संस्कृतियों का संरक्षण, सांस्कृतिक नरसंहार क्या है

संस्कृतियों का संरक्षण, सांस्कृतिक नरसंहार क्या है

हर मानव को संस्कृति का संरक्षण करने अधिकार दिया गया है। यदि व सभ्य समाज में रह रहा है तो भी व अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है । वशर्ते वह उस देश के कानून के खिलाफ न हो या कोई आपराधिक कृत्य न हो। हर किसी को अपनी भाषा, रहन सहन, आस्था, खान-पान आदि का पालन करने का अधिकार है लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं ले लेना चाहिए कि वह दूसरे की संस्कृति को नष्ट करे। किसी दूसरे कि संस्कृति को नष्ट करना सांस्कृतिक नरसंहार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, और यह दंडनीय अपराध माना जाना चाहिए।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद संस्कृतियों के टकराव के कारण मानवजाति को भयानक नुकसान उठाना पड़ा था। सभी देशों में मिलकर फैसला किया था कि किसी देश पर आक्रमण नहीं किया जाएगा, नरसंहार नहीं होगा व सांस्कृतिक नरसंहार नहीं होगा लेकिन भारी विरोध के चलते सांस्कृतिक नरसंहार को चालाकी से हटा दिया गया क्योंकि इससे किसी अब्रहामिक देश को दूसरे लोगों का धर्म परिवर्तन करने से छूट नहीं मिलती। किसी का जबरन, लालच देकर धर्मपरिवर्तन करना सांस्कृतिक नरसंहार की श्रेणी में ही माना जाएगा।

दुनियाभर के देशों ने अपने आदिवासियों को यह अधिकार दिया कि वे अपने क्षेत्रों में रहकर अपनी संस्कृति का पालन कर सकते हैं। बाहरी हस्तक्षेप नहीं होगा। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में इसका कड़ाई से पालन होता है। किसी को भी इन क्षेत्रों में जाकर आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करने की आज्ञा नहीं है। अंडेमान निकोबार में भी भारत ने ऐसा ही कानून बनाया है। पिछले दिनों अमेरिकी मिशनरी सदस्य जो वहां गया था तो उसकी वहां के आदिवासियों ने हत्या कर दी थी।

भारत के राज्यों में आदिवासियों का भीषण रूप से धर्मपरिवर्तन किया गया। पूर्वोतर के आदिवासियों की संस्कृति का नाश कर दिया गया। वोट बैंक की राजनीति ने सारा काम तमाम कर दिया। 1950 के दौरान मिशनरियों में वहां अति दुर्गम क्षेत्रों में डेरे बना लिए थे और 65 सालों में वे अपने काम में पूरी तरह से सफल रहे। यह सांस्कृतिक नरसंहार इतने आराम से हुआ कि किसी को कानोकान खबर तक नहीं लगी।  इसका असर आज सबके सामने है।

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