हिन्दू धर्म ग्रंथों, अराध्यों व त्यौहारों का सैकुलराईजेशन

हिन्दू धर्म ग्रंथों, अराध्यों व त्यौहारों का सैकुलराईजेशन

हिन्दू धर्म ग्रंथों, अराध्यों व त्यौहारों का सैकुलराईजेशन बड़े ही सुनियोजित ढंग से होता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों, अराध्यों व त्यौहारों ईश्वरीय आस्था, श्रद्धा व चिन्हों को निकाल दिया जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों का अनुवाद एक आम पुस्तक की तरह किया जाता है जिसमें उसमें शामिल अराध्यों को या तो नकार दिया जाता है या  फिर उनको आम राजा, महापुरुष व काल्पनिक पात्र की तरह प्रस्तुत किया जाता है।
 इनमें डिवनिटी का जो पक्ष होता है उसे भी बाहर कर दिया जाता है। वांपपंथी महाभारत व रामायण का जब अनुवाद करते हैं तो उसमें भगवान राम व कृष्ण को एक आम राजा आदि के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। इन महाकाव्यों को केवल राजनीतिक काव्यों के तौर पर ही प्रस्तुत किया जाता है। वेदों को भी सैकुलर तरीके से पढ़ाया व पढ़ा जाता है। जैसे एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए खत्म कहानी। इससे इन्हें या तो पुस्तकालयों में रखा जाएगा और फिर पढ़ने के बाद रद्दी वालों को बेच दिया जाएगा जैसे हम आम पुस्तकों व नावल इत्यादि के साथ करते हैं।

अब तो योग का भी पूरी तरह से सैकुलराईजेशन हो चुका है। इसमें से जो धार्मिक आस्थाएं जैसे शाकाहार रहना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, ईश्वर से जुड़ना, सदाचार का पालन करना, ओम का उच्चारण करना, धार्मिक चिन्हों को निकाल दिया गया है और इसे पूरी तरह सैकुलर इवैंट जैसे जिम में व्यायाम करना, नशों के खिलाफ दौड़ निकालना, महिला अत्याचारों के खिलाफ कैंडल मार्च करना आदि जैसा बना दिया गया है।

धार्मिक नृत्यों जैसे कत्थक, मोहिनी अट्टम आदि में भाव भंगिमाओं में बदवाव, कथा में बदलाव कर दिया गया है। अब इन नृत्यों के दौरान सामने ओम, सरस्वति व अराध्य देव की प्रतिमा व दीप प्रज्जवलन भी नहीं किया जाता। इन कथाओं में यीशु की कथाओं या अन्य सैकुलर कथाओं ने स्थान ले लिया है। शास्त्रीय संगीत में भी ऐसा ही किया जा चुका है,इसमें धार्मिकता व आस्था का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया है।

 योग की जगह क्रिश्चियन योगा व मुस्लिम योगा ने ले लिया है। इसी प्रकार का खेल हिन्दू त्यौहारों के साथ भी खेला जा रहा है। दीवाली में से भगवान राम की कथा को निकाल कर इसे दीयों का सैकुलर त्यौहार यानि फैस्टिवल आफ लाइट्स बनाया जा रहा है जिसका अराध्यों व धर्म से कोई लेना देना नहीं। इसी तरह होली को फैस्टीवल आफ कलर के तहत इसमें पारम्परिक स्वरूप में नहीं खेला जाता जिसे फूलों की होली कहा जाता है। इसमें से भी भगवान कृष्ण के संबंध व धार्मिक महत्व को निकालने के प्रयास जारी हैं।

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