शंकराचार्य ने किस तरह सनातन धर्म को बचाया?
शंकरार्चाय का जन्म उस समय हुआ जब चर्वाक, बौध धर्म अपने पूरे उत्थान पर था। हर तरफ बौध धर्म का प्रचार हो रहा था और उसे बौध राजाओं का संरक्षण प्राप्त था। गुरुकुल खत्म होते जा रहे थे। वैदिक सनातनी परम्परा भी लुप्त हो रही थी। इस समय दौरान एक बच्चे ने मन में ठाना कि वह अपने धर्म की रक्षा करूंगा व सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोऊंगा। शंकराचार्य के सामने विकल्प थे कि वे या तो चवार्कों जो उस समय के वामपंथी थे जो वैदिक सनातन परम्परा के घोर विरोधी थे और इसके हर पक्ष को रिजैक्ट करते थे, के साथ मोर्चे में डट जाते या फिर बौधों के समक्ष मोर्चा लगाते।
बौधों की संख्या बहुत थी और वे शक्तिशाली भी थे। शंकरा को पता था कि यदि वह अगल-अलग मोर्चों पर लड़ेंगे तो शायद उनकी जीत न हो पाए। उच्च वर्ग के लोग बौध धर्म अपना चुके थे।
एक अकेले बालक को पहाड़ से लड़ना था। उसने पैदल अपनी यात्राएं शुरु कीं और गांव-गांव सनातन वैदिक धर्म की पताका थाम कर प्रचार करने लगे।
अपने पक्ष को निडरता से सामने रखते और विरोधियों का पूर्वपक्ष जानकर उन्हें हरा देते। उन्होंने समस्त सनातन पद्तियों का संरक्षण किया। वेद, वेदांग, ज्योतिष, पुराण, पौराणिक पात्रों, कामशास्त्र, शास्त्रीय संगीत, शास्त्रीय नृत्यों आदि सभी का पक्ष रखा। किसी को भी रिजेक्ट नहीं किया। जैसे था वैसे ही भारतीय धार्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। कोई हीन भावना नहीं गर्व के साथ सारी संस्कृति को अंगीकार करके प्रचार किया। वे चाहते तो पुराणों, ज्योतिष, कामशास्त्र, संगीत, नृत्य आदि को नकार सकते थे लेकिन उन्होंने गर्व के साथ उनका प्रचार किया और अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनके सभी दृष्टिकोण व्यवहारिक थे। चार धामों की स्थापना की।
अंग्रेज व सैकुलर सरकारें मानती थी कि यदि सनातन धर्म को खत्म करना है तो शंकरार्चाय को खत्म करना होगा। इसलिए हजारों नकली शंकरार्चाय पैदा कर दिए। उनके विरोध में हजारों तथाकथित भस्मासुर समाज सुधारक पैदा किए गए। ब्राहमणवादी कह कर वैदिक सनातन परम्पराओं पर कुठारात किया गया। एक ऐसा समाज जिसमें स्वयं को शुद्ध करने की परम्परा रही, जिसे किसी सुधार की जरूरत नहीं थी, उसमें नारिवादी, दलितवादी, पुरुषवादी, जातिवादी, मानवाधिकारों का हनन आदि की बातें फैलाकर हीनता भरी गई। बीमारी थी ही नहीं और बीमारी निकाली गई। समस्या थी नहीं समस्याएं जानबूझ कर पैदा की गईं।
वर्तमान में शंकराचार्य के विचारों को सेकुलर सरकार, संघी, वामपंथी, कांग्रेसी आदि विरोधी शक्तियों ने घेर कर दबा दिया है। बिके हुए भारतीयों ने ही अपनी संस्कृति का नाश करने के लिए भयानक काम किए हैं।
Comments
Post a Comment