क्या ब्रहमा, विष्णु व शिव की मृत्यु होती है
क्या ब्रहमा, विष्णु व शिव की मृत्यु होती है
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण- धार्मिक ग्रंथों का सहारा लेकर इसके पक्ष-विपक्ष में आप अन्य उत्तरों को तो पढ़ ही लेंगे। हम यहां किसी ग्रंथ का हवाला नहीं देंगे। हम सिर्फ मनोवैज्ञानिक तौर पर इसका विश्लेषण करेंगे। ब्रहमा, विष्णु व शिव भारतीय जनमानस में केवल देव या भगवान ही नहीं एक विश्वास भी हैं, दृढ़ विश्वास जैसे परमात्मा है। विश्वास की मृत्यु तब होती है जब इसकी हत्या करके नए विश्वास को खड़ा कर दिया जाता है। ये देव मृत्यु को प्राप्त होते हैं या नहीं कभी विवाद का विषय नहीं रहा क्योंकि जब तक मानव है ये देव भी उसके हृदय में निवास करते रहेंगे और पूजनीय भी रहेंगे।
अब कैसे इस विश्वास को तोड़ा जाए और एक नया नैरेटिव पेश किया जाए। मानव यह अच्छी तरह जानता है कि इस धरा में जो भी है उसे खत्म होना ही है। यह एक सच्चाई भी है तो क्यों न इस घेरे में उसके अराध्य देवों को लेकर आया जाए और उनके इस विश्वास की चालाकी से हत्या करके एक नया दम्भी विश्वास सामने खड़ा कर दिया जाए। बस काम इतनी चालाकी से होना चाहिए कि किसी को पता ही न चले और इस बात को दुरुस्त करने के लिए उनके विश्वास को ही तोड़ मरोड़ कर सामने पेश कर दिया जाए। ऐ
सा ही जैसे एक चालाक पिज्जा वाला अलग से एक चटनी व मसाला डालकर इसके असल स्वाद को ही खत्म कर देता है और इस डिश का कोई ओर नाम रख देता है। फिर वह कहता है कि पिज्जा खाने से कैंसर हो जाता है इसलिए आप मेरी यह डिश खाएं जो स्वस्थय वर्धक है। इसके लिए वह आसान शिकार खोजता है जिन्होंने असली पिज्जा कभी खाया ही न हो और इसके बारे में जानते भी न हों। ऐसा ही होता है क्योंकि वह संस्कृत के गूढ़ शब्दों की व्याख्या किसी विशेषज्ञ या शंकाराचार्य जिन्होंने सारी उम्र वेदों को समझने में ही लगा दी से नहीं करवाता चालाकी से यहां वहां से शब्द उठाता है और अपना प्रोपेगंडा पेश कर देता है।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण- धार्मिक ग्रंथों का सहारा लेकर इसके पक्ष-विपक्ष में आप अन्य उत्तरों को तो पढ़ ही लेंगे। हम यहां किसी ग्रंथ का हवाला नहीं देंगे। हम सिर्फ मनोवैज्ञानिक तौर पर इसका विश्लेषण करेंगे। ब्रहमा, विष्णु व शिव भारतीय जनमानस में केवल देव या भगवान ही नहीं एक विश्वास भी हैं, दृढ़ विश्वास जैसे परमात्मा है। विश्वास की मृत्यु तब होती है जब इसकी हत्या करके नए विश्वास को खड़ा कर दिया जाता है। ये देव मृत्यु को प्राप्त होते हैं या नहीं कभी विवाद का विषय नहीं रहा क्योंकि जब तक मानव है ये देव भी उसके हृदय में निवास करते रहेंगे और पूजनीय भी रहेंगे।
अब कैसे इस विश्वास को तोड़ा जाए और एक नया नैरेटिव पेश किया जाए। मानव यह अच्छी तरह जानता है कि इस धरा में जो भी है उसे खत्म होना ही है। यह एक सच्चाई भी है तो क्यों न इस घेरे में उसके अराध्य देवों को लेकर आया जाए और उनके इस विश्वास की चालाकी से हत्या करके एक नया दम्भी विश्वास सामने खड़ा कर दिया जाए। बस काम इतनी चालाकी से होना चाहिए कि किसी को पता ही न चले और इस बात को दुरुस्त करने के लिए उनके विश्वास को ही तोड़ मरोड़ कर सामने पेश कर दिया जाए। ऐ
सा ही जैसे एक चालाक पिज्जा वाला अलग से एक चटनी व मसाला डालकर इसके असल स्वाद को ही खत्म कर देता है और इस डिश का कोई ओर नाम रख देता है। फिर वह कहता है कि पिज्जा खाने से कैंसर हो जाता है इसलिए आप मेरी यह डिश खाएं जो स्वस्थय वर्धक है। इसके लिए वह आसान शिकार खोजता है जिन्होंने असली पिज्जा कभी खाया ही न हो और इसके बारे में जानते भी न हों। ऐसा ही होता है क्योंकि वह संस्कृत के गूढ़ शब्दों की व्याख्या किसी विशेषज्ञ या शंकाराचार्य जिन्होंने सारी उम्र वेदों को समझने में ही लगा दी से नहीं करवाता चालाकी से यहां वहां से शब्द उठाता है और अपना प्रोपेगंडा पेश कर देता है।
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