श्राद्ध कर्म को कैसे नष्ट किया जाए

 श्राद्ध कर्म को कैसे नष्ट किया जाए


हिन्दुओं में अपने पूर्वजों के लिए सम्मान व उनको याद रखने का एक कर्म श्राद्ध कर्म है। इससे वे अपने पुरोहितों से जुड़े रहते हैं। इस प्रकार उनका यजमानों से धर्म आदि के बारे में संवाद भी होता रहता है। इस संवाद व परम्परा को तोड़ना बहुत ही जरूरी है। इस परम्परा से हिन्दू आपस में भावनात्मक व धार्मिक तौर पर जुड़े भी रहते हैं। श्राद्ध परम्परा में अपने पूर्वजों का नाम पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। इससे लोग अपने पूर्वजों से जुड़े रहते हैं और उन्हें पता रहता है कि उनकी जड़ें व इतिहास क्या है। इन्ही जड़ों को खत्म करना जरूरी है। इसके लिए हमें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए इनमें भस्मासुर पैदा किए जाएं जो वामपंथी नजरिए वाले स्वर्ण वर्ग से ही हों। बस दुष्प्रचार जारी रखें कि ब्राह्मणों को खिलाने से कुछ नहीं होता, मरे हुओं को कुछ नहीं मिलता, जीते जी मां-बाप की सेवा न करो मरने के बाद करने से क्या लाभ ऐसा कुप्रचार जारी रखने से यह परम्परा अब नष्ट ही हो चुकी है। एब्राहमिक संस्कृति तभी हावी हो सकती है जब हिन्दू संस्कृति को टुकड़ों में नष्ट कर दिया जाए। इतना दुष्प्रचार करो कि वे हीनता व शर्म महसूस करने लगें। वैसे तो हर भावनात्मक रिश्ते को तोड़ना है जैसे रक्षा बंधन, करवा चौथ, वट सावित्री पूजन आदि। हर त्यौहार को, हर मेले को, हर यात्रा को व हर परम्परा को ध्वस्त करना है।  (हिन्दू धर्म संस्कृति को कैसे नष्ट किया जाए )

नोट- हिन्दुओं को इस महान परम्परा को बचाए रखना है। इसको हर हाल में संरक्षित करना है। श्राद्ध कर्म जरूर करना है चाहे आप ही अपने परिवार के साथ करें। अपने पूर्वजों का नाम जहां तक याद रहे लिख कर अपने पास रखें और अपने बच्चों को भी उनके बारे में बताएं। बातों ही बातों में अपने दादा-दादी, नाना-नानी, पड़दादा, अपने गांव, अपने धर्म जाति आदि के बारे में बताएं और लिखित रूप में भी रखें। जिस प्रकार जन्मदिन मनाते हैं, शादी की सालगिरह मनाते हैं उसी तरह इस परम्परा को भी जारी रखें। गाय के लिए, कौए के लिए व श्वान के लिए श्राद्द वाले दिन भोजन जरूर रखें। हमारे पूर्वज हमारे ईश्वर के समान हैं और वे हमें आशीर्वाद देते हैं । ऐसी हमारी श्रद्धा व विश्वास है। 

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