क्या छोटे देश इंग्लैंग का संविधान बड़े देश के लिए लाभदायक है?

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क्या छोटे देश इंग्लैंग का संविधान बड़े देश के लिए लाभदायक है?
आप सभी को पता है कि इंग्लैंग एक छोटा सा देश जो मौजूदा राज्य पंजाब जितना ही है। इस देश जैसा संविधान भारत देश पर बड़े देश पर लागू किया गया है। क्या ऐसा संविधान इतने बड़े देश के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है। देश में सरकारें बनाने वह सरकारें तोडऩे के लिए हर तरह के प्रपंच इस्तेमाल किए जाते हैं। वोट के लिए जाति, धर्म, लिंग व क्षेत्र का सहारा लिया जाता है और लोगों को आरक्षण आदि के लिए एक दूसरे के खिलाफ भड़काकर नफरती तौर पर एकजुट करके वोट लिया जाता है। इस प्रकार समाज व देश को तोडऩे का हर प्रयास किया जाता है और राजनीतिक दल इसमें कामयाब भी होते हैं। नफरत फैलाने व समाज से तोडऩे के लिए तिलक, तराजू और तलवार इनके मारो जूते चार आदि के नारे देकर तोड़े गए लोगों नफरती भावना से एक साथ जोड़ा जाता है और उन्हें वोट के लिए इस्तेमाल किया जाता  है। इस प्रकार लोकतंत्र वोट की प्रकिया तो चलती है लेकिन देश वैचारिक तौर पर टूट जाता है। लोगों को नफरती साहित्य पढ़ाया जाता है और धार्मिक पुस्तकों को जलाया जाता है। इसके पीछे कारण यही होता है कि बहूसंख्यक हिन्दू समाज से तोड़े गए लोग वापस अपने समाज में न चले जाएं। इसके लिए नफरत की दीवार खड़ी कर दी जाती है कि कोई भी इसे फांद कर वापस न जा सके। यदि वह वापस चला जाएगा तो वोट टूट जाएगा और सारी करी कराई मेहनत बेकार चली जाएगी। बुद्ध धर्म शांति और अहिंसा का धर्म है इसमें नफरत की कोई जगह नहीं।
दलाई लामा बौद्धों के गुरु को नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है। दुनिया को शांति का संदेश देते हैं। जापान, चीन, म्यामार, थाईलैंड,श्रीलंका आदि अन्य देशों में बौद्ध बसते हैं। लेकिन भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। भारत में कुछ तथाकथित बौद्ध सिर्फ हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काए गए हैं । ये सिर्फ अपने मूल धर्म के खिलाफ ही नफरती जहर उगलते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए करवाया जाता है कि ये धर्मपरिवर्तित लोग किसी
भी तरह अपने मूल धर्म में वापस न लौट जाएं।
यदि भारत को तरक्की करनी है तो हमें पहले अमेरिका जैसा संघीय संवैधानिक सिस्टम अपनाना होगा क्योंकि मौजूदा संविधानिक सिस्टम जोड़-तोड़, नफरती, अलगाववादी, खरीद-फरोख्त की राजनीति को ही बढ़ावा देता प्रतीत होता है। इंगलैंड जैसे छोटे देश के लिए तो ये संविधान ठीक है लेकिन भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। आज नहीं तो कल हमें अमेरिका जैसी संघीय चुनावी व्यवस्था को अपनाना ही पड़ेगा नहीं तो बहुत देर हो चुकी होगी।

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