फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर-समीक्षा

फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर-समीक्षा
फिल्म गैंग्स ऑफ वसेपुर नफरत, प्रतिशोध, राजनीतिक चालबाजियां, भ्रष्टाचार व अपराध का एक बड़ी होशियारी से तानाबाना बुन कर फिल्म को दर्शकों के सामने परोसा गया है। अपराधियों का चित्रण इतने गौरवशाली तरीके से किया गया है कि कहीं भी नहीं लगता कि वे अपराध कर रहे हैं। जैसे अपराध करना एक गौरवशाली धंधा हो।
हत्याएं तो फिल्म में ऐसे की जाती हैं कि जैसे कोई महान खिलाड़ी पेले जैसा फुटबाल का गोल करके दर्शकों की
तालियां व अभिवादन प्राप्त करता है। दर्शक अपराधी के द्वारा हत्याएं करने पर तालियां बजाते हैं। फिल्म में यह बताया गया है कि भोले-भाले लोगों को आपस में राजनीतिज्ञों द्वारा लड़ाया जा रहा है। दर्शक  वामपंथियों व सैकुलरों की टोली की तरफ से रचे गए ताने-बाने में ऐसे फंसा दिए जाते हैं कि एक वर्ग को लगता है वे लोग हिंसा व बम धमाके,रंगदारी करते हैं हत्याएं करते हैं वे असल में मजबूरी के मारे हैं,बहुत ही भोले भाले। एक अन्य वर्ग इस तरह ग्लानि फील करता है कि ये जो अपराधी हैं वे तो राजनेताओं ने ही पैदा किए हैं। इस तरह तिलक व गले में माला डाले राजनेताओं को दूषित मानसिकता वाला दिखाया जाना भी हिन्दूफोबिया को दर्शाता है। एक वर्ग के अपराधियों को भोले भाले रास्ते से भटके व वहीं दूसरे वर्ग का भोला भाला व रास्ते से भटका नहीं दिखाया जाता। बच्चा जब अपनी मां को गैर मर्द ससुर या बाबा के साथ सम्भोग करते देखता है तो इसको सिर्फ चालाकी से एक भूल दिखाया जाता है और फिर वही मर्द अपने को हैंटर मारकर अपना पाप धोते दिखाया जाता है। कहीं भी अपराध को अपराध की तरह नहीं बल्कि एक डॉन की तरह पेश किया जाता है। यह भी दिखाया जाता है कि ये लोग अपराध फिल्मों को देखकर करते हैं। वहीं दूसरे पक्ष का अपराधी बहुत ही चालाक व दिमागी शातिर बताया जाता है। वह सिर्फ अपराधी है और उसे मारना ही है। कहीं भी दर्शकों को नहीं लगता कि एक वर्ग विशेष की छवि धूमिल की गई है। कमल हासन अपनी फिल्म विश्वरुपम में यही गलती कर गया कि इसने अपराधियों को मजबूर व राजनीति का शिकार, भूला भटका नहीं बताया इसलिए वे माफी मांगता नजर आता है। अपने पूरे जीवन में मैंने एक भी फिल्म ऐसी नहीं देखी कि जिसमें अपराधियों का सही चित्रण सत्यता के साथ किया गया है। ये लोग  लादेन पर भी फिल्म ऐसे ही बनाएंगे लेकिन पात्र का नाम व धर्म बदल देंगे या फिर उसे भोला-भाला दिखाएंगे। डॉन दाऊद व अबु सलेम आज भी मीडिया की नजर में हालात के शिकार भटके लोग हैं। इस फिल्म को देखकर सिर्फ यही कहा जा सकता है कि अपराधी बहुत ही भोले भाले इंसान हैं, असली अपराधी तो कोई और ही है। ये तो भटके लोग हैं। एक बात तो पक्की है कि नफरत सिर्फ अपराध को ही जन्म देती है। कालाकारों ने एक्टिंग में कोई कसर नहीं छोड़ी। मनोज वाजपेयी, नवाजुद्दीन ने तो कमाल किया। 

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