मां भवानी व शिवाजी राजे का हिन्दवी राष्ट्र
मां भवानी व शिवाजी राजे का हिन्दवी राष्ट्र
जंगल में अपनी ईष्टधात्री मां भवानी के बनाए गए मंदिर में रात्रि को शिवाजी राजे खड़े थे। हाथ में रक्त से सनी नंगी तलवार थी, आंखें लाल, भवानी मां के आगे शिवाजी ने अपने रक्त से तिलक किया और फिर अपने साथ खड़े सैनापति व अन्य महारथियों को भी तिलक दिया। शिवाजी की आवाज जंगल में शेर की भांति गूंज रही थी। शिवाजी मां भवानी की शेर पर चढ़ी प्रतिमा की आंखों में आंखें डालकर शपथ उठा रहे थे। जै भवानी के जय घोष से शिवाजी ने शपथ उठाई कि हे भवानी मां जब तक मेरे शरीर में रक्त की बूंद तक रहेगी मैं हिन्दवी राष्ट्र की स्थापना के लिए रणभूमि में उतरता रहूंगा। मां मुझे आशीर्वाद दे, मैं जब तुम्हारा ध्यान करता हूं तो मेरे में 100 शेरों जैसा बल आ जाता है।
बस फिर मेरी तलवार दुश्मनों को ऐसे काटती है जैसे गाजर-मूली को काटा जाता है। मेरे को पता नहीं क्या हो जाता है, बिजली सी शक्ति आ जाती है। हर-हर महादेव व जय भवानी के जयघोष रणभूमि में मराठाओं में बिजली सी शक्ति फूंक देते हैं। माता जीजाबाई और मेरे गुरु समर्थ रामदास का ही प्रताप है कि दुश्मन हमसे डरकर भागता फिरता है। जब हम धावा बोलते हैं तो हम इंसान नहीं,महाकाल, कालभैरव हो जाते हैं। एक ही वार में दुश्मन का धड़ सर से अलग। मां भवानी अगर आप न होती तो मैं भी नहीं होता और न ही रण होता,मैं तो कहीं शांत, ध्यान में मग्न बैठा एक सन्यासी होता। रण चंडी का भक्त होना आसान नहीं, बस यह एक ऐसा उन्माद है जो सर चढ़ कर बोलता है। ((क्रमश)
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