ईश्वर को मानव ने कैसे चालाकियों से प्रयोग किया

 ईश्वर को मानव ने कैसे चालाकियों से प्रयोग किया

ईश्वर के बारे में कई नजरिए हो सकते हैं। भारतीय धार्मिक परम्पराओं में ईश्वर है और ईश्वर नहीं है। ये दो विचार प्राचीन काल से चलते आ रहे हैं। इसके साथ-साथ यह भी चल रहा था कि हमारा ईश्वर व उनका ईश्वर, इस कथन में कोई विरोधाभास नहीं। हमारी पूजा पद्धति व उनकी पूजा पद्धति इसमें भी कोई विराधाभास नहीं। मेरा ईश्वर व तुम्हारा ईश्वर इसमें भी कोई विरोधाभास नहीं। हर कोई अपने-अपने ईश्वर की अराधना अपने तरीके से करता आ रहा है। 

इसी दौरान एब्राहमिक रीलीजन भी दूर अरब देशों में पैदा हो रहे थे। पहले यहूदी रिलीजन में गॉड आया और वह किसी स्थान से अपने अनुयायीयों को आदेश देता है कि जो भी जैनटाईल हैं उनसबका कत्ल कर दो क्योंकि ये लोग उसे नहीं मानते किसी अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। सारे जेनटाइट बच्चे, बूढ़े,महिलाएं, जवान आदि इस सनक के कारण नरसंहार की भेंट चढ़ गए। ईश्वर एक है और वह है यहूदियों का। इसके इलावा कोई ईश्वर नहीं क्योंकि पवित्र ग्रंथ टोरा में ऐसा लिखा है। इसके बाद ईसाईयों में एक और व्याख्या सामने आई और वह थी कि ईश्वर एक ही है और दूसरे भगवानों की पूजा करने वालों को कत्ल कर दो। जो हमारे गॉड को नहीं मानते और दूसरे भगवानों की पूजा करते हैं उनको जान से मार डालो। अभी यहीं बस नहीं हुआ एक और व्याख्या सामने आई ईश्वर एक ही है और दीयर इज नो गॉड अदर दैन अल्ला। इसमें कहा कहा कि जो अल्ला को नहीं मानता वो काफिर है। इस प्रकार नरसंहार का एक और अध्याय शुरु हो गया। 

इंसान ईश्वर की गणना नहीं कर सकता तो उसने क्यों कहा कि ईश्वर एक है। क्या इस दुनिया में कोई चीज एक है, नहीं। एक ही पेड़ का पत्ता दूसरे से अ्लग है, लाखों किस्म के फल, सब्जियां हैं, करोड़ों पक्षी, करोड़ों जीव जो एक दूसरे से भिन्न हैं। क्या ईश्वर को मानवीय गणना एक से इतना प्यार था तो उसने सारी कायनात में एक ही सूरज, एक तारा, एक आसमान, एक ही क्यों नहीं बनाया। क्या ईश्वर को 2 या 3 या 4 अंकों से डर लगता है कि वह 4 नहीं हो सकता या 33 कोटी नहीं हो सकता या करोड़ों में नहीं हो सकता। क्यों चालाकी से इंसान अपनी गणना ईश्वर पर थोप कर अपने राजनितिक एजैंडे पूरे करता है। क्यों इंसान पर थोपा जाए कि उसे एक ही ईश्वर को मानना है। क्यों कहा जाता है कि ईश्वर एक ही है, जबकि ईश्वर एक है तो अनेक भी हो सकता है। क्यों एक पर ही एकेश्वरवादियों के दीमाग की सूई सैंकड़ों सालों से अटकी पड़ी है। ईश्वर के बारे में एक इंसान की अनुभूति दूसरे से अलग क्यों होती है।

ईश्वर एक है वो किताब में लिखा है, उस किताब को किसने लिखा, उस किताब को लिखने वाले को किसने बताया, क्या कोई उसका गवाह है, क्योंकि किताब में लिखा है इसलिए ईश्वर एक ही है। बार-बार कहने से, करने से ऐसा माइंडसैट बन गया है कि वे किसी की बात सुनने को तैयार नहीं यदि कोई 2 कहता है तो वह  विस्फोट कर देते हैं कि उनके ईश्वर का अपनान हुआ क्योंकि उनका वाला ही असली है। ऐसी मानसिकता भारतीय गुलामों की भी हो चुकी है। हर बात पर मनोरोगियों की तरह आसमान की तरफ देखकर ईश्वर एक है कहते हैं। ईश्वर कण-कण में विराजमान है वो हर जगह है तो वह करोड़ों गुणा फैल भी सकता है और सिकुड़ भी। 

सबका अपना-अपना ईश्वर भी है। उसे किसी मानवीय गणना का शिकार न बनाओ वह शून्य भी हो सकता है माइनस वन भी और प्लस भी। वह रेखाओं में भी हो सकता है एक गोलों में भी, एक त्रिकोणों में भी। वह साक्षात भी हो सकता है निराकार भी। उसके अपने नियम हैं और नहीं भी।   












Comments

astrologer bhrigu pandit

नींव, खनन, भूमि पूजन एवम शिलान्यास मूहूर्त

मूल नक्षत्र कौन-कौन से हैं इनके प्रभाव क्या हैं और उपाय कैसे होता है- Gand Mool 2023

बच्चे के दांत निकलने का फल | bache ke dant niklne kaa phal