हिन्दू अपने बच्चों का नाम प्राण नहीं रखते
हिन्दू अपने बच्चों का नाम प्राण नहीं रखते
आपने फिल्मी किरदार प्राण के बारे में तो सुुना ही होगा। बालीवुड में अपनी एक्टिंग से धमाल मचाले वाले 70 के दशक के महान कलाकार प्राण की आपने फिल्में तो देखी होंगी। प्राण ने हर तरह के रोल अदा किए लेकिन उन्हें
विलेन के रूप में ही ख्याति मिली। फिल्म में प्राण का नाम आने से दर्शकों में मनों में कौतुहल पैदा हो जाता।
दिल्ली में जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनके पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे। प्राण खुद भी कम आकर्षक नही थे लेकिन उनकी दिली ख्वाहिश कैमरे के पीछे रहकर फोटोग्राफी करने की ही थी 7 लाहौर में उन्होंने बतौर फोटोग्राफर भी काम किया लेकिन ये संयोग था कि कैमरे को शायद उनकी शक्लो-सुरत ज्यादा पसंद आ गयी और वो कैमरे के आगे आ गए। उनकी खनकदार आवाज के लोग आज भी दीवाने हैं। 1940 में उन्हें यमला जट नाम की पंजाबी फिल्म में पहली बार अभिनय करने का मौका मिला।
आजादी से पहले तक प्राण ने लाहौर में करीब 22 फिल्मो में काम किया लेकिन आजादी और बंटवारे के बाद वो मुम्बई आ गए। यहां संघर्ष का नया सिलसिला शुरू हुआ। चूँकि इससे पहले उनकी छवि खल नायक के तौर पर स्थापित हो चुकी थी लिहाजा उनके पास खलनायक के ही ज्यादातर ऑफर आते गए और वो सबको कुबूल करते गए। इस दौरान उन्होंने ये नही सोचा कि खलनायक का किरदार नफरत करने वाला होता है या प्यार करने वाला। बस किरदार की जिन्दगी को संजीदगी से जीने में विशवास करते लगे।
बाद के दौर उनकी शैली को ओर भी कई कलाकारो ने भी अपनाने की कोशिश की 7 आंकड़ो के मुताबिक़ प्राण ने करीब 400 फिल्मो में काम किया था। राम और श्याम फिल्म में उन्होंने ऐसी चतुर और खलनायकी दिखाई कि लोगो ने प्राण से घृणा करना शुरू कर दिया लेकिन सच्चाई तो यह है कि उनके किरदार से की गयी घृणा या नफरत , उनकी अभिनय क्षमता की सफलता की पहचान बनी प्राण जब तक खलनायक का किरदार निभाते रहे , तब तक उतने ही मशहूर रहे जितने कि चरित्र अभिनेता का किरदार निभाकर।
हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया 7 साथ ही साल 1997 में उन्हें फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से सम्मानित किया गया 7 अपने लम्बे फि़ल्मी करियर और शानदार सफलता को देखते हुए साल 2012 का दादा साहब फाल्के सम्मान दिया गया 7 12 जुलाई 2013 को इस शानदार अभिनेता ने प्राण त्यागे।
पिछले 40 वर्षों से कोई हिन्दू माता -पिता अपने बच्चे का नाम प्राण नहीं रख रहा। इसका कारण यह है कि कोई
नहीं चाहता कि प्राण जैसा कोई खलनायक बने।
आपने फिल्मी किरदार प्राण के बारे में तो सुुना ही होगा। बालीवुड में अपनी एक्टिंग से धमाल मचाले वाले 70 के दशक के महान कलाकार प्राण की आपने फिल्में तो देखी होंगी। प्राण ने हर तरह के रोल अदा किए लेकिन उन्हें
विलेन के रूप में ही ख्याति मिली। फिल्म में प्राण का नाम आने से दर्शकों में मनों में कौतुहल पैदा हो जाता।
दिल्ली में जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनके पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे। प्राण खुद भी कम आकर्षक नही थे लेकिन उनकी दिली ख्वाहिश कैमरे के पीछे रहकर फोटोग्राफी करने की ही थी 7 लाहौर में उन्होंने बतौर फोटोग्राफर भी काम किया लेकिन ये संयोग था कि कैमरे को शायद उनकी शक्लो-सुरत ज्यादा पसंद आ गयी और वो कैमरे के आगे आ गए। उनकी खनकदार आवाज के लोग आज भी दीवाने हैं। 1940 में उन्हें यमला जट नाम की पंजाबी फिल्म में पहली बार अभिनय करने का मौका मिला।
आजादी से पहले तक प्राण ने लाहौर में करीब 22 फिल्मो में काम किया लेकिन आजादी और बंटवारे के बाद वो मुम्बई आ गए। यहां संघर्ष का नया सिलसिला शुरू हुआ। चूँकि इससे पहले उनकी छवि खल नायक के तौर पर स्थापित हो चुकी थी लिहाजा उनके पास खलनायक के ही ज्यादातर ऑफर आते गए और वो सबको कुबूल करते गए। इस दौरान उन्होंने ये नही सोचा कि खलनायक का किरदार नफरत करने वाला होता है या प्यार करने वाला। बस किरदार की जिन्दगी को संजीदगी से जीने में विशवास करते लगे।
बाद के दौर उनकी शैली को ओर भी कई कलाकारो ने भी अपनाने की कोशिश की 7 आंकड़ो के मुताबिक़ प्राण ने करीब 400 फिल्मो में काम किया था। राम और श्याम फिल्म में उन्होंने ऐसी चतुर और खलनायकी दिखाई कि लोगो ने प्राण से घृणा करना शुरू कर दिया लेकिन सच्चाई तो यह है कि उनके किरदार से की गयी घृणा या नफरत , उनकी अभिनय क्षमता की सफलता की पहचान बनी प्राण जब तक खलनायक का किरदार निभाते रहे , तब तक उतने ही मशहूर रहे जितने कि चरित्र अभिनेता का किरदार निभाकर।
हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया 7 साथ ही साल 1997 में उन्हें फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से सम्मानित किया गया 7 अपने लम्बे फि़ल्मी करियर और शानदार सफलता को देखते हुए साल 2012 का दादा साहब फाल्के सम्मान दिया गया 7 12 जुलाई 2013 को इस शानदार अभिनेता ने प्राण त्यागे।
पिछले 40 वर्षों से कोई हिन्दू माता -पिता अपने बच्चे का नाम प्राण नहीं रख रहा। इसका कारण यह है कि कोई
नहीं चाहता कि प्राण जैसा कोई खलनायक बने।
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