शारदीय नवरात्रे 29 September 2019 से होंगे शुरु
शारदीय नवरात्रे 29 September 2019 से होंगे शुरु
शक्ति का प्रतीक मां के शारदीय नवरात्रे इस बार शारदीय नवरात्रे 29 September 2019 से होंगे से शुरु हो रहे हैं। केवल पुरुष ही परमात्मा का प्रतीक नहीं हैं। स्त्रीलिंग भी ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है।जहां शिव पुरूष तत्व है तो वहीं भवानी स्त्री तत्व का प्रतीक है। शिव शक्ति के बिना अधूरे हैं अौर शक्ति शिव के बिना। मानव की उत्पत्ति योनि से होती है। जिसमें पुरुष तत्व का भी सहयोग रहता है । यह एक प्रत्यक्ष सच्चाई है। मातृ शक्ति की अराधना नवकात्रों में की जाती है। यह एक मानव जाति पर ऋण भी है अौर उसका कर्तव्य भी। यह वही शक्ति है जिससे हमाारा जीवन है जो जीवन दायिनी है। जिसने हमें जीवन दिया है। नवरात्रे अाने से पहले ही भक्तों के चेहरों पर अालौकिक तेज अा जाता है। बाजारों में चहल- पहल हो जाती है। नौ दिनों मां शक्ति के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 बार नवरात्रे अाते हैं अौर पूरे जोरों खरोशों से मनाए जाते हैं।
अाजकल अधर्मी लोग हिन्दुअों का कोई भी त्यौहार अाने से पहले ही अपना प्रोपेगंडा चलाना शुरु कर देते हैं। जो कि भद्दे मजाक यहां तक की अपमानजनक भाषा में होता है।हिन्दुअों को इन लोगों को उन्हीं की भाषा में उत्तर देना चाहिए। अपनी अास्था को किसी भी हालत में टूटने नहीं देना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ रुप हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और घट स्थापना होती है। नवरात्रि के आखिरी यानि 10वें दिन कन्या पूजन होता है फिर उपवास खोला जाता है।
नवरात्रि का महत्व
हिन्दुअों में नवरात्रि का बहुत महत्व है। सारे वर्ष में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। आषाढ़ और माघ महीने में गुप्त नवरात्रि आते हैं। तांत्रिक गुप्त नवरात्रि में तंत्र की साधना करते है। मां भवानी को खुश करने के लिए तांत्रिक तंत्र साधना करते हैं। दूसरी तरफ सिद्धि साधना के लिए शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है।
नवरात्रि के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है।
नवरात्रि में शुभ कार्य
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
नवरात्रि का कैलेंडर: जानिए किस तिथि पर किस देवी की होगी आराधना
29 सितम्बर- नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी मां की पूजा होगी।
30 सितम्बर अक्टूबर- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा माता की पूजा होगी।
1 oct.- नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा माता की पूजा
2 oct- नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता माता की पूजा
3 0ct- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती माता की पूजा
4 oct- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी देवी मां की पूजा
5 - oct नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती माता की पूजा
6 oct- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी की पूजा
7 oct- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
8 oct- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी का महोत्सव होगा।
जानिए आदि शक्ति मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई
आदि शक्ति मां दुर्गा की उत्पत्ति का पुराणों में उल्लेख मिलता है। असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।
इस प्रकार भगवान शंकर जी के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज जी के तेज से मस्तक के केश, भगवान विष्णु जी के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।
इसके बाद भगवान शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।
इसके अलावा समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।
नोट -ये जानकारी धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसे जनरुचि को सामने रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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शक्ति का प्रतीक मां के शारदीय नवरात्रे इस बार शारदीय नवरात्रे 29 September 2019 से होंगे से शुरु हो रहे हैं। केवल पुरुष ही परमात्मा का प्रतीक नहीं हैं। स्त्रीलिंग भी ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है।जहां शिव पुरूष तत्व है तो वहीं भवानी स्त्री तत्व का प्रतीक है। शिव शक्ति के बिना अधूरे हैं अौर शक्ति शिव के बिना। मानव की उत्पत्ति योनि से होती है। जिसमें पुरुष तत्व का भी सहयोग रहता है । यह एक प्रत्यक्ष सच्चाई है। मातृ शक्ति की अराधना नवकात्रों में की जाती है। यह एक मानव जाति पर ऋण भी है अौर उसका कर्तव्य भी। यह वही शक्ति है जिससे हमाारा जीवन है जो जीवन दायिनी है। जिसने हमें जीवन दिया है। नवरात्रे अाने से पहले ही भक्तों के चेहरों पर अालौकिक तेज अा जाता है। बाजारों में चहल- पहल हो जाती है। नौ दिनों मां शक्ति के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 बार नवरात्रे अाते हैं अौर पूरे जोरों खरोशों से मनाए जाते हैं।
अाजकल अधर्मी लोग हिन्दुअों का कोई भी त्यौहार अाने से पहले ही अपना प्रोपेगंडा चलाना शुरु कर देते हैं। जो कि भद्दे मजाक यहां तक की अपमानजनक भाषा में होता है।हिन्दुअों को इन लोगों को उन्हीं की भाषा में उत्तर देना चाहिए। अपनी अास्था को किसी भी हालत में टूटने नहीं देना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है जो नवमी तक चलता है। माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ रुप हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री और घट स्थापना होती है। नवरात्रि के आखिरी यानि 10वें दिन कन्या पूजन होता है फिर उपवास खोला जाता है।
नवरात्रि का महत्व
हिन्दुअों में नवरात्रि का बहुत महत्व है। सारे वर्ष में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। आषाढ़ और माघ महीने में गुप्त नवरात्रि आते हैं। तांत्रिक गुप्त नवरात्रि में तंत्र की साधना करते है। मां भवानी को खुश करने के लिए तांत्रिक तंत्र साधना करते हैं। दूसरी तरफ सिद्धि साधना के लिए शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है।
नवरात्रि के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है।
नवरात्रि में शुभ कार्य
शारदीय नवरात्रि में हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। नवरात्रि के 9 दिन बहुत शुभ होते हैं इसमें किसी विशेष कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती। इन खास दिनों पर लोग गृह प्रवेश और नई गाड़ियों की खरीददारी करते हैं।
नवरात्रि का कैलेंडर: जानिए किस तिथि पर किस देवी की होगी आराधना
29 सितम्बर- नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी मां की पूजा होगी।
30 सितम्बर अक्टूबर- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- चंद्रघंटा माता की पूजा होगी।
1 oct.- नवरात्रि का तीसरा दिन- कुष्मांडा माता की पूजा
2 oct- नवरात्रि का चौथा दिन- स्कंदमाता माता की पूजा
3 0ct- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती माता की पूजा
4 oct- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी देवी मां की पूजा
5 - oct नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती माता की पूजा
6 oct- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी की पूजा
7 oct- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
8 oct- दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी का महोत्सव होगा।
जानिए आदि शक्ति मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई
आदि शक्ति मां दुर्गा की उत्पत्ति का पुराणों में उल्लेख मिलता है। असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।
इस प्रकार भगवान शंकर जी के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज जी के तेज से मस्तक के केश, भगवान विष्णु जी के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।
इसके बाद भगवान शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।
इसके अलावा समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।
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