हर प्रकार की वास्तु व समस्याओं के लिए पूजा विधान क्या है?
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यदि आप इनसम्स्याओं जूझ रहे हैं जैसे आर्थिक उन्नति न होना, धन का कहीं उलझ जाना, लाभों का देरी से मिलना, आय से अधिक व्यय होना, आवश्यकता होने पर धन की व्यवस्था ना हो पाना, धन का चोरी हो जाना आदि।
वैवाहिक संबंधों में विवाद, अलगाव, विवाह में विलम्ब, पारिवारिक शत्रुता हो जाना, पड़ोसियों से संबंध बिगडऩा, पारिवारिक सदस्यों से किसी भी कारण अलगाव, विश्वासघात आदि।
संतान का न होना, देरी से होना, पुत्र या स्त्री संतान का न होना, संतान का गलत मार्ग पर चले जाना, संतान का गलत व्यवहार, संतान की शिक्षा व्यवस्था में कमियां रहना आदि। कैरियर के सही अवसर नहीं मिल पाना, मिले अवसरों का सही उपयोग नहीं कर पाना, व्यवसाय में लाभों का कम होना, साझेदारों से विवाद, व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्विता में पिछडऩा, नौकरी आदि में उन्नति व प्रोमोशन नहीं होना, हस्तान्तरण सही जगह नहीं होना, सरकारी विभागों में काम अटकना, महत्वाकांक्षाओं का पूरा नहीं हो पाना आदि। भवन के मालिक और परिवार जनों की दुर्घटनाएं, गंभीर रोग, व्यसन होना, आपरेशन होना, मृत्यु आदि। कानूनी विवाद, दुर्घटनाएं, आग, जल, वायु प्रकोप आदि से भय, राज्य दण्ड, सम्मान की हानि आदि भयंकर परिणाम देखने को मिलते हैं।
चोरी की समस्या।
घर में अदृश्य शक्तियाँ भी प्रवेश करती है जिसके कारण परिवार के सदस्यों का मानसिक संतुलन बिगड़ता रहता है और तनाव महसूस होता रहता है। किसी ने कुछ कर दिया है अथवा देखने में तो सब ठीक है परन्तु आपके पितर रुष्ट है ऐसा होता है
आप इस साधना से अपनी समस्याओं से तुरंत छुटकारा पा सकते हैं।
पूजन सामग्री में आप वास्तु भगवती महायंत्र और ह्रीं शक्ति माला,कुमकुम मिश्रित आधा किलो अक्षत की व्यवस्था कर लें और जो भी सामान्य पूजन सामग्री और पुष्प आदि हों,उनकी भली भाँती व्यवस्था कर लें ।पुष्प से जल छिड़कते हुए स्वस्तिवाचन करें-
ओम स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा: ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्ट्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौ: शांति: अंतरिक्ष गुं शांति: पृथिवी शांतिराप:
शांतिरोषधय: शांति:। वनस्पतय: शांतिर्विश्वे देवा:
शांतिब्र्रह्म शांति: सर्वगुं शांति: शांतिरेव शांति सा
मा शांतिरेधि। यतो यत: समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शंन्न: कुरु प्राजाभ्यो अभयं न: पशुभ्य:। सुशांतिर्भवतु ॥
ओम सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नम:।।
संकल्प-
ओम विष्णुर्विष्णुर्विष्णु, ओम अद्यब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे,
अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर-गांव का नाम)क्षेत्रे बौद्धावतारे वीरविक्रमादित्यनृपते (वर्तमान संवत),तमेऽब्दे क्रोधी नाम संवत्सरे उत्तरायणे (वर्तमान) ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे (वर्तमान)मासे (वर्तमान)पक्षे (वर्तमान)तिथौ (वर्तमान)वासरे (गोत्र का नाम लें)गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें)सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया-
श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री महामृत्युंजय साहित्य सौभाग्य वास्तु कृत्या पूजनं च अहं करिष्ये।
निम्न मंत्र बोल कर लिखे गए अंग पर अपने दाहिने हाथ का स्पर्श करे-
ह्रीं नं पादाभ्याम नम: -दोनों पाव पर,
ह्रीं मों जानुभ्याम नम: - दोनों जंघा पर
ह्रीं भं कटीभ्याम नम: - दोनों कमर पर
ह्रीं गं नाभ्ये नम: -नाभि पर
ह्रीं वं ह्रदयाय नम: -ह्रदय पर
ह्रीं ते बाहुभ्याम नम: -दोनों कंधे पर
ह्रीं वां कंठाय नम: - गले पर
ह्रीं सुं मुखाय नम: - मुख पर
ह्रीं दें नेत्राभ्याम नम: -दोनों नेत्रों पर
ह्रीं वां ललाटाय नम: -ललाट पर
ह्रीं यां मुध्र्ने नम: मस्तक पर
ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नम: - शरीर पर
नमस्कार मंत्र ओम
ह्रीं श्री गणेशाय नम:।
ह्रीं इष्ट देवताभ्यो नम:।
ह्रीं कुल देवताभ्यो नम:।
ह्रीं ग्राम देवताभ्यो नम:।
ह्रीं स्थान देवताभ्यो नम:।
ह्रीं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
ह्रीं गुरुवे नम:।
ह्रीं मातृ पितृ चरणकमलभ्यो नम:।।
अब सामने बाजोट पर जिस पर श्वेत या रक्त वस्त्र बिछा हुआ हो,उस पर ताम्बे की थाली स्थापित कर उस पर महायंत्र को स्थापित कर अग्रक्रिया करें-
गणपति पूजन
हाथ में पुष्प लेकर गणपति का आवाहन करें.
गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ ओम श्री गणपतये नम।
हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान् गणपति के सामने छोड़ दें -
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए थोड़े थोड़े अक्षत के दाने महायंत्र पर अर्पित करें-
नवग्रह आवाहन -
अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिता: सूर्यादिनवग्रहा
देवा: सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् ।
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोस्स्मि दिवाकरम् ।।
ओम श्रीं आं ग्रहाधिराजाय आदित्याय स्वाहा।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ।।
ओम श्रीं क्रीं ह्रां चं चन्द्राय नम:
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम्
इसके बाद नवग्र पूजन करें।
अब हाथ जोड़कर स्तुति करें.
ओम ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु:शशि भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च शुक्र: शनि राहुकेतव: सर्वेग्रहा: मुन्था सहिताय शान्तिकरा भवन्तु ॥
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए थोड़े थोड़े अक्षत के दाने महायंत्र पर अर्पित करें-
षोडशमातृका आवाहन -
गौरी पद्या शचीमेधा सावित्री विजया जया
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातर:
हृटि पुष्टि तथा तुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता
गणेशेनाधिका ह्यैता वृद्धौ पूज्याश्च तिष्ठत:
ओम भूर्भुव: स्व: षोडशमातृकाभ्यो नम:
इहागच्छइह तिष्ठ
अब हाथ जोड़कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए यन्त्र पर कुमकुम मिश्रित अक्षत डालें-
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुस्ते
अनया पूजया गौर्मादि षोडश मात: प्रीयन्तां न मम
कलश पूजन-
हाथ में पुष्प लेकर वरुण का आवाहन करें-
अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥
और अब कलश का पंचोपचार पूजन कर लें,तत्पश्चात घृत या तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित कर लें और सुगन्धित अगरबत्ती भी,और इसके बाद हाथ में जल लेकर विनियोग करें.
ॐ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रुद्रा ऋषय: ऋग्यजुर्सामानी छन्दांसी प्राणशक्तिर्देवता आं बीजं ह्रीं शक्ति: क्रों कीलकं अस्मिन यंत्रे श्री सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र प्राण प्रतिष्ठापने विनियोग:
एष वै प्रतिष्ठा नाम यज्ञो यत्र तेन यज्ञेन यजन्ते ! सर्वमेव प्रतिष्ठितं भवति ।।
अस्मिन सौभाग्य वास्तु कृत्या यंत्रस्य सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु ।
फिर गंध , पुष्पादि से पंचोपचार ( स्नान , चन्दन , पुष्प , धूप- दीप , नैवेद्य एवं आरती ) पूजन करें और यंत्र के षोडश संस्कारों की सिद्धि के लिए 16बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए अक्षत डालते जाएँ-
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीद्यस्मान स्वावेशो अनमी वो भवान यत्वे महे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्प्दे स्वाहा 7
ओमवास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभि रश्वे भिरिदो अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान्प्रतिन्नो जुषस्य शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्प्दे स्वाहा फिर हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर उस यन्त्र पर निम्न मंत्र बोल कर अर्पित कर दें-
अस्य यंत्रस्य षोडश संस्कारा: सम्पद्यन्ताम
निम्न मंत्र का 8 बार उच्चारण करते हुए यन्त्र पर कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करें।
चतुषष्टि योगिनी स्थापन-
आवाहयाम्बहं देवी योगिनी परमेश्वररीम् । योगाभ्यासेन सन्तुष्ट पराध्यान समन्बिता: ।।
चतुषष्ठी-योगिनीभ्यो नम:
अब हाथ जोड़कर हाथ में पुष्प लेकर सौभाग्यलक्ष्मी ध्यान करें और ध्यान मंत्र के उच्चारण के बाद उस पुष्प को यन्त्र पर अर्पित कर दें -
या सा पद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-
दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभि:, स्तन-भर-
नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रै:। मणि-
गज-खचितै:, स्नापिता हेम-
कुम्भै:।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व सौभाग्य,सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद यन्त्र में सौभाग्य लक्ष्मी की प्रतिष्ठा करें.
हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करें-
भूर्भुव: स्व: सौभाग्यलक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।"
आसन
आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं
पाद्य
अश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।
जल चढाएं
यन्त्र के सामने मिठाई का भोग अर्पित करें ।
हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें :-
त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिंत पुष्टि वद्र्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योम्र्मुक्षीय मामृताम् ।। (इस मंत्र का 11 बार उच्चारण करें)
ह्रीं शक्ति माला से वास्तु भगवती मंत्र के पहले और बाद में ह्रीं बीज मंत्र का 3-3 माला करें और 21 माला जाप वास्तु भगवती मंत्र का करें-
वास्तु भगवती मंत्र-
ओं ह्रीं नमो भगवती वास्तु देवतायै नम:
अंत में हाथ जोड़कर आद्य शक्ति से क्षमा याचना करें
इसके बाद मातारानी की आरती संपन्न करें और महायंत्र को पूजन स्थल में ही स्थापित कर दें और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
this is only for information.
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