महाभारत में माता कुंती का दुख और माधव की चिंता
महाभारत में माता कुंती का दुख और माधव की चिंता
माता कुंती को पता है कि कर्ण उनका सबसे बढ़ा पुत्र है, माधव भी जानते हैं। अब कर्ण कौरवों की तरफ से लड़ेगा और भाई को हाथों भाई की हत्या। कुंती के दुख को केशव जानते हैं। युद्ध तो अटल है यह तो होगा क्योंकि यह धर्म व अधर्म का युद्ध है,रक्त तो बहेगा ही। केशव जाते हैं कर्ण के पास राजा का प्रस्ताव लेकर। यदि पांडवों के साथ वह आ जाए तो अग्रज भाई कहलाओगे, सिंहासन युधिष्टर आपको सौंप देगा आप इस धरा के राजा होंगे। कर्ण जो दुर्योधन के एहसानों के नीचे दबा है प्रस्ताव ठुकरा देता है। अब कर्ण जिंदा रह सकता है या फिर अर्जुन।
कर्ण को तो मरना ही था क्योंकि वह थी अर्धम के साथ। माधव चाहते तो कर्ण जीवित रह सकता था। पर माधव नहीं चाहते थे कि पाप का साथी जिंदा रहे। यह जरूरी नहीं कि अच्छा व्यक्ति पापी नहीं हो सकता आज कई अच्छे लोग भूखों को कपड़े भोजन देते हैं,अच्छे काम करते हैं और लेकिन वे एक बुरी संस्था से जुड़े हैं जो भोले-भाले लोगों का धर्म परिवर्तन अच्छे बनकर वेतन लेकर कम्पनी की तरह कर रहे हैं। माधव जानते हैं कि अर्जुन से कर्ण का मुकाबला होगा,कर्ण के कवच कुंडल उसकी मदद करेंगे। लेकिन माता कुंती का क्या दोष।
वह तो एक मां है जिसके पुत्र रणभूमि में मारे जा सकते हैं। अब यह सगे भाईयोंं का युद्ध,दोनों में से एक जानता है कि पांच उसके भाई हैं। कर्ण का पहिया धंस जाता है। कृष्ण कहते हैं कर्ण का वध करने को और अधर्म का साथ देने वाले के प्राण ले लिए जाते हैं। आज के परिवेष में एक भला व्यक्ति किसी गलत पार्टी में है लेकिन वह अधर्म के साथ ही माना जाएगा, उसे यह किसी प्रकार की छूट नहीं मिलेगी कि वह भला है तो उसे छोड़ दिया जाएगा। धर्म की रक्षा में उसे जाना ही है या तो अधॢमयों का साथ छोड़ कर धर्म के साथ हो ले या फिर उसे खत्म होना ही है। भगवान कहीं भी अहिंसा बात नहीं करते, अहिंसा कमजोर व डरपोक भी बना देती है। आतताइयों को तो मरना ही होगा जैसे दुर्योधन जंघा पर वार करके उसे मारा,जैसे दुशासनकी छाती फाड़ी, भीष्म पितामह को तीरों की सेज पर ही प्राम त्यागने पड़े, दुर्योधन के सौ भाइयों को भी मरना पड़ा। कई महान योद्धाओं को मरना पड़ा क्यों? सिर्फ वे अधर्म का साथ दे रहे थे।
केशव भीम को कह सकते थे कि दुशासन की छाती फाड़कर,उसका खून पीकर न उसे मारे, द्रोपदी के बालों को उसके खून से न धोया जाए, उसे आसान मौत दी जाए, पर माधव ने भीम को नहीं रोका। माधव चाहते थे कि स्त्री का भरी सभा में अपमान करने वाले को यही सजा मिले। द्रोपदी अपने अपमान का बदला ले सके। द्रोपदी शांत न होती तो धरा हजारों सालों तक आग में झुलसती रहती। द्रोपदी शांत हुई सब शांत हो गए, युद्ध खत्म हो गया। धर्म जीत गया। माता कुंती अपने एक पुत्र के खो जाने से दुखी हुई, रोई। माधव के दिलासा देने पर मन कुछ शांंत हुआ. सिर्फ माधव ही दिलासा दे सकते थे क्योंकि सारे युद्ध में माधव का ही सुर्दशन चक्र चल रहा था।÷
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माता कुंती को पता है कि कर्ण उनका सबसे बढ़ा पुत्र है, माधव भी जानते हैं। अब कर्ण कौरवों की तरफ से लड़ेगा और भाई को हाथों भाई की हत्या। कुंती के दुख को केशव जानते हैं। युद्ध तो अटल है यह तो होगा क्योंकि यह धर्म व अधर्म का युद्ध है,रक्त तो बहेगा ही। केशव जाते हैं कर्ण के पास राजा का प्रस्ताव लेकर। यदि पांडवों के साथ वह आ जाए तो अग्रज भाई कहलाओगे, सिंहासन युधिष्टर आपको सौंप देगा आप इस धरा के राजा होंगे। कर्ण जो दुर्योधन के एहसानों के नीचे दबा है प्रस्ताव ठुकरा देता है। अब कर्ण जिंदा रह सकता है या फिर अर्जुन।
कर्ण को तो मरना ही था क्योंकि वह थी अर्धम के साथ। माधव चाहते तो कर्ण जीवित रह सकता था। पर माधव नहीं चाहते थे कि पाप का साथी जिंदा रहे। यह जरूरी नहीं कि अच्छा व्यक्ति पापी नहीं हो सकता आज कई अच्छे लोग भूखों को कपड़े भोजन देते हैं,अच्छे काम करते हैं और लेकिन वे एक बुरी संस्था से जुड़े हैं जो भोले-भाले लोगों का धर्म परिवर्तन अच्छे बनकर वेतन लेकर कम्पनी की तरह कर रहे हैं। माधव जानते हैं कि अर्जुन से कर्ण का मुकाबला होगा,कर्ण के कवच कुंडल उसकी मदद करेंगे। लेकिन माता कुंती का क्या दोष।
वह तो एक मां है जिसके पुत्र रणभूमि में मारे जा सकते हैं। अब यह सगे भाईयोंं का युद्ध,दोनों में से एक जानता है कि पांच उसके भाई हैं। कर्ण का पहिया धंस जाता है। कृष्ण कहते हैं कर्ण का वध करने को और अधर्म का साथ देने वाले के प्राण ले लिए जाते हैं। आज के परिवेष में एक भला व्यक्ति किसी गलत पार्टी में है लेकिन वह अधर्म के साथ ही माना जाएगा, उसे यह किसी प्रकार की छूट नहीं मिलेगी कि वह भला है तो उसे छोड़ दिया जाएगा। धर्म की रक्षा में उसे जाना ही है या तो अधॢमयों का साथ छोड़ कर धर्म के साथ हो ले या फिर उसे खत्म होना ही है। भगवान कहीं भी अहिंसा बात नहीं करते, अहिंसा कमजोर व डरपोक भी बना देती है। आतताइयों को तो मरना ही होगा जैसे दुर्योधन जंघा पर वार करके उसे मारा,जैसे दुशासनकी छाती फाड़ी, भीष्म पितामह को तीरों की सेज पर ही प्राम त्यागने पड़े, दुर्योधन के सौ भाइयों को भी मरना पड़ा। कई महान योद्धाओं को मरना पड़ा क्यों? सिर्फ वे अधर्म का साथ दे रहे थे।
केशव भीम को कह सकते थे कि दुशासन की छाती फाड़कर,उसका खून पीकर न उसे मारे, द्रोपदी के बालों को उसके खून से न धोया जाए, उसे आसान मौत दी जाए, पर माधव ने भीम को नहीं रोका। माधव चाहते थे कि स्त्री का भरी सभा में अपमान करने वाले को यही सजा मिले। द्रोपदी अपने अपमान का बदला ले सके। द्रोपदी शांत न होती तो धरा हजारों सालों तक आग में झुलसती रहती। द्रोपदी शांत हुई सब शांत हो गए, युद्ध खत्म हो गया। धर्म जीत गया। माता कुंती अपने एक पुत्र के खो जाने से दुखी हुई, रोई। माधव के दिलासा देने पर मन कुछ शांंत हुआ. सिर्फ माधव ही दिलासा दे सकते थे क्योंकि सारे युद्ध में माधव का ही सुर्दशन चक्र चल रहा था।÷
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