सत्य व असत्य को व्यवहारिक पटल पर कैसे जांचा जा सकता है

सत्य व असत्य को व्यवहारिक पटल पर कैसे जांचा जा सकता है

सत्य व असत्य एक मानसिक स्थितियां हैं। इनको व्यवहारिक पटल पर विभिन्न कोणों से जांचा जा सकता है। एक आतंकवादी सैंकड़ों निर्दोष लोगों की हत्याएं करता है, पुलिस उसे पकड़ती है, 10 साल तक केस चलता है, इस दौरान गवाहों को खरीद लिया जाता है या डरा-धमका कर भगा दिया जाता है, लोग भी भूल जाते हैं कि कभी कोई घटना हुई थी। आतंकी को सबूतों की कमी के कारण रिहा कर दिया जाता है। इस प्रकार असत्य जीत जाता है।

एक लड़की से सामूहिक बलात्कार होता है, पैसे, राजनीतिक पावर आदि के बल पर आरोपी बचा लिए जाते हैं । गरीब को न्याय नहीं मिलता। आरोपी बरी होते ही पीड़िता के परिवार पर हमला करके उन्हें खत्म कर देते हैं। मामला ठंडा पड़ जाता है। ऐसी घटनाएं सैंकड़ों हैं जिसमें असत्य जीत जाता है। एक दुकानदार अपने सामान को बेचने के लिए सौ तरह के झूठ बोलता है। आपको हैरानी होगी कि पश्चिम के किसी देश में यह नहीं पढ़ाया जाता कि सत्य की हमेशा जीत होती है क्योंकि व्यवहारिक धरातल में ऐसा कुछ नहीं है। अंग्रेजों ने जब भारत को गुलाम बनाया तो उनके शब्दकोश में सत्य व असत्य.न्याय अन्याय जैसा कोई शब्द नहीं था। उन्होंने जीत के लिए हत्याएं, अत्याचार आदि सबकुछ किया। यदि भारतीय अन्य भारतीयों की हत्याएं करते तो वे कोई कार्रवाई नहीं करते थे लेकिन जैसे ही किसी अंग्रेज की हत्या की जाती वे पूरे गांव को ही इसकी सजा देकर नष्ट कर देते थे।
   अंग्रेजों को  बताया जाता था कि वे गोरे हैं इसलिए सर्वश्रेष्ठ हैं, सर्वोत्तम हैं। ये जो गुलाम हैं ये असभ्य हैं और इनको गुलाम बना कर इनपर वे कोई उपकार कर रहे हैं। उन्हें प्रशिक्षित किया गया था कि कैसे हिन्दू-मुसलमान में बंटवारा करना है, कैसे दलित व स्वर्ण को आपस में लड़वाना है। किस राजा को किस समय अपने साथ रखना है और किस समय उसे नष्ट कर देना है। किस समय कैसी संधी करनी है और किस समय उस संधी को अपनी सुविधा के अनुसार भंग कर देना है। किसे कितना सम्मान देना है और किसे धूल में मिला देना है। अंग्रेजों में एक नस्लवादी अहंकार था।

जो लोग इस भ्रम में हैं कि वे सत्य पर खड़े हैं तो वे केवल भ्रम का ही शिकार हैं। आज मिस्र,रोम आदि सभ्यताएं मिट चुकी हैं क्योंकि इन्हें भी गुमान था कि हम सत्य पर खड़े हैं। ऱणक्षेत्र कुरुक्षेत्र में आज भी महाभारत चल रहा है, बस समय व पात्रों के नाम बदल गए हैं, ये निरंतर चलता रहता है,हर युग में। सत्य व असत्य का संघर्ष भी। चालाकियां, क्रूरता, रक्तपात, हिंसा, धूर्तता, अपमान, झूठ,फरेब, बहादुरी, संयम, कौरवों-पांडवों दोनों तरफ है। बस आपने देखना है कि धर्म किस तरफ है।



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