गुजरात में भाजपा जीत कर भी हार गई
गुजरात में भाजपा जीत कर भी हार गई if you like pls share
गुजरात में कांग्रेस ने शतरंज के सारे मोहरे चले। सत्ता में आने के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहाए। शोशल मीडिया में तो यह भी चर्चा है कि कांग्रेस ने गुजरात में जीतने के लिए हर दांव खेला। आज से लगभग एक पूर्व से मंझे हुए खिलाडिय़ों की तरह इस गंदे खेल की गोटियां फिट होनी शुरु हो गई थी। रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा था। आरक्षण का मुद्दा उछाला गया हार्दिक पटेल,जिगनेश को जिस तरह मोहरा बना कर खेला गया, कांग्रेस के दिग्गजों को दाद तो देनी ही होगी। जब हाॢदक पटेल आरक्षण के मुद्दे पर गुजरात में नाच रहा था तो भाजपा की इंटैलीजैंस एजैंसियां, तोल मोल अधिकारी सत्ता का आनंद उठा रहे थे। उन्हें यकीन नहीं था कि विकास का जो पुल उन्होंंने बनाया वही गिरा दिया गया तो जनता एक दिन में ही सब कुछ भूल जाएगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही। कांग्रेस की सरकार बननी तय थी। भाजपाईयों को तो अच्छे बनने की बीमारी है जो इन्हे संघ से मिली है। चाहे आपके कार्यकत्र्ता गाजर मूली की तरह ही वामपंथी जेहादी काटते रहें आप सिर्फ अच्छे बनने का ढोंग करते रहो। कांग्रेस गुजरात में आंधी की तरह प्रचार कर रही थी। राहुल गांधी मंदिरों में जाकर हिन्दुत्व को हाईजैक करने की कोशिश कर रहे थे।
गुजरात में भाजपा की वास्तविक जीत तब मानी जाती जब वह 150 सीटें जीतती। अंत समय में प्रधानमंत्री धुआंधार रैलियां न करते और विपक्ष के नेताओं के द्वारा गालियां न गिनवाते तो ये इससे आधी ही सीटें मिलनी थीं। कुछ जगहों पर तो कांग्रेस बहुत ही कम वोटों के अंतर से हारी। यह तो मानना ही पड़ेगा कि मोदी जी के भाषणोंं से लोग अभी ऊबे नहीं हैं, नहीं तो उन्हें मनमोहन सिंह की तरह ही चुप रहना पड़ सकता है।
हर साल वोटरों की सँख्या भी बढ़ती है और विरोधियों की भी। भाई अंकों का खेल है जान लगा दी गई और फिर जाकर कुध अंक भाजपा के
पाले में पड़े। मोदी जैसा करिश्माई नेता भाजपा के पास नहीं है। संबित पात्रा जी, योगी जी तो लगे ही हुए है।
आरक्षण का मुद्दा ऐसा है कि भाजपा वाले हाथ मलते रह जाते हैं। इनके पास दम नहीं कि ये स्वर्णों को आरक्षण का कार्ड खेलकर उन्हें साथ
देने का कुछ तो लाभ दिलवा सके। यह तो बस हो रहे आंदोलनों को निपटने में ही समय निकाल देती है। स्वर्णों मे इतना दम नहीं कि कुछ जेब ढीली करके एकसाथ कोई बढ़ा आंदोलन करें ताकि आनेवाली पीढ़ी को दर-दर की ठोकरें न खानी पड़ें। अपने स्वर्ण मंत्रियों से अपने चहेतों के तबादलों के इलावा कोई और अच्छा काम भी करवा लो। देश में एक समान कानून, जनसंख्या नियंत्रण अभी भी सामने वैसे ही खड़े हैं।
धारा 370, राम मंदिर, कश्मीर में हिन्दुओं की वापसी शायद होगी भी कि नहीं। मोदी जी का गला विकास-विकास करके बैठ जाता है लेकिन वे भी जानते हैं कि उनको सत्ता तक ले जाने वाले हिन्दू ही हैं। सत्ता मिलते ही आदमी सैकुलर होने का नशा जैसा हो जाता है, मूल उद्देश्यों को भूल सा जाता है। मोदी जी को यह याद रखना चाहिए जो मंत्रियों,विधायकों की भीड़ आपके साथ है वे सभी आपकी तरह ईमानदार नहीं है।
वे भी कुछ कमाने व बनाने के लिए कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते। चलो अंत में मोदी जी को हिमाचल व गुजरात की अंक जीत की बधाई और कांग्रेस को डबल बधाई कि वह हार कर भी जीत गई। निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाए......
गुजरात में कांग्रेस ने शतरंज के सारे मोहरे चले। सत्ता में आने के लिए अरबों रुपए पानी की तरह बहाए। शोशल मीडिया में तो यह भी चर्चा है कि कांग्रेस ने गुजरात में जीतने के लिए हर दांव खेला। आज से लगभग एक पूर्व से मंझे हुए खिलाडिय़ों की तरह इस गंदे खेल की गोटियां फिट होनी शुरु हो गई थी। रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा था। आरक्षण का मुद्दा उछाला गया हार्दिक पटेल,जिगनेश को जिस तरह मोहरा बना कर खेला गया, कांग्रेस के दिग्गजों को दाद तो देनी ही होगी। जब हाॢदक पटेल आरक्षण के मुद्दे पर गुजरात में नाच रहा था तो भाजपा की इंटैलीजैंस एजैंसियां, तोल मोल अधिकारी सत्ता का आनंद उठा रहे थे। उन्हें यकीन नहीं था कि विकास का जो पुल उन्होंंने बनाया वही गिरा दिया गया तो जनता एक दिन में ही सब कुछ भूल जाएगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही। कांग्रेस की सरकार बननी तय थी। भाजपाईयों को तो अच्छे बनने की बीमारी है जो इन्हे संघ से मिली है। चाहे आपके कार्यकत्र्ता गाजर मूली की तरह ही वामपंथी जेहादी काटते रहें आप सिर्फ अच्छे बनने का ढोंग करते रहो। कांग्रेस गुजरात में आंधी की तरह प्रचार कर रही थी। राहुल गांधी मंदिरों में जाकर हिन्दुत्व को हाईजैक करने की कोशिश कर रहे थे।
गुजरात में भाजपा की वास्तविक जीत तब मानी जाती जब वह 150 सीटें जीतती। अंत समय में प्रधानमंत्री धुआंधार रैलियां न करते और विपक्ष के नेताओं के द्वारा गालियां न गिनवाते तो ये इससे आधी ही सीटें मिलनी थीं। कुछ जगहों पर तो कांग्रेस बहुत ही कम वोटों के अंतर से हारी। यह तो मानना ही पड़ेगा कि मोदी जी के भाषणोंं से लोग अभी ऊबे नहीं हैं, नहीं तो उन्हें मनमोहन सिंह की तरह ही चुप रहना पड़ सकता है।
हर साल वोटरों की सँख्या भी बढ़ती है और विरोधियों की भी। भाई अंकों का खेल है जान लगा दी गई और फिर जाकर कुध अंक भाजपा के
पाले में पड़े। मोदी जैसा करिश्माई नेता भाजपा के पास नहीं है। संबित पात्रा जी, योगी जी तो लगे ही हुए है।
आरक्षण का मुद्दा ऐसा है कि भाजपा वाले हाथ मलते रह जाते हैं। इनके पास दम नहीं कि ये स्वर्णों को आरक्षण का कार्ड खेलकर उन्हें साथ
देने का कुछ तो लाभ दिलवा सके। यह तो बस हो रहे आंदोलनों को निपटने में ही समय निकाल देती है। स्वर्णों मे इतना दम नहीं कि कुछ जेब ढीली करके एकसाथ कोई बढ़ा आंदोलन करें ताकि आनेवाली पीढ़ी को दर-दर की ठोकरें न खानी पड़ें। अपने स्वर्ण मंत्रियों से अपने चहेतों के तबादलों के इलावा कोई और अच्छा काम भी करवा लो। देश में एक समान कानून, जनसंख्या नियंत्रण अभी भी सामने वैसे ही खड़े हैं।
धारा 370, राम मंदिर, कश्मीर में हिन्दुओं की वापसी शायद होगी भी कि नहीं। मोदी जी का गला विकास-विकास करके बैठ जाता है लेकिन वे भी जानते हैं कि उनको सत्ता तक ले जाने वाले हिन्दू ही हैं। सत्ता मिलते ही आदमी सैकुलर होने का नशा जैसा हो जाता है, मूल उद्देश्यों को भूल सा जाता है। मोदी जी को यह याद रखना चाहिए जो मंत्रियों,विधायकों की भीड़ आपके साथ है वे सभी आपकी तरह ईमानदार नहीं है।
वे भी कुछ कमाने व बनाने के लिए कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते। चलो अंत में मोदी जी को हिमाचल व गुजरात की अंक जीत की बधाई और कांग्रेस को डबल बधाई कि वह हार कर भी जीत गई। निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाए......
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