वर्ण किस तरह बने-एक दृष्टिकोण
वर्ण किस तरह बने-एक दृष्टिकोण
समय व परिस्थितियां हजारों साल पहले की हैं। उस जब समाज का अवलोकन किया गया तो समाज मूलत चार भागों में बंटा हुआ था। शिक्षक वर्ग, व्यापारी, सैन्य व श्रमिक वर्ग। ये वर्ग इनका विवरण होने से पहले ही समाज में अपना योगदान डाल रहे थे। जब इनको ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शुद्र के नाम दिए गए तो ये लोग पहले से समाज में काम कर रहे थे। अर्थात ऐसा नहीं हुआ कि कुछ लोगों को पकड़ कर जबरन शिक्षक बना दिया, क्षत्रिय वैश्य शुद्र बना दिया। कहने का मतलब यह है कि जो- जो काम कर रहे थे उन्हें सिर्फ नाम से सम्बोधित ही किया गया। पूरे भारत वर्ष में या कह लो पूरे विश्व में जो लोग शिक्षक थे उन्हें ब्राह्मण, जो सैनिक थे उन्हें क्षत्रिय का नाम दे दिया गया। काम ये तो कर ही रहे थे। अब ब्राह्मणों (शिक्षकों) के लिए यह नियम बना कि ये लोग धन संचय नहीं कर सकते और हथियार नहीं रख सकते। इनका काम सिर्फ समाज को शिक्षा प्रदान करना था। ये लोग किसी भी जाति के हो सकते थे। इसके बाद क्षत्रिय को हथियार रखने की इजाजत थी लेकिन वे शिक्षक के कार्य से दूर थे। इसी प्रकार वैश्य का काम व्यापार करना था और वह शिक्षक व क्षत्रिय नहीं हो सकता था। इसी प्रकार नियम श्रमिकों के लिए थे। ये सभी आपस में एक दूसरे का सहयोग तो कर सकते थे लेकिन एक दूसरे के कामों में दखलअंदाजी नहीं कर सकते थे। शिक्षक के पास यदि राजनीतिक शक्ति आ जाती है तो वह शिक्षक नहीं रह सकता। इसी प्रकार का नियम सभी के लिए था। ये नियम अदृश्य रुप से आज के समाज पर ही लागू होते हैं। हर कोई डाक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं हो सकता। इसके लिए उन्हें कड़े नियमों से गुजरना पड़ता है। हर वर्ण अपना गुजर बसर कर रहा था और समाज की सेवा कर रहा था। जो ब्राह्मण के नियमों का पालन करता वह ब्राहमण यानि शिक्षक हो जाता। कर्ण सूद पुत्र होने पर भी क्षत्रिय बना,महॢष वेद व्यास जी मछुआरिन के पुत्र होने पर भी ब्राह्मण बने और महाभारत महाकाव्य लिख डाला। सप्त ऋषि, 64 योगिनियां आदि अपने तप से उच्चता को प्राप्त हुए। ऐसी हजारों ही उदाहरणें हैं। कालांतर में भेदभाव जैसी बुराइयां आ गईं और जाति शब्द को एक राजनीतिक टूल के तौर पर प्रयोग किया जाने लगा। आज तथाकथित कुछ दलितों के मनों में इतनी नफरत भर दी गई है, वे समझते हैं कि ये नफरत करना सिर्फ उनका ही अधिकार हो गया। उन्हें दलितों की गौरव गाथा के बारे में बताया ही नहीं जाता कि किस तरह भव्य मंदिरों को बनाने वाले, दुनिया में सबसे बढिय़ा रेशम बनाने वाले, ङ्क्षजक की मदद से सेनाओं के लिए दुनिया के सबसे बढिय़ा हथियार बनाने वाले, नौकाओं से लेकर जहाज बनाने वाले समय देश के अमीरों में शुमार वे लोग इनके ही तो पूर्वज थे। मौर्य वंश की स्थापना करने वाला चंद्रगुप्त एक आदिवासी था, राजा नंद आदिवासी था। इतनी महान शौर्य गाथाएं कि ग्रंथ छोटेे पड़ जाएं। इन गौरव गाथाओं के बारे में लिखने से किसी को राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला और न ही कोई इच्छुकइन बातों को सुनने वाला। इन गौरव गाथाओं को सुनने से गर्व होगा और अपने को हीन समझने वालों को पता चलेगा कि उनके पूर्वज कितने महान थे।please share it. we need your help. www.bhrigupandit.com
समय व परिस्थितियां हजारों साल पहले की हैं। उस जब समाज का अवलोकन किया गया तो समाज मूलत चार भागों में बंटा हुआ था। शिक्षक वर्ग, व्यापारी, सैन्य व श्रमिक वर्ग। ये वर्ग इनका विवरण होने से पहले ही समाज में अपना योगदान डाल रहे थे। जब इनको ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शुद्र के नाम दिए गए तो ये लोग पहले से समाज में काम कर रहे थे। अर्थात ऐसा नहीं हुआ कि कुछ लोगों को पकड़ कर जबरन शिक्षक बना दिया, क्षत्रिय वैश्य शुद्र बना दिया। कहने का मतलब यह है कि जो- जो काम कर रहे थे उन्हें सिर्फ नाम से सम्बोधित ही किया गया। पूरे भारत वर्ष में या कह लो पूरे विश्व में जो लोग शिक्षक थे उन्हें ब्राह्मण, जो सैनिक थे उन्हें क्षत्रिय का नाम दे दिया गया। काम ये तो कर ही रहे थे। अब ब्राह्मणों (शिक्षकों) के लिए यह नियम बना कि ये लोग धन संचय नहीं कर सकते और हथियार नहीं रख सकते। इनका काम सिर्फ समाज को शिक्षा प्रदान करना था। ये लोग किसी भी जाति के हो सकते थे। इसके बाद क्षत्रिय को हथियार रखने की इजाजत थी लेकिन वे शिक्षक के कार्य से दूर थे। इसी प्रकार वैश्य का काम व्यापार करना था और वह शिक्षक व क्षत्रिय नहीं हो सकता था। इसी प्रकार नियम श्रमिकों के लिए थे। ये सभी आपस में एक दूसरे का सहयोग तो कर सकते थे लेकिन एक दूसरे के कामों में दखलअंदाजी नहीं कर सकते थे। शिक्षक के पास यदि राजनीतिक शक्ति आ जाती है तो वह शिक्षक नहीं रह सकता। इसी प्रकार का नियम सभी के लिए था। ये नियम अदृश्य रुप से आज के समाज पर ही लागू होते हैं। हर कोई डाक्टर, इंजीनियर, वकील नहीं हो सकता। इसके लिए उन्हें कड़े नियमों से गुजरना पड़ता है। हर वर्ण अपना गुजर बसर कर रहा था और समाज की सेवा कर रहा था। जो ब्राह्मण के नियमों का पालन करता वह ब्राहमण यानि शिक्षक हो जाता। कर्ण सूद पुत्र होने पर भी क्षत्रिय बना,महॢष वेद व्यास जी मछुआरिन के पुत्र होने पर भी ब्राह्मण बने और महाभारत महाकाव्य लिख डाला। सप्त ऋषि, 64 योगिनियां आदि अपने तप से उच्चता को प्राप्त हुए। ऐसी हजारों ही उदाहरणें हैं। कालांतर में भेदभाव जैसी बुराइयां आ गईं और जाति शब्द को एक राजनीतिक टूल के तौर पर प्रयोग किया जाने लगा। आज तथाकथित कुछ दलितों के मनों में इतनी नफरत भर दी गई है, वे समझते हैं कि ये नफरत करना सिर्फ उनका ही अधिकार हो गया। उन्हें दलितों की गौरव गाथा के बारे में बताया ही नहीं जाता कि किस तरह भव्य मंदिरों को बनाने वाले, दुनिया में सबसे बढिय़ा रेशम बनाने वाले, ङ्क्षजक की मदद से सेनाओं के लिए दुनिया के सबसे बढिय़ा हथियार बनाने वाले, नौकाओं से लेकर जहाज बनाने वाले समय देश के अमीरों में शुमार वे लोग इनके ही तो पूर्वज थे। मौर्य वंश की स्थापना करने वाला चंद्रगुप्त एक आदिवासी था, राजा नंद आदिवासी था। इतनी महान शौर्य गाथाएं कि ग्रंथ छोटेे पड़ जाएं। इन गौरव गाथाओं के बारे में लिखने से किसी को राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला और न ही कोई इच्छुकइन बातों को सुनने वाला। इन गौरव गाथाओं को सुनने से गर्व होगा और अपने को हीन समझने वालों को पता चलेगा कि उनके पूर्वज कितने महान थे।please share it. we need your help. www.bhrigupandit.com
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