शिवलिंग क्या है इसका स्वरूप क्या है
शिवलिंग क्या है इसका स्वरूप क्या है
ईश्वर ने इस पृथ्वी पर प्राणियों की उत्पत्ति को लेकर पुरुष व स्त्री बनाए। लिंग व योनि बनाए। आज हर इंसान इस
लिंग व योनि से सुमेल से माता के पेट में 9 माह रहने के बाद इसी योनि के रास्ते बाहर आता है। यह ईश्वर की ेरचना है। ईश्वर चाहता तो योनि व लिंग न बनाता। सांस लेते ही मुंह से अंडे की तरह बच्चे पैदा हो जाते या जिस तरह मानव के पसीने से जीवाणु पैदा हो जाते हैं वैसे ही संतान भी पैदा हो जाती। केंचुआ नर भी है और मादा भी।
वह अपने बच्चे आप ही पैदा कर लेता है। अफ्रीका के रेगिस्तान में कुछ छिपकलियां बिना किसी नर की सहायता
से अपने बच्चे पैदा कर लेती हैं। यानि सम्भोग और संतान उत्पत्ति के नियम अलग-अलग प्राणियों के लिए की अलग हैं। शिव लिंग के स्वरूप के बारे में आपकी श्रद्धा पर है कि आपने उसे किस रुप में पूजना है। तांत्रिक शिवलिंग को शिव शक्ति के रुप में पूजते हैं। मंदिरों में शिवलिंग को भगवान शिव व पार्वती के स्वरुेप में पूजा जाता है। केले को खाते समय कोई यह नहीं कहता कि यह मानव के लिंग की तरह है इसलिए यह खाने के लायक नहीं है। गाजर, मूली, खीरा सहित कई ऐसे फूल या फल या प्राणी हैं जो या तो लिंग की तरह लगते हैं योनि की तरह। अब तो अरब देशों में मौलवियों ने फतवा भी जारी कर दिया है कि महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर लिंग जैसे लगने वाले फलों , सब्जियों को हाथों में नहीं पकडऩा है। इसे अश्लील घोषित किया गया है।
प्राचीन काल में कामदेव व रति के मंदिरों में सम्भोग करते मूर्तियां बनाई गई हैं क्योंकि सैक्स यानि को उस समय ईश्वर की सबसे अनमोल देन मानकर इसे पवित्र माना जाता था। काम के प्रति पूरा खुलापन था।
अब कोई भक्त मंदिर मे शिवलिंग को जल चढ़ाता है तो वह उसमें अपने भगवान को साक्षात देखता है क्योंकि उसमें उसकी अगाध श्रद्धा है। कुछ अरबी लोग जो दूसरों के धर्मों से नफरत करते हैं अनाप-शनाप कहते हैं।
हमें कोई हक नहीं कि किसी की श्रद्धा का मजाक उड़ाया जाए।
आज ऐसे ही कुछ लोग दशम ग्रंथ में लिखे त्रिया चरित्र, चरित्रों पाख्यान आदि को पढऩे से संकोच करते हैं क्योंकि वे इसे इस्लामी नजरिए से देखते हैं। यदि काम पवित्र न होता तो उसके बारे में कभी भी व्याख्या नहीं की जाती।
शिवलिंग इस युनिवर्स का शक्ति पीठ माना गया है। मानव जिसपर श्रद्धा रखता है उसके लिए वही भगवान होता है। दूसरा व्यक्ति जिसकी उसपर श्रद्धा न हो उसका नजरिया अगल हो सकता है। समस्या तब खड़ी होती है जब व्यक्ति दूसरे की श्रद्धा को सम्मान नहीं देता।
ईश्वर ने इस पृथ्वी पर प्राणियों की उत्पत्ति को लेकर पुरुष व स्त्री बनाए। लिंग व योनि बनाए। आज हर इंसान इस
लिंग व योनि से सुमेल से माता के पेट में 9 माह रहने के बाद इसी योनि के रास्ते बाहर आता है। यह ईश्वर की ेरचना है। ईश्वर चाहता तो योनि व लिंग न बनाता। सांस लेते ही मुंह से अंडे की तरह बच्चे पैदा हो जाते या जिस तरह मानव के पसीने से जीवाणु पैदा हो जाते हैं वैसे ही संतान भी पैदा हो जाती। केंचुआ नर भी है और मादा भी।
वह अपने बच्चे आप ही पैदा कर लेता है। अफ्रीका के रेगिस्तान में कुछ छिपकलियां बिना किसी नर की सहायता
से अपने बच्चे पैदा कर लेती हैं। यानि सम्भोग और संतान उत्पत्ति के नियम अलग-अलग प्राणियों के लिए की अलग हैं। शिव लिंग के स्वरूप के बारे में आपकी श्रद्धा पर है कि आपने उसे किस रुप में पूजना है। तांत्रिक शिवलिंग को शिव शक्ति के रुप में पूजते हैं। मंदिरों में शिवलिंग को भगवान शिव व पार्वती के स्वरुेप में पूजा जाता है। केले को खाते समय कोई यह नहीं कहता कि यह मानव के लिंग की तरह है इसलिए यह खाने के लायक नहीं है। गाजर, मूली, खीरा सहित कई ऐसे फूल या फल या प्राणी हैं जो या तो लिंग की तरह लगते हैं योनि की तरह। अब तो अरब देशों में मौलवियों ने फतवा भी जारी कर दिया है कि महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर लिंग जैसे लगने वाले फलों , सब्जियों को हाथों में नहीं पकडऩा है। इसे अश्लील घोषित किया गया है।
प्राचीन काल में कामदेव व रति के मंदिरों में सम्भोग करते मूर्तियां बनाई गई हैं क्योंकि सैक्स यानि को उस समय ईश्वर की सबसे अनमोल देन मानकर इसे पवित्र माना जाता था। काम के प्रति पूरा खुलापन था।
अब कोई भक्त मंदिर मे शिवलिंग को जल चढ़ाता है तो वह उसमें अपने भगवान को साक्षात देखता है क्योंकि उसमें उसकी अगाध श्रद्धा है। कुछ अरबी लोग जो दूसरों के धर्मों से नफरत करते हैं अनाप-शनाप कहते हैं।
हमें कोई हक नहीं कि किसी की श्रद्धा का मजाक उड़ाया जाए।
आज ऐसे ही कुछ लोग दशम ग्रंथ में लिखे त्रिया चरित्र, चरित्रों पाख्यान आदि को पढऩे से संकोच करते हैं क्योंकि वे इसे इस्लामी नजरिए से देखते हैं। यदि काम पवित्र न होता तो उसके बारे में कभी भी व्याख्या नहीं की जाती।
शिवलिंग इस युनिवर्स का शक्ति पीठ माना गया है। मानव जिसपर श्रद्धा रखता है उसके लिए वही भगवान होता है। दूसरा व्यक्ति जिसकी उसपर श्रद्धा न हो उसका नजरिया अगल हो सकता है। समस्या तब खड़ी होती है जब व्यक्ति दूसरे की श्रद्धा को सम्मान नहीं देता।
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