रसिक हिन्दुओं को कैसे सही संदेश पहुंचाएं हिन्दू संत

रसिक हिन्दुओं को कैसे सही संदेश पहुंचाएं हिन्दू संत 

रसिक हिन्दू संगीत सुनते हैं, गाते हैं और नाचते हैं। ये रस के पुजारी जहां भी इनको रस मिलता है चले जाते हैं चाहे सूफी की दरगाह ही क्यों न हो। ये इनको अपने धार्मिक कार्यक्रमों में भी बुलाते हैं। इनको दुनिया से कोई लेना देना नहीं होता क्योंकि ये वे लोग हैं जिनके पास नौकरियां हैं, धन है, कारोबार हैं और ये लोग रस के लिए धन खर्च करते हैं। कहीं सूखा प्रवचन हो तो वहां आपको 4 या 5 से अधिक श्रद्दालु नहीं मिलेंगे लेकिन कहीं रंगमंच, संगीत की लहरियां, फिल्मी गानों की तर्ज पर भजन हों तो हजारों लोग सुनने को आ जाएंगे। ये लोग रस को नहीं छोड़ सकते । 
ये रसिक वैसे ही हैं जैसे लोग ब्रांडेड कपड़े पहनने वाले, महंगी शिक्षा के लिए विदेशों में बच्चों को पढा़ने के लिए भेजने वाले, सिनेमाहाल में हजारों रुपए खर्चने वाले, अपनी शादियों में बेतहाशा दिखावा करने वाले, अपने घरों को करोड़ों के महंगे फर्निचरों से सजाने वाले, महंगे होटलों में राते रंगीन करने वाले हैं । इनमें अंतर यह है कि इन्हें सबकुछ धर्म में ही चाहिए और ये हाई प्रोफाइल संतों को बनाते हैं। जो एक कार्यक्रम का 20 से 25 लाख तक लेते हैं। ग्राहक हैं तो माल भी बाजार में मिलेगा, डिमांड है तो सप्लाई भी होगी। बस यही फंडा है। ये संत पैसे में खेलते हैं और एक कलाकार की तरह व्यवहार करने लगते हैं। इनको कोई भी पैसा देता है ये उसी के गुण गाते हैं। ये वैसा ही है जैसे हेमामालिनी या सलमान खान किसी साबुन को प्रोमोट कर रहे होते हैं। 

ये लोग वर्तमान के कुरुक्षेत्र के बारे में नहीं जानते और न ही ये प्रशिक्षित हैं कि कैसे अब्राहामिक रीलिजन अपना जाल फैलाते हैं। ये संत काम देश के कानून के अनुसार मान्य व  ठीक ही कर रहे होते हैं लेकिन कब अपनी मर्यादा लांघ जाते हैं इनको पता नहीं चलता। देश की सरकार सैकुलर है, हिन्दू सेकुलर हैं तो ये भी वैसा ही राग अपनाते हैं। अब इन संतों को अपने प्रवचनों में प्वाइजन पिल्स शामिल करनी होंगी, इसके लिए इन्हें कारपोरेट कम्पनी के सीईओ की तरह प्रशिक्षित होना होगा। 

 ये वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे अन्य वामपंथ की तरफ झुकाव वाले संत हिन्दू धार्मिक परम्पराओं का खुलकर विरोध करते हैं क्योंकि वे भी प्रशिक्षित नहीं हैं कि उन्हें क्या बोलना है और क्या नहीं। मैंने देखा कि एक हिन्दू दुकानदार की दुकान में ही बने के पूजा स्थल में बाइबल जिसपर लिखा था पवित्र शास्त्र पड़ी थी, मैंने पूछा कि ये यहां क्यों तो उसने बहुत ही भोलेपन से उत्तर दिया कि रामनवमी की शोभायात्रा के दौरन लोग बांट रहे थे तो मुझे भी दी, पवित्र शास्त्र है तो मैंने उसे मंदिर में रख दिया। 

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