कृष्ण क्या हैं, जीवन,धर्म का आधार
कृष्ण क्या हैं, जीवन,धर्म का आधार
भगवान कृष्ण जिनका जब जन्म हुआ को मौत सिर पर मंडरा रही थी। कारागृह से कोसों दूर भेज दिया गया। उनका हर दिन एक नया था, हर समय मौत सिर पर मंडराती रहती, वह गायों को चराता, माखन भी चुराता और सखियों के संग नाचता गाता।
कान्हा आगे बढ़ते गए उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह ग्यारह वर्ष तक वृंददावन में रहे, यही बचपन था जो उन्होंने जीया खूब खेला, नाचा गाया, सखियों को परेशान भी किया लेकिन हर पल मौत से लड़ते भी रहे।
वृंदावन से मथुरा गए और फिर कभी वापस नहीं आए।
मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में उन्होंने सिंहासन सम्भाला अपनी जान के दुश्मन कंस को मारकर। वे जानते थे नहीं मारा तो कंस मार डालेगा। राजा बने लेकिन अपने बचपन के गरीब दोस्त सुदामा को नहीं भूले। अनेक लड़ाइयां लड़ीं, केवल धर्म की स्थापना के लिए और फिर रचा महाभारत का चक्रव्यूह। कभी कोई श्रेय नहीं लिया, बस सगे संबंधियों ने भी श्राप ही दिए, मुस्कराते कभी गिला न किया।
धर्म के सारिथी बने, क्योंकि उन्होंने उनका साथ दिया जिनके हाथ में न तो सत्ता थी और न ही राजसिंहासन। उगते सूर्य के साथ सभी होते हैं तो माधव ने क्यों हारे हुओं का साथ दिया।
माधव चाहते कौरवों के पक्ष में होकर सत्ता का आनंद लेते क्या जरूरत थी पांडवों के लिए लड़ने की। लेकिन वे लड़े अधर्म को पराजित करने के लिए। माधव जैसा चरित्र दूसरा नहीं हो सकता केवल केशव ही हो सकते हैं।
भगवान कृष्ण जिनका जब जन्म हुआ को मौत सिर पर मंडरा रही थी। कारागृह से कोसों दूर भेज दिया गया। उनका हर दिन एक नया था, हर समय मौत सिर पर मंडराती रहती, वह गायों को चराता, माखन भी चुराता और सखियों के संग नाचता गाता।
कान्हा आगे बढ़ते गए उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह ग्यारह वर्ष तक वृंददावन में रहे, यही बचपन था जो उन्होंने जीया खूब खेला, नाचा गाया, सखियों को परेशान भी किया लेकिन हर पल मौत से लड़ते भी रहे।
वृंदावन से मथुरा गए और फिर कभी वापस नहीं आए।
मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में उन्होंने सिंहासन सम्भाला अपनी जान के दुश्मन कंस को मारकर। वे जानते थे नहीं मारा तो कंस मार डालेगा। राजा बने लेकिन अपने बचपन के गरीब दोस्त सुदामा को नहीं भूले। अनेक लड़ाइयां लड़ीं, केवल धर्म की स्थापना के लिए और फिर रचा महाभारत का चक्रव्यूह। कभी कोई श्रेय नहीं लिया, बस सगे संबंधियों ने भी श्राप ही दिए, मुस्कराते कभी गिला न किया।
धर्म के सारिथी बने, क्योंकि उन्होंने उनका साथ दिया जिनके हाथ में न तो सत्ता थी और न ही राजसिंहासन। उगते सूर्य के साथ सभी होते हैं तो माधव ने क्यों हारे हुओं का साथ दिया।
माधव चाहते कौरवों के पक्ष में होकर सत्ता का आनंद लेते क्या जरूरत थी पांडवों के लिए लड़ने की। लेकिन वे लड़े अधर्म को पराजित करने के लिए। माधव जैसा चरित्र दूसरा नहीं हो सकता केवल केशव ही हो सकते हैं।
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