प्रतीक और चिन्ह क्या हैं
प्रतीक और चिन्ह क्या हैं
किसी भी देश की सभ्यता,संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उसके प्रतीकों व चिन्हों की बहुत ही उपयोगिता है। इनमें एक ऐसे अणुओं के समान ताकत होती है कि ये किसी भी समाज को एक पल में ही किसी भी साहसिक या अपराधिक कार्य करने के लिए अग्रसर कर सकते हैं। आज रोमन सभ्यता जैसी कई सभ्यताएं व उनके प्रतीत- चिन्ह नष्ट कर दिए गए या उनपर अपना कब्जा कर लिया गया। आज रोमन सभ्यता डैड है औ उसके अवषेश केवल म्युजिमों में ही मिलते हैं।
अब महर्षि आर्यभट्ट ने शून्य व पाई की वैल्यू जानी तो उसमे उन्हें प्रतीक के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
जब जर्मनी में हिटलर ने नाजियों की फौज तैयार की तो उसने उन्हें स्वातिक का विकृत रूप प्रतीक के रूप में दिया और तरह मयांमार में बौध संत थिराजु ने भी अंकों को प्रतीक के रूप में देश के लोगों के समक्ष रखा, सारे बौध एकजुट हो गए।
देश का झंडा लेकर जब सैनिक युद्ध में जाता है तो वह इस प्रतीक की रक्षा के लिए अपना बलिदान तक दे देता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह तो तीन रंगों व कपड़े का एक टुकड़ा ही तो है, लेकिन इस झंडे में इतनी ताकत है कि ये एक पल मेें सारे देश्वासियों को एकजुट कर सकता है। हमें अपने प्रतीकों का सम्मान करना उनका संरक्षण करना होगा। किसी भी प्रीतक व चिन्ह को नहीं छोड़ना चाहे कोई कैसे भी लोजिक दे। किसी भी प्रतीक के मूल रूप से छेड़छाड़ से भी परहेज करना चाहिए। केवल एक प्रतीक के मूल रूप से छेड़छाड़ में चाहे आज इतना अंतर महसूस न हो लेकिन 400 साल बाद इसके भयंकर परिणाम भी निकल सकते हैं।
किसी भी देश की सभ्यता,संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उसके प्रतीकों व चिन्हों की बहुत ही उपयोगिता है। इनमें एक ऐसे अणुओं के समान ताकत होती है कि ये किसी भी समाज को एक पल में ही किसी भी साहसिक या अपराधिक कार्य करने के लिए अग्रसर कर सकते हैं। आज रोमन सभ्यता जैसी कई सभ्यताएं व उनके प्रतीत- चिन्ह नष्ट कर दिए गए या उनपर अपना कब्जा कर लिया गया। आज रोमन सभ्यता डैड है औ उसके अवषेश केवल म्युजिमों में ही मिलते हैं।
अब महर्षि आर्यभट्ट ने शून्य व पाई की वैल्यू जानी तो उसमे उन्हें प्रतीक के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
जब जर्मनी में हिटलर ने नाजियों की फौज तैयार की तो उसने उन्हें स्वातिक का विकृत रूप प्रतीक के रूप में दिया और तरह मयांमार में बौध संत थिराजु ने भी अंकों को प्रतीक के रूप में देश के लोगों के समक्ष रखा, सारे बौध एकजुट हो गए।
देश का झंडा लेकर जब सैनिक युद्ध में जाता है तो वह इस प्रतीक की रक्षा के लिए अपना बलिदान तक दे देता है। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह तो तीन रंगों व कपड़े का एक टुकड़ा ही तो है, लेकिन इस झंडे में इतनी ताकत है कि ये एक पल मेें सारे देश्वासियों को एकजुट कर सकता है। हमें अपने प्रतीकों का सम्मान करना उनका संरक्षण करना होगा। किसी भी प्रीतक व चिन्ह को नहीं छोड़ना चाहे कोई कैसे भी लोजिक दे। किसी भी प्रतीक के मूल रूप से छेड़छाड़ से भी परहेज करना चाहिए। केवल एक प्रतीक के मूल रूप से छेड़छाड़ में चाहे आज इतना अंतर महसूस न हो लेकिन 400 साल बाद इसके भयंकर परिणाम भी निकल सकते हैं।
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