ग्रहों की महादशा क्या होती है?
ग्रहों की महादशा क्या होती है?
ग्रहों की महादशा का वर्णन कुंडली में विंशोतरी दशा के कालम में लिखी गई होती है। इसमें तिथी, महीना व वर्ष का पूरा वर्णन किया गया होता है। कब किस ग्रह की महादशा शुरू होनी है और किस समय तक रहनी है और महादशा के तहत अंतर महादशा किस ग्रह की चलनी है सब लिखा गया होता है। जब भी किसी ग्रह की महादशा शुरु होती है तो जातक के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। कुछ लोगों की शादी महादशा शुरू होने पर होती है। कुछ लोगों के बच्चे महादशा के शुरुआत में होते हैं, कुछ लोगों की नौकरी लगती है या तरक्की नई महादशा में होती है, कुछ लोग विदेश नई महादशा में जाते हैं, कुछ लोग विदेश से वापिस आते हैं ,कुछ लोगों का नाम होता है कुछ लोग बदनाम भी होते हैं। ग्रहों की महादशा में जो भी होता है वह महत्वपूर्ण होता है। विंशोत्तरी महादशा के आधार पर अपनी कुंडली स्वयं देख सकते हैं। कुंडली में एक ग्रहों की समय सारिणी होती है जिसमे लिखा रहता है कि कौन सा ग्रह कब तक आप के जीवन में प्रभावी रहेगा। ग्रहों का मुख्य प्रभाव काल महादशा और उसके बाद अन्तर्दशा फिर प्रत्यंतर दशा कहलाता है। हर ग्रह की अपनी अवधि अपना समय होता है जिसके अंतर्गत जातक का जीवन चलता है। क्रमानुसार ग्रहों की दशा और प्रभाव काल इस प्रकार है ।
सूर्य 6 वर्ष, चन्द्र 10 वर्ष, मंगल 7 वर्ष, राहू 18 वर्ष, गुरु 16 वर्ष, शनि 19 वर्ष, बुध 17 वर्ष, केतु 7 वर्ष, शुक्र 20 वर्ष 7
महादशा में अन्तर्दशा
यह सारिणी विंशोत्तरी महादशा के नाम से कुंडली में दी होती है। महादशा के समय की 7 महादशा सबसे कम सूर्य की 6 वर्ष होती है। शुक्र की महादशा 20 वर्ष चलती है। महादशा किसी भी ग्रह की हो परन्तु जब भी समाप्त होती है तब आपके जीवन में बड़े बदलाव आते हैं। महादशा का समाप्ति काल हमेशा कुछ न कुछ देकर जाता है। महादशा के अंत में कोई न कोई उपलब्धि आपको जीवन में अवश्य होगी। कोई ग्रह चाहे उच्च का हो या नीच का, मित्र राशि में हो या शत्रु राशि में अपनी राशि में हो या अस्त अशुभ हो या शुभ अपनी महादशा के
समय में पूरी तरह से बुरा या अच्छा फल नहीं देता। एक ही ग्रह एक ही समय में शुभ और अशुभ दोनों तरह के फल दे सकता है इसका कारण यह है कि महादशा में अन्य ग्रहों की भी दशा होती है जिसे अन्तर्दशा कहा जाता है। जिस ग्रह की महादशा होती है उस ग्रह के समय में अन्य सभी ग्रहों की अन्तर्दशा चलती है।
इस तरह प्रत्येक ग्रह का प्रभाव जातक पर पड़ता है महादशा के दौरान व्यक्ति जो काम करता है अगली महादशा में उस काम में बदलाव आते हैं। इस तरह समय सदा एक सा नहीं रहता यह कहावत सत्य प्रतीत होती है। यदि महादशा का ग्रह यदि कोई पाप ग्रह है तो अशुभ घटनाएं और शुभ ग्रह है तो मांगलिक कार्य जीवन में सम्पन्न होते हैं । इसी तरह अशुभ ग्रह की महादशा में अशुभ ग्रह की अन्तर्दशा आने पर समय भी कठिनता से गुजरता है । केवल एक समय सारिणी यह बताती है कि कोई घटना कब होगी। आपके जीवन के प्रारम्भ से लेकरएक सौ बीस वर्ष तक चलने वाली महादशा में आप अपने भूत काल की तारीखों और
जीवन की घटनाओं का अवलोकन करने के बाद यह पता लगा सकते हैं कि कब क्या किस ग्रह के कारण हुआ था और इसी तरह भविष में कब क्या होगा इसका एक मोटा अनुमान लगा सकते हैं।हर ज्योतिषी इसी सारिणी की मदद से आपके भविष्य में होने वाली घटनाओं का पता लगाता है
इसीलिए इस सारिणी को इतना महत्व दिया गया है।for more information call or whatsapp+9198726 65620
ग्रहों की महादशा का वर्णन कुंडली में विंशोतरी दशा के कालम में लिखी गई होती है। इसमें तिथी, महीना व वर्ष का पूरा वर्णन किया गया होता है। कब किस ग्रह की महादशा शुरू होनी है और किस समय तक रहनी है और महादशा के तहत अंतर महादशा किस ग्रह की चलनी है सब लिखा गया होता है। जब भी किसी ग्रह की महादशा शुरु होती है तो जातक के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। कुछ लोगों की शादी महादशा शुरू होने पर होती है। कुछ लोगों के बच्चे महादशा के शुरुआत में होते हैं, कुछ लोगों की नौकरी लगती है या तरक्की नई महादशा में होती है, कुछ लोग विदेश नई महादशा में जाते हैं, कुछ लोग विदेश से वापिस आते हैं ,कुछ लोगों का नाम होता है कुछ लोग बदनाम भी होते हैं। ग्रहों की महादशा में जो भी होता है वह महत्वपूर्ण होता है। विंशोत्तरी महादशा के आधार पर अपनी कुंडली स्वयं देख सकते हैं। कुंडली में एक ग्रहों की समय सारिणी होती है जिसमे लिखा रहता है कि कौन सा ग्रह कब तक आप के जीवन में प्रभावी रहेगा। ग्रहों का मुख्य प्रभाव काल महादशा और उसके बाद अन्तर्दशा फिर प्रत्यंतर दशा कहलाता है। हर ग्रह की अपनी अवधि अपना समय होता है जिसके अंतर्गत जातक का जीवन चलता है। क्रमानुसार ग्रहों की दशा और प्रभाव काल इस प्रकार है ।
सूर्य 6 वर्ष, चन्द्र 10 वर्ष, मंगल 7 वर्ष, राहू 18 वर्ष, गुरु 16 वर्ष, शनि 19 वर्ष, बुध 17 वर्ष, केतु 7 वर्ष, शुक्र 20 वर्ष 7
महादशा में अन्तर्दशा
यह सारिणी विंशोत्तरी महादशा के नाम से कुंडली में दी होती है। महादशा के समय की 7 महादशा सबसे कम सूर्य की 6 वर्ष होती है। शुक्र की महादशा 20 वर्ष चलती है। महादशा किसी भी ग्रह की हो परन्तु जब भी समाप्त होती है तब आपके जीवन में बड़े बदलाव आते हैं। महादशा का समाप्ति काल हमेशा कुछ न कुछ देकर जाता है। महादशा के अंत में कोई न कोई उपलब्धि आपको जीवन में अवश्य होगी। कोई ग्रह चाहे उच्च का हो या नीच का, मित्र राशि में हो या शत्रु राशि में अपनी राशि में हो या अस्त अशुभ हो या शुभ अपनी महादशा के
समय में पूरी तरह से बुरा या अच्छा फल नहीं देता। एक ही ग्रह एक ही समय में शुभ और अशुभ दोनों तरह के फल दे सकता है इसका कारण यह है कि महादशा में अन्य ग्रहों की भी दशा होती है जिसे अन्तर्दशा कहा जाता है। जिस ग्रह की महादशा होती है उस ग्रह के समय में अन्य सभी ग्रहों की अन्तर्दशा चलती है।
इस तरह प्रत्येक ग्रह का प्रभाव जातक पर पड़ता है महादशा के दौरान व्यक्ति जो काम करता है अगली महादशा में उस काम में बदलाव आते हैं। इस तरह समय सदा एक सा नहीं रहता यह कहावत सत्य प्रतीत होती है। यदि महादशा का ग्रह यदि कोई पाप ग्रह है तो अशुभ घटनाएं और शुभ ग्रह है तो मांगलिक कार्य जीवन में सम्पन्न होते हैं । इसी तरह अशुभ ग्रह की महादशा में अशुभ ग्रह की अन्तर्दशा आने पर समय भी कठिनता से गुजरता है । केवल एक समय सारिणी यह बताती है कि कोई घटना कब होगी। आपके जीवन के प्रारम्भ से लेकरएक सौ बीस वर्ष तक चलने वाली महादशा में आप अपने भूत काल की तारीखों और
जीवन की घटनाओं का अवलोकन करने के बाद यह पता लगा सकते हैं कि कब क्या किस ग्रह के कारण हुआ था और इसी तरह भविष में कब क्या होगा इसका एक मोटा अनुमान लगा सकते हैं।हर ज्योतिषी इसी सारिणी की मदद से आपके भविष्य में होने वाली घटनाओं का पता लगाता है
इसीलिए इस सारिणी को इतना महत्व दिया गया है।for more information call or whatsapp+9198726 65620
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