ओशो कैसे चालाकी से दाना डालता है
ओशो कैसे चालाकी से दाना डालता है
ओशो को अच्छी तरह पता था कि अमेरिकी क्या चाहते हैं। अमेरिकी चाहते थे कि उन्हें नशा करने, सैक्स करने और जो ये लोग करते हैं इसे एक अलग धाॢमक मान्यता मिल जाए जिससे वे मनमर्जी कर सकें। सामूहिक सैक्स करना एक ट्रेंड बन गया था जिसे करने के लिए वे धाॢमक मान्यता चाहते थे। ओशो को वहां अपने विचार बेचने थे वैसे ही विचार जिसे वे चाहते थे। वह चालाकी से एक विचारधारा को पकड़ता और ऐसे विषय चुनता जिनका कोई प्रमाण नहीं बस प्रश्र ही उठाता और स्वयं ही जवाब देता।
खिलाफ बोलने के लिए साफ्ट टार्गेट चुनता वह इस्लाम व ईसाई धर्म के खिलाफ कुछ नहीं कहता क्योंकि इससे उसकी जान को खतरा हो सकता था और बड़ी चालाकी से अपने पहले से तैयार किए गए वामपंथियों के मसाले को अमेरिकियों के सामने परोसता। वह कभी भी अमेरिकी इतिहास के काले कारनामों, अमेरिकियों की गंदी आदतों के खिलाफ नहीं बोलता बल्कि वह तो उन आदतों को मान्यता प्रदान करता था। हर कोई मजे मारना चाहता है जब उसे बता दिया जाता है कि जो आप करेंगे ये तो एक धर्म का ही हिस्सा है।
वह उन्हें किसी तरह का कानून न मानने के लिए उकसाता क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी कोई भी कानून नहीं मानना चाहते। ओपन सैक्स और ज्यादा से ज्यादा गांजा व एलसीडी मजा आ गया और क्या चाहिए किसी कानून का डर नहीं। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे सीरिया में बगदादी वहां की जनता को हिंसा करने व दूसरों मारने के लिए धाॢमक मान्यता प्रदान करता है। चालाकी से एक विचारधारा से तोड़ा जाता है। धर्म ग्रंथों को निशाना व देवी देवताओं पर आज के कानून व समय के आधार पर विवेचना की जाती है।
यह छिपा दिया जाता है कि पांच हजार साल पहले कानून अलग थे लोगों की सोच अलग थी। जो आज के समय अनुसार गलत है वह उस समय गलत नहीं माना जाता था। द्रोपदी के पांच पति थे तो यह मामला आम नहीं था और न ही शास्त्रों व उस समय के अनुसार मान्य था लेकिन फिर भी समाज ने उन्हें फतवा देकर बाहर नहीं किया बल्कि अपनाया। आज यदि कोई पति 4 विवाह कर सकता है और पत्नी कहे कि उसे भी अधिकार है 5 पति रखने का तो क्याआज का समाज उसे अपनाएगा।
आज एक पत्नी अपने पति की इजाजत के बिना कुछ रातें कहीं काट आती है तो क्या उसके पति का क्या नजरिया होगा जो उसे बाजार भी अकेला नहीं जाने देता। भगवान कृष्ण की 16 हजार पत्नियां थी लेकिन कोई नहीं बताएगा कि आज किसी की 16 हजार पत्नियां हो सकती हैं। उस समय उन 16 हजार कन्याओं को उन्होंने एक राक्षस की कैद से छुड़वाया था और इन कन्याओं ने कहा था कि हे माधव हम इस राक्षस की कैद में रही हैं अब हमें समाज में कौन अपनाएगा। तो भगवान ने उन्हें अभय दान देते हुए अपनी रानियों का दर्जा दिया था। क्या आज के जमाने में कोई है जो जीबी रोड में कैद मजबूरी से अपना शरीर बेचने को मजबूर कन्याओं से शादी करके उन्हें समाज मे सिर ऊंचा करके जीने का अधिकार देगा। वह दलित स्वर्ण का कार्ड भी चालाकी से खेलता है। ओशो पारे वाली बात घड़ता है और शोषण का मामला टार्गेट करता है। शायद कोई नहीं क्योंकि लोग महिलाओं को सिर्फ सैक्स की वस्तु समझते हैं। ऋुुषियों की बहुत सारी पत्नियां थी लेकिन किसी भी ऐसे ऋषि का नाम नहीं बताता। उस समय बहुविवाह को बुरा नहीं माना जाता था। यह आम मान्य परम्परा थी राजे भी करते थे और प्रजा भी बहुविवाह करते थे। अब राम के बारे में कहना कि उन्होंने सीता को अग्रि परीक्षा क्यों दिलवाई। आज किसी मंत्री को जनता कहे कि इस्तीफा दो तो वह कुर्सी से चिपक र बैठा रहता है। ऐसा कहने वाले को ही मरवा देता है। धोबी तो केवल गरीब व्यक्ति था। राम उसे उठवा कर मरवा देते बात यहीं खत्म हो जानी थी या सीता के विरुद्ध कुछ कहने पर सर कलम करवा देते। ऐसा ही होता है न आज कि कार्टून बनाने पर गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। या सैंकड़ों साल पहले बने किसी नियम के आदार पर ईश निंदा करने वालों के सर कलम कर दिए जाते हैं। राम ने ऐसा नहीं किया, मामला मंत्रियों के ध्यान में लाया गया। मंत्रियों ने विचार विमर्श करने के बाद उस समय के कानूनों के अनुसार अपने निर्णय सुनाए।
राजा बंधा था राजधर्म के नियमों से उस समय वह राजा था सीता का पति नहीं। अब बौद्ध धर्म के गौतम बुद्ध हिन्दू क्षत्रिय वंश में पैदा होने वाले राजा थे। उनके सारे अनुयायी हिन्दू थे और हिन्दुओं की जब सारी आबादी थी उसी दौरान बुद्ध धर्म का फैलाव हुआ यानि नास्तिकवाद का फैलाव। किसी ने बुद्ध पर हमला नहीं किया जबकि वह खुलेआम वैदिक धॢमयों का विरोध करते थे। आदि गुरु शंकराचार्य जी के अवतरण पर उन्होंने वाद-विवाद कर बौद्धों की धज्जियां उड़ाई और लोगों को वापस वैदिक धर्म में लाया। ओशो बड़ी चालाकी से मुगलों द्वारा बोद्ध, जैनियों के नरसंहार को छिपा लेता है और इसका दोष हिन्दुओं पर मढ़ देता है।
नालंदा, तक्षशिला सहित हजारों मंदिरों के तोड़े जाने का तथ्य नहीं बताता। वह नहीं बताता कि बौद्ध कैसे अफगानिस्तान से मार दिए गए। वह पहले से झूठी घड़ी गई बातों को प्रवचन में शामिल करता है क्योंकि उसे पता है कि सुनने वाले शिष्य हैं और कोई भी शिष्य अपने गुरु से प्रमाण मांगने की धृष्टता तो नहीं करता। वह मनघढ़ंत निम्र स्तर पर नफरत मीठी गोली की तरह खिलाता है और शिष्य बिना सोचे समझे निगल लेते हैं। ओशो नाम भी अपना चालाकी से भगवान चुनता है क्योंकि उसे पता था कि इससे दुनिया भर में विवाद होगा और इससे उसको और ज्यादा मुफ्त में प्रसिद्ध मिलेगी।
जब उसे पता चलता है कि अब वह ज्यादा दिन तक नहीं जीने वाला तो वह ओशो बन जाता है। अंत समय में उसे प्रसिद्ध की चिंता नहीं रहती लेकिन वह अंत में अपने पत्ते खोलता है कि वह तो नास्तिक था। यदि वह पहले पत्ते खोलता तो शायद नास्तिक होने के कारण उसे कोई मुंह न लगाता और वह भी किसी वामपंथी की तरह एक दो किताबें लिखकर चले जाता। उसने चालाकी से धर्म व आस्तिकतावाद का चोला अंत तक ओढ़े रखा और चेले उसे ईश्वर की रूप मानते रहे।
एतिहासिक बातों को कहने का उद्देश्य यही होता है कि अमेरिकी समझें कि वही सर्वोच्च हैं और उनका कल्चर व उनका एतिहास ही साफ सुथरा है बाकि भारतीय तो गंदे हैं और इनका इतिहास भी इनसे ज्यादा गंदा है। वह चालाकी से भारतीयों को अपने को निचले दर्जे का मानने के कहता है। उनमें ग्लानि भरता है क्योंकि उसको इससे ही फायदा है। आज अमेरिकी जो उसके चेले थे उसे छोड़ चुके हैं। विनोद खन्ना तो वापस आ गया था। आज ओशो की किताबें नहीं बिकती क्योंकि उसकी चालाकी को लोग समझ चुके है। याद रहे धाॢमक ग्रंथ, वेद उपनिशद, नाट्यशास्त्र आदि सभी कुछ केवल हिन्दुओं का नहीं ,यह हर भारतवासी के हैं।
ओशो को अच्छी तरह पता था कि अमेरिकी क्या चाहते हैं। अमेरिकी चाहते थे कि उन्हें नशा करने, सैक्स करने और जो ये लोग करते हैं इसे एक अलग धाॢमक मान्यता मिल जाए जिससे वे मनमर्जी कर सकें। सामूहिक सैक्स करना एक ट्रेंड बन गया था जिसे करने के लिए वे धाॢमक मान्यता चाहते थे। ओशो को वहां अपने विचार बेचने थे वैसे ही विचार जिसे वे चाहते थे। वह चालाकी से एक विचारधारा को पकड़ता और ऐसे विषय चुनता जिनका कोई प्रमाण नहीं बस प्रश्र ही उठाता और स्वयं ही जवाब देता।
खिलाफ बोलने के लिए साफ्ट टार्गेट चुनता वह इस्लाम व ईसाई धर्म के खिलाफ कुछ नहीं कहता क्योंकि इससे उसकी जान को खतरा हो सकता था और बड़ी चालाकी से अपने पहले से तैयार किए गए वामपंथियों के मसाले को अमेरिकियों के सामने परोसता। वह कभी भी अमेरिकी इतिहास के काले कारनामों, अमेरिकियों की गंदी आदतों के खिलाफ नहीं बोलता बल्कि वह तो उन आदतों को मान्यता प्रदान करता था। हर कोई मजे मारना चाहता है जब उसे बता दिया जाता है कि जो आप करेंगे ये तो एक धर्म का ही हिस्सा है।
वह उन्हें किसी तरह का कानून न मानने के लिए उकसाता क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी कोई भी कानून नहीं मानना चाहते। ओपन सैक्स और ज्यादा से ज्यादा गांजा व एलसीडी मजा आ गया और क्या चाहिए किसी कानून का डर नहीं। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे सीरिया में बगदादी वहां की जनता को हिंसा करने व दूसरों मारने के लिए धाॢमक मान्यता प्रदान करता है। चालाकी से एक विचारधारा से तोड़ा जाता है। धर्म ग्रंथों को निशाना व देवी देवताओं पर आज के कानून व समय के आधार पर विवेचना की जाती है।
यह छिपा दिया जाता है कि पांच हजार साल पहले कानून अलग थे लोगों की सोच अलग थी। जो आज के समय अनुसार गलत है वह उस समय गलत नहीं माना जाता था। द्रोपदी के पांच पति थे तो यह मामला आम नहीं था और न ही शास्त्रों व उस समय के अनुसार मान्य था लेकिन फिर भी समाज ने उन्हें फतवा देकर बाहर नहीं किया बल्कि अपनाया। आज यदि कोई पति 4 विवाह कर सकता है और पत्नी कहे कि उसे भी अधिकार है 5 पति रखने का तो क्याआज का समाज उसे अपनाएगा।
आज एक पत्नी अपने पति की इजाजत के बिना कुछ रातें कहीं काट आती है तो क्या उसके पति का क्या नजरिया होगा जो उसे बाजार भी अकेला नहीं जाने देता। भगवान कृष्ण की 16 हजार पत्नियां थी लेकिन कोई नहीं बताएगा कि आज किसी की 16 हजार पत्नियां हो सकती हैं। उस समय उन 16 हजार कन्याओं को उन्होंने एक राक्षस की कैद से छुड़वाया था और इन कन्याओं ने कहा था कि हे माधव हम इस राक्षस की कैद में रही हैं अब हमें समाज में कौन अपनाएगा। तो भगवान ने उन्हें अभय दान देते हुए अपनी रानियों का दर्जा दिया था। क्या आज के जमाने में कोई है जो जीबी रोड में कैद मजबूरी से अपना शरीर बेचने को मजबूर कन्याओं से शादी करके उन्हें समाज मे सिर ऊंचा करके जीने का अधिकार देगा। वह दलित स्वर्ण का कार्ड भी चालाकी से खेलता है। ओशो पारे वाली बात घड़ता है और शोषण का मामला टार्गेट करता है। शायद कोई नहीं क्योंकि लोग महिलाओं को सिर्फ सैक्स की वस्तु समझते हैं। ऋुुषियों की बहुत सारी पत्नियां थी लेकिन किसी भी ऐसे ऋषि का नाम नहीं बताता। उस समय बहुविवाह को बुरा नहीं माना जाता था। यह आम मान्य परम्परा थी राजे भी करते थे और प्रजा भी बहुविवाह करते थे। अब राम के बारे में कहना कि उन्होंने सीता को अग्रि परीक्षा क्यों दिलवाई। आज किसी मंत्री को जनता कहे कि इस्तीफा दो तो वह कुर्सी से चिपक र बैठा रहता है। ऐसा कहने वाले को ही मरवा देता है। धोबी तो केवल गरीब व्यक्ति था। राम उसे उठवा कर मरवा देते बात यहीं खत्म हो जानी थी या सीता के विरुद्ध कुछ कहने पर सर कलम करवा देते। ऐसा ही होता है न आज कि कार्टून बनाने पर गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। या सैंकड़ों साल पहले बने किसी नियम के आदार पर ईश निंदा करने वालों के सर कलम कर दिए जाते हैं। राम ने ऐसा नहीं किया, मामला मंत्रियों के ध्यान में लाया गया। मंत्रियों ने विचार विमर्श करने के बाद उस समय के कानूनों के अनुसार अपने निर्णय सुनाए।
राजा बंधा था राजधर्म के नियमों से उस समय वह राजा था सीता का पति नहीं। अब बौद्ध धर्म के गौतम बुद्ध हिन्दू क्षत्रिय वंश में पैदा होने वाले राजा थे। उनके सारे अनुयायी हिन्दू थे और हिन्दुओं की जब सारी आबादी थी उसी दौरान बुद्ध धर्म का फैलाव हुआ यानि नास्तिकवाद का फैलाव। किसी ने बुद्ध पर हमला नहीं किया जबकि वह खुलेआम वैदिक धॢमयों का विरोध करते थे। आदि गुरु शंकराचार्य जी के अवतरण पर उन्होंने वाद-विवाद कर बौद्धों की धज्जियां उड़ाई और लोगों को वापस वैदिक धर्म में लाया। ओशो बड़ी चालाकी से मुगलों द्वारा बोद्ध, जैनियों के नरसंहार को छिपा लेता है और इसका दोष हिन्दुओं पर मढ़ देता है।
नालंदा, तक्षशिला सहित हजारों मंदिरों के तोड़े जाने का तथ्य नहीं बताता। वह नहीं बताता कि बौद्ध कैसे अफगानिस्तान से मार दिए गए। वह पहले से झूठी घड़ी गई बातों को प्रवचन में शामिल करता है क्योंकि उसे पता है कि सुनने वाले शिष्य हैं और कोई भी शिष्य अपने गुरु से प्रमाण मांगने की धृष्टता तो नहीं करता। वह मनघढ़ंत निम्र स्तर पर नफरत मीठी गोली की तरह खिलाता है और शिष्य बिना सोचे समझे निगल लेते हैं। ओशो नाम भी अपना चालाकी से भगवान चुनता है क्योंकि उसे पता था कि इससे दुनिया भर में विवाद होगा और इससे उसको और ज्यादा मुफ्त में प्रसिद्ध मिलेगी।
जब उसे पता चलता है कि अब वह ज्यादा दिन तक नहीं जीने वाला तो वह ओशो बन जाता है। अंत समय में उसे प्रसिद्ध की चिंता नहीं रहती लेकिन वह अंत में अपने पत्ते खोलता है कि वह तो नास्तिक था। यदि वह पहले पत्ते खोलता तो शायद नास्तिक होने के कारण उसे कोई मुंह न लगाता और वह भी किसी वामपंथी की तरह एक दो किताबें लिखकर चले जाता। उसने चालाकी से धर्म व आस्तिकतावाद का चोला अंत तक ओढ़े रखा और चेले उसे ईश्वर की रूप मानते रहे।
एतिहासिक बातों को कहने का उद्देश्य यही होता है कि अमेरिकी समझें कि वही सर्वोच्च हैं और उनका कल्चर व उनका एतिहास ही साफ सुथरा है बाकि भारतीय तो गंदे हैं और इनका इतिहास भी इनसे ज्यादा गंदा है। वह चालाकी से भारतीयों को अपने को निचले दर्जे का मानने के कहता है। उनमें ग्लानि भरता है क्योंकि उसको इससे ही फायदा है। आज अमेरिकी जो उसके चेले थे उसे छोड़ चुके हैं। विनोद खन्ना तो वापस आ गया था। आज ओशो की किताबें नहीं बिकती क्योंकि उसकी चालाकी को लोग समझ चुके है। याद रहे धाॢमक ग्रंथ, वेद उपनिशद, नाट्यशास्त्र आदि सभी कुछ केवल हिन्दुओं का नहीं ,यह हर भारतवासी के हैं।
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