूसरा निराकार, एक आस्तिक है तो दूसरा नास्तिक भी है। भारतीय धार्मिक परम्पराएं क्या हैं
कोई हठ योगी है तो कोई भक्ति में विश्वास रखता है, कोई मूर्ति में साक्षात ईश्वर के दर्शन करता है तो कोई अंतरमुख होकर साधना करता है।
इऩमें कोई एक नियम नहीं, कोई एक विचारधारा को मानने की बाध्यता नहीं। हरेक अपनी श्रद्धा व विश्वास के अनुसार अपने संवैधानिक व धार्मिक अधिकार का प्रयोग करता है। हजारों सैंकड़ों सालों से हमारी यही परम्परा रही है। आपसी विचारधारा में असहमति तो रही है लेकिन किसी दूसके की विचारधारा का अपमान या मजाक कभी नहीं उड़ाया गया, न ही कोई नकारात्म सोच थी।
कोई भी कभी भी आस्तिक हो सकता है और नास्तिक भी। लेकिन किसी नास्तिक ने किसी मंदिर को ध्वस्त नहीं किया और न ही किसी आस्तिक ने नास्तिक की हत्या की। यही हमारी संस्कृति है, धर्म है और जीवन पद्धति भी। यही मान्यताएं हमें ईसाई,इस्लाम व यहूदियों से भिन्न करती हैं। हमारी मान्यताएं अलग-अलग होने के बावजूद हम एक सूत्र में पिरोए हुए हैं।
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भारतीय धार्मिक परम्पराओं, दर्शन व धर्मों में सनातन, जैन बौध,सिख व सम्प्रदाय पंथ आदि आते हैं। इन सब की जड़ें भारतीय हैं। इनमें आपसी सहमति व असहमतियां हैं। एक पंथ सम्प्रदाय की श्रद्दा व विश्वास दूसरे से भिन्न है। एक किसी सरोवर में नहाकर पुण्य कमाना मानता है तो दूसरा किसी नदी में, एक किसी पुस्तक पर आस्था रखता है तो दूसरा किसी दूसरी पुस्तक पर, एक ईश्वर को साकार मानता है तो दूसरा निराकार, एक आस्तिक है तो दूसरा नास्तिक भी है। भारतीय धार्मिक परम्पराएं क्या हैं
कोई हठ योगी है तो कोई भक्ति में विश्वास रखता है, कोई मूर्ति में साक्षात ईश्वर के दर्शन करता है तो कोई अंतरमुख होकर साधना करता है।
इऩमें कोई एक नियम नहीं, कोई एक विचारधारा को मानने की बाध्यता नहीं। हरेक अपनी श्रद्धा व विश्वास के अनुसार अपने संवैधानिक व धार्मिक अधिकार का प्रयोग करता है। हजारों सैंकड़ों सालों से हमारी यही परम्परा रही है। आपसी विचारधारा में असहमति तो रही है लेकिन किसी दूसके की विचारधारा का अपमान या मजाक कभी नहीं उड़ाया गया, न ही कोई नकारात्म सोच थी।
कोई भी कभी भी आस्तिक हो सकता है और नास्तिक भी। लेकिन किसी नास्तिक ने किसी मंदिर को ध्वस्त नहीं किया और न ही किसी आस्तिक ने नास्तिक की हत्या की। यही हमारी संस्कृति है, धर्म है और जीवन पद्धति भी। यही मान्यताएं हमें ईसाई,इस्लाम व यहूदियों से भिन्न करती हैं। हमारी मान्यताएं अलग-अलग होने के बावजूद हम एक सूत्र में पिरोए हुए हैं।
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