मिथिहास या एपिक से क्या अभिप्राय है?
मिथिहास या एपिक से क्या अभिप्राय है
किसी भी घटना का समय, डेट, सन आदि न पता हो तो उसे अब्रहमिक व वामपंथी नजरिए में मिथिक या काल्पनिक या अंग्रेजी में एपिक कहा जाता है। ऐसी घटनाओं को जिन ग्रंथों में लिखा गया होता है वे भी काल्पनिक माने जाते हैं। इन ग्रंथों आदि की सभी बातें काल्पनिक होती हैं जो किसी भी घटनाक्रम को काल्पनिक तरीके से बताती हैं। हिन्दू धर्म के वेदों सहित हर धार्मिक ग्रंथों को काल्पनिक घोषित किया गया है। जाहिर है इनके सभी पात्र भी काल्पनिक होंगे। जब आप किसी ग्रंथ को काल्पनिक घोषित कर देते हो तो आपको एक अधिकार मिल जाता है कि अपने एजैंडे के अनुसार उसकी व्याख्या कर सकते हैं। ऐसे ही जब बीआर चोपड़ा ने महाभारत सीरियल बनाया तो महाभारत ग्रंथ में लिखे गए हर पात्र को उसी अनुसार पेश करने का पूरा प्रयास किया गया। जिस प्रकार करोड़ों लोगों की धर्मिक भावनाएं हैं,उनका पूरा सम्मान किया गया। लेकिन वामपंथियों ने एकता कपूर से हमारा महाभारत धारावाहिक बनाया जिसमें द्रोपदी को टैटू और पांडव माडल्स बनाए गए। इसे बाद देवदत्त पटनायक ने भी धार्मिक भावनाओं की धज्जियां उड़ाते हुए मेरी गीता, मेरा महाभारत आदि ग्रंथों का मनघढ़ंत विवेचन किया। आज ये ग्रंथ हर हवाई अड्डे, बुक शाप व युनिवर्सिटी कैम्पस में मिल जाएंगे।
मान लो 50 करोड़ लोग एक नेरेटिव पर विश्वास करते हैं जिसमें वे एक पात्र को ईश्वर मानते हैं तो इस पात्र के बारे में अलग-अलग नेरेटिव तैयार किए जाते हैं। जिससे 50 करोड़ लोग भ्रमित हों, हर नेेरेटिव में सत्य का दावा किया जाए या चल रहे नेरेटिव से एकदम से ऐसा नेरेटिव तैयार किया जाए कि एकदम से मेसेज वायरल हो जाए। यदि मान भी लिया जाए कि द्रोपदी के पांच पति थे तो वर्तमान में कोई भी स्त्री पांच पुरुषों से शादी नहीं करती और न ही यह संवैधानिक तौर पर मान्य है। यदि आज कोई स्त्री 5 पति रखना चाहती है तो यह विवाद का मुद्दा हो सकता था लेकिन ऐसी कोई स्थिति नहीं है। हां एक पुरुष आपको 4 शादियां करता मिल जाएगा क्योंकि उनके धार्मिक ग्रंथ में 4 शादियां जायज है। आमिर खान एकतरफा हिन्दू परम्पराओं पर तौर तो अपने कार्यक्रम में एजैंडे के तहत प्रश्न उठाता है लेकिन उसे मुस्लिम महिलाओं की स्थिति, तलाक, हलाला, अहमदिया, आतंकवाद, इनब्रीडिंग, शिया- सुन्नी की समस्याएं दिखाई नहीं देती, वह चालाकी से उन्हें नहीं दिखाता। इससे हिन्दू समाज को टार्गेट करके नीचा दिखाए जाने का प्रयास किया जाता है। किसी ग्रंथ को पढ़कर कोई आतंकवादी बनता है तो यह जरूर बहस का मुद्दा है। यह बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए कि द्रोपदी के पांच विवाह थे या 6 या एक। ऐसे मुद्दे जानबूझ कर उठाए जाते हैं। यह मुद्दा तब होता जब महिलाएं द्रोपदी के की उदाहरण लेकर 5 पति रखने की मांग करती। धर्म ग्रंथों व उनके पात्रों को लेकर चालाकी से उठाए गए नेरेटिव को बहस का मुद्दा नहीं बनाना और उसे वहीं दफन कर देना है।
हिन्दू जनमानस में यह ग्रंथ काल्पनिक नहीं हैं, वे इनके पात्रों को ईश्वर की तरह पूजते हैं। यह भारतीयों का इतिहास है। इन ग्रंथों को मिथिहास कहना एक तरह का अपराध है।
किसी भी घटना का समय, डेट, सन आदि न पता हो तो उसे अब्रहमिक व वामपंथी नजरिए में मिथिक या काल्पनिक या अंग्रेजी में एपिक कहा जाता है। ऐसी घटनाओं को जिन ग्रंथों में लिखा गया होता है वे भी काल्पनिक माने जाते हैं। इन ग्रंथों आदि की सभी बातें काल्पनिक होती हैं जो किसी भी घटनाक्रम को काल्पनिक तरीके से बताती हैं। हिन्दू धर्म के वेदों सहित हर धार्मिक ग्रंथों को काल्पनिक घोषित किया गया है। जाहिर है इनके सभी पात्र भी काल्पनिक होंगे। जब आप किसी ग्रंथ को काल्पनिक घोषित कर देते हो तो आपको एक अधिकार मिल जाता है कि अपने एजैंडे के अनुसार उसकी व्याख्या कर सकते हैं। ऐसे ही जब बीआर चोपड़ा ने महाभारत सीरियल बनाया तो महाभारत ग्रंथ में लिखे गए हर पात्र को उसी अनुसार पेश करने का पूरा प्रयास किया गया। जिस प्रकार करोड़ों लोगों की धर्मिक भावनाएं हैं,उनका पूरा सम्मान किया गया। लेकिन वामपंथियों ने एकता कपूर से हमारा महाभारत धारावाहिक बनाया जिसमें द्रोपदी को टैटू और पांडव माडल्स बनाए गए। इसे बाद देवदत्त पटनायक ने भी धार्मिक भावनाओं की धज्जियां उड़ाते हुए मेरी गीता, मेरा महाभारत आदि ग्रंथों का मनघढ़ंत विवेचन किया। आज ये ग्रंथ हर हवाई अड्डे, बुक शाप व युनिवर्सिटी कैम्पस में मिल जाएंगे।
मान लो 50 करोड़ लोग एक नेरेटिव पर विश्वास करते हैं जिसमें वे एक पात्र को ईश्वर मानते हैं तो इस पात्र के बारे में अलग-अलग नेरेटिव तैयार किए जाते हैं। जिससे 50 करोड़ लोग भ्रमित हों, हर नेेरेटिव में सत्य का दावा किया जाए या चल रहे नेरेटिव से एकदम से ऐसा नेरेटिव तैयार किया जाए कि एकदम से मेसेज वायरल हो जाए। यदि मान भी लिया जाए कि द्रोपदी के पांच पति थे तो वर्तमान में कोई भी स्त्री पांच पुरुषों से शादी नहीं करती और न ही यह संवैधानिक तौर पर मान्य है। यदि आज कोई स्त्री 5 पति रखना चाहती है तो यह विवाद का मुद्दा हो सकता था लेकिन ऐसी कोई स्थिति नहीं है। हां एक पुरुष आपको 4 शादियां करता मिल जाएगा क्योंकि उनके धार्मिक ग्रंथ में 4 शादियां जायज है। आमिर खान एकतरफा हिन्दू परम्पराओं पर तौर तो अपने कार्यक्रम में एजैंडे के तहत प्रश्न उठाता है लेकिन उसे मुस्लिम महिलाओं की स्थिति, तलाक, हलाला, अहमदिया, आतंकवाद, इनब्रीडिंग, शिया- सुन्नी की समस्याएं दिखाई नहीं देती, वह चालाकी से उन्हें नहीं दिखाता। इससे हिन्दू समाज को टार्गेट करके नीचा दिखाए जाने का प्रयास किया जाता है। किसी ग्रंथ को पढ़कर कोई आतंकवादी बनता है तो यह जरूर बहस का मुद्दा है। यह बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए कि द्रोपदी के पांच विवाह थे या 6 या एक। ऐसे मुद्दे जानबूझ कर उठाए जाते हैं। यह मुद्दा तब होता जब महिलाएं द्रोपदी के की उदाहरण लेकर 5 पति रखने की मांग करती। धर्म ग्रंथों व उनके पात्रों को लेकर चालाकी से उठाए गए नेरेटिव को बहस का मुद्दा नहीं बनाना और उसे वहीं दफन कर देना है।
हिन्दू जनमानस में यह ग्रंथ काल्पनिक नहीं हैं, वे इनके पात्रों को ईश्वर की तरह पूजते हैं। यह भारतीयों का इतिहास है। इन ग्रंथों को मिथिहास कहना एक तरह का अपराध है।
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