इतनी सदियां बीतने के बाद भी जैन समुदाय का हिन्दू धर्म से अटूट रिश्ता कैसे सुदृढ़ रहा
इतनी सदियां बीतने के बाद भी जैन समुदाय का हिन्दू धर्म से अटूट रिश्ता कैसे सुदृढ़ रहा
जैन व सनातन धर्म सदियों से एक सूत्र में ही रहे। इनमें वैचारिक भिन्नता होने के बावजूद ये व्यवहारिक तौर पर हिन्दू समाज से ऐसे जुड़े रहे जैसे एक जिस्म दो जान। जैन धर्म आत्म तत्वी है और नास्तिक है वहीं सनातन धर्म ईश्वरवादी है। दोनों धर्मों के मंदिर अलग होते हैं व ईष्ट भी अलग होते हैं लेकिन इनके विवाह व अंतिम संस्कार पूरी तरह से वैदिक रीति से होते हैं। जैन समुदाय का एक कथन जीओ व जीने दो ने सारी दुनिया के एक नई दिशा दी। एक अन्य कथन कि यह मेरा अनुभव है संभवत मैं गलत भी हो सकता हूं जीवन दर्शन का एक ऐसा खुला रास्ता है कि यहां हर महानुभाव के लिए जगह है, सम्मान है।
जैन समुदाय में मुनियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों आदि का योगदान रहा। ब्राह्मण मुनियों ने महान ग्रंथों की रचना की, जैन ज्योतिष आदि को लिखकर जैन धर्म को बहुत ही उत्कृष्ट बनाया। आज किसी भी मंच पर जैन मुनि कभी भी हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं, धर्म ग्रंथों आदि की आलोचना नहीं करते। जब हिन्दुओं पर अत्याचार होता है तो खुलकर इसका विरोध करते हैं। एक बार एक मुनि को किसी ने पूछा कि आप गंगा जी को पवित्र नहीं मानते और उसमें स्नान करने से परहेज करते हैं तो मुनि श्री ने उत्तर दिया कि हम गंगा जी को इतना पवित्र मानते हैं कि उसमें अपना अपवित्र शरीर तक नहीं लेकर जाते।
जैन समुदाय हर हिन्दू त्यौहार में शामिल होता है, हर मंदिर में भी जाता है यदि नहीं भी जाता तो सम्मान पूरा करता है और तन-मन-धन से सहयोग भी देता है। आज देश में अल्पसंख्यक होने के बावजूद जैन स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानता, हिन्दुओं से अलग होने के बावजूद व भावनात्मक रूप से उनसे पूरी तरह जुड़ा है। जैन समुदाय का भारत में हर क्षेत्र में महान योगदान है जिसका हर भारतीय ऋणि है।
जैन समुदाय ने हमेशा राष्ट्रहित में ही योगदान दिया, हिन्दुओं में भी जैनियों के प्रति पूरी आस्था है। ऐसा सदभाव शायद ही दुनिया के किसी कोने में मिलता हो।
जैन व सनातन धर्म सदियों से एक सूत्र में ही रहे। इनमें वैचारिक भिन्नता होने के बावजूद ये व्यवहारिक तौर पर हिन्दू समाज से ऐसे जुड़े रहे जैसे एक जिस्म दो जान। जैन धर्म आत्म तत्वी है और नास्तिक है वहीं सनातन धर्म ईश्वरवादी है। दोनों धर्मों के मंदिर अलग होते हैं व ईष्ट भी अलग होते हैं लेकिन इनके विवाह व अंतिम संस्कार पूरी तरह से वैदिक रीति से होते हैं। जैन समुदाय का एक कथन जीओ व जीने दो ने सारी दुनिया के एक नई दिशा दी। एक अन्य कथन कि यह मेरा अनुभव है संभवत मैं गलत भी हो सकता हूं जीवन दर्शन का एक ऐसा खुला रास्ता है कि यहां हर महानुभाव के लिए जगह है, सम्मान है।
जैन समुदाय में मुनियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्यों आदि का योगदान रहा। ब्राह्मण मुनियों ने महान ग्रंथों की रचना की, जैन ज्योतिष आदि को लिखकर जैन धर्म को बहुत ही उत्कृष्ट बनाया। आज किसी भी मंच पर जैन मुनि कभी भी हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं, धर्म ग्रंथों आदि की आलोचना नहीं करते। जब हिन्दुओं पर अत्याचार होता है तो खुलकर इसका विरोध करते हैं। एक बार एक मुनि को किसी ने पूछा कि आप गंगा जी को पवित्र नहीं मानते और उसमें स्नान करने से परहेज करते हैं तो मुनि श्री ने उत्तर दिया कि हम गंगा जी को इतना पवित्र मानते हैं कि उसमें अपना अपवित्र शरीर तक नहीं लेकर जाते।
जैन समुदाय हर हिन्दू त्यौहार में शामिल होता है, हर मंदिर में भी जाता है यदि नहीं भी जाता तो सम्मान पूरा करता है और तन-मन-धन से सहयोग भी देता है। आज देश में अल्पसंख्यक होने के बावजूद जैन स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानता, हिन्दुओं से अलग होने के बावजूद व भावनात्मक रूप से उनसे पूरी तरह जुड़ा है। जैन समुदाय का भारत में हर क्षेत्र में महान योगदान है जिसका हर भारतीय ऋणि है।
जैन समुदाय ने हमेशा राष्ट्रहित में ही योगदान दिया, हिन्दुओं में भी जैनियों के प्रति पूरी आस्था है। ऐसा सदभाव शायद ही दुनिया के किसी कोने में मिलता हो।
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