शनि का रत्न कौन सा है, इसकी क्या पहचान है

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शनि का रत्न कौन सा है, इसकी क्या पहचान है
नीलम शनि ग्रह का मुख्य रत्न। हिन्दी में इसे नीलम तथा अंग्रेजी में सैफायर saphire कहते हैं। इसकी पहचान यह है कि असली नीलम चमकीला होता है। यह चिकना, मोरपंख के समान रंग जैसा नीली किरणों से युक्त एवं पारदर्शी होगा। यदि असली नीलम को गाय के दूध में डाल दिया जाए तो दूध का रंग नीला दिखता है। इसे पानी के भरे गिलास में डाला जाए तो इसमें से नीली किरणे निकलेंगी। सूर्य की धूप में रखने से इसमें  से नीली किरणें निकलेंगी। नीलम धारण करने से धन, धान्य, यश-कीर्ति, बुद्धि चातुर्य, सर्विस एवं व्यवसाय तथा वंश में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य सुख का लाभ मिलता है। नीलम पहनने के 24 घंटों में असर करना शुरु कर देता है। नीलम अनुकूल न बैठने पर भारी नुकसान हो सकता है। इसे धारण करने से पहले परीक्षा के तौर पर कम से कम 3 दिन तक पास रखने पर यदि बुरे सपने आएं, रोग उत्पन्न हो, चेहरे की बनावट में अंतर आ जाए तो नीलम धारण न करें। नीलम धारण करने या औषधी के रूप में धारण करने से दमा, क्षय, कुष्ठ रोग, दिल के रोग,अजीर्ण, मूत्राशय आदि के रोगों में लाभ मिलता है। नीलम 5,7,9 या 12 रत्ती या अधिक में धारण करना चाहिए। इसे पंच धातु, लोहे या सोने  की अंगूठी में शनिवार को शनि की होरा में एवं पुष्य, उ.भा., चित्रा, स्वा., धनि. तथा शतभिषा नक्षत्रों में शनि के बीज मंत्र ओम प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: मंत्र से 23000 की संख्या में अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए। इसके बाद शनि की वस्तुओं का दान करना कल्याणकारी होता है।

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