चाय वाले से दोस्ती
चाय वाले से दोस्ती
बात उन दिनों की है जब मैं बालक होता था। बहुत ही शरारती हर तरफ उछल कूद मचाते रहना। हमारे घर से कुछ दूरी पर एक नेपाली महिला रहती थी, उसका एक भोला-भाला बेटा था। गरीब होने के कारण उसे वह पढ़ा तो नहीं पाई लेकिन उसे चाय की दुकान पर जरूर लगा दिया। हम जब खेलने जाते तो देखते कि वह बालक चाय के बर्तन धो रहा है और कभी ग्राहकों को चाय देने जा रहा होता है। रोज- रोज वहां से गुजरने के कारण उससे हम बच्चों की दोस्ती हो गई। हम जब भी निकलते तो उसे गोरखा कह कर बुलाते। एक दिन जब हम गुजर रहे थे तो देखा कि गोरखा रो रहा था उसके हथ से खून निकल रहा था। हमने पूछआतो बोला कि उस्से चाय के गिलास टूट गए और मालिक ने उसे बहुत पीटा और हाथ से खून निकाल दिया। मुझे उसपर बहुत दया आई। मैंने सारी बात माता को बताई मैं उसे घर ले आया। माता ने उसके हाथ पर मरहम पट्टी लगाई। गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पिलाई। माता ने उसके मालिक को बहुत गालियां निकालते कहा, ऐसे राक्षसों को तो जेल में डाल देना चाहिए। गिलास टूट गए तो इसका क्या मतलब? बच्चे को मारना क्यों ? गोरखा हमारा दोस्त बन गया। इसके बाद जब हम खेलने जाते तो उस दुकान में गोरखा नहीं दिखा। पता नहीं कहां चला गया। एक दिन हम बच्चे बाजार गए थे तो देखा कि गोरखा हमारी तरफ भाग कर आ रहा है। उसने मेरी बांह पकड़ी व अपनी तरफ खींचने लगा। कहने लगा आओ आओ तुम्हें अपनी नई दुकान दिखाता हूं। मेरा नया मालिक बहुत अच्छा है। वह हमें दुकान के अंदर ले गया। दुकान के मालिक ने हमारा स्वागत किया और हम सबको चाय पिलाई और साथ में खाने को भी दिया। हमें बहुत अच्छा लगा कि गोरखा अब ठीक है।
कुछ दिन बाद विश्वकर्मा दिवस पर भक्तों ने बाग में लंगर लगाया हुआ था। हम सभी बच्चे वहां लंगर खाने के लिए पहुंचे। गोरखा भी वहां पहुंचा था। उसके पास 10 रुपए थे। उसने कहा कि इसकी जेब नहीं है ये रुपए रख ले। बाद में ले लूंगा। मैंने 10 रुपए जेब में रख लिए। लंगर खाने के बाद जब हम फ्री हुए तो मैंने देखा कि मेरी जेब से किसी ने 10 रुपए निकाल लिए हैं। उस समय हम बच्चों के लिए 10 रुपए की रकम बहुत थी। गोरखे ने जब रुपए वापिस मांगे तो मैं कुछ नहीं कह पाया। वह गुस्से में आ गया और मुझे पीटने को दौड़ा। मैं आगे-आगे तो वह पीछे-पीछे। वह मुझे गुस्से से पत्थर मार रहा था। मैं किसी तरह उससे पीछा छुड़वा कर अपने घर आया। इसके बाद जब भी वह मुझे देखता तो वह मुझे मारने के लिए दौड़ता। ऐसा कई महीनों तक चला। इसके बाद वह भूल गया। समय बीतता गया। मेरा मन उसके रुपए वापस न कर पाने के कारण विचलित जरूर रहा। इस घटना को 25 वर्ष गुजर गए। एक दिन मैंने गोरखे को बाजार में घूमते देखा। मेरे से रहा न गया मैं उसके पास गया उसे मैंने
20 रुपए दिए। वह रुपए देखकर खुश हुआ और मेरे को सलाम करने लगा। वह मुझे पहचान नहीं पाया। उसने नोट को ध्यान से देखा और अपनी जेब में रख लिया। मैं भी जल्दी में था वहां से निकल गया। अब मेरे दिल में सुकून था कि मैने उसके रुपए सूद सहित वापस कर दिए।
कुछ दिन बाद विश्वकर्मा दिवस पर भक्तों ने बाग में लंगर लगाया हुआ था। हम सभी बच्चे वहां लंगर खाने के लिए पहुंचे। गोरखा भी वहां पहुंचा था। उसके पास 10 रुपए थे। उसने कहा कि इसकी जेब नहीं है ये रुपए रख ले। बाद में ले लूंगा। मैंने 10 रुपए जेब में रख लिए। लंगर खाने के बाद जब हम फ्री हुए तो मैंने देखा कि मेरी जेब से किसी ने 10 रुपए निकाल लिए हैं। उस समय हम बच्चों के लिए 10 रुपए की रकम बहुत थी। गोरखे ने जब रुपए वापिस मांगे तो मैं कुछ नहीं कह पाया। वह गुस्से में आ गया और मुझे पीटने को दौड़ा। मैं आगे-आगे तो वह पीछे-पीछे। वह मुझे गुस्से से पत्थर मार रहा था। मैं किसी तरह उससे पीछा छुड़वा कर अपने घर आया। इसके बाद जब भी वह मुझे देखता तो वह मुझे मारने के लिए दौड़ता। ऐसा कई महीनों तक चला। इसके बाद वह भूल गया। समय बीतता गया। मेरा मन उसके रुपए वापस न कर पाने के कारण विचलित जरूर रहा। इस घटना को 25 वर्ष गुजर गए। एक दिन मैंने गोरखे को बाजार में घूमते देखा। मेरे से रहा न गया मैं उसके पास गया उसे मैंने
20 रुपए दिए। वह रुपए देखकर खुश हुआ और मेरे को सलाम करने लगा। वह मुझे पहचान नहीं पाया। उसने नोट को ध्यान से देखा और अपनी जेब में रख लिया। मैं भी जल्दी में था वहां से निकल गया। अब मेरे दिल में सुकून था कि मैने उसके रुपए सूद सहित वापस कर दिए।
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