महाभारत में राजा पांडु ने कैसे किया रानी कुंती का सम्मान
महाभारत में राजा पांडु ने कैसे किया रानी कुंती का सम्मान
ऱाजा पंाडू अपनी 2 पत्नियों रानी कुंती व रानी माद्री के साथ वन में चले जाते हैं। पांडु को श्राप मिला था कि यदि वह प्रेम वश किसी स्त्री को छुएगा तो उसी समय मर जाएगा। दोनों पत्नियां इसका पूरा ध्यान रखती। अब राजा पांडु संतान के अभिलाषी थे क्योंकि इतना बड़ा साम्राज्य चलाने के लिए संतान की आवश्कता थी।
राजा पांडु संतान पैदा करने में अक्षम थे। अब क्या किया जाए कि संतान हो और जो बड़ा होकर शासन चलाए। यह घटना हजारों साल पहले घटी। देखिए इसमें नारि की भावनाओं का कैसे ध्यान रखा गया।
आज कल आपने कई दम्पति देखे होंगे जो संतान की खातिर दर-दर भटकते हैं। कोई डाक्टर, हकीम,संत आदि नहीं छोड़ते कि संतान हो जाए। जब पत्नी में कोई कमी या पति में कई साल उपचार आदि में व्यतीत कर देते हैं। सास व अन्य परिजन महिला को ही दोष देते हैं। पति में कमी होने पर उसे कोई दोष नहीं देता। कुछ समझदार लोग बच्चा गोद ले लेते हैं और उसका लालन-पालन करते हैं। कुछ दम्पति बिना संतान के ही जीवन व्यतीत कर देते हैं। कुछ केसों पति दूसरी शादी कर लेता है। इस प्रकार जीवन चक्र चलता रहता है।
यहां महाभारत में भी ऐसा ही मामला है। लेकिन रानी कुंती में साहस है अपनी बात पति को पास रखने का। वह अपने पति की पीड़ा को समझती है। पति को कहती है कि उसके पास वरदान है कि वह मंत्र शक्ति से देवाताओं का आह्वान कर गर्भाधान कर सकती है। यदि यही बात आज हजारों साल ऐसी ही स्थिति में एक पत्नी अपने पति को यही बात कह दे तो क्या उसकी जान बख्स दी जाएगी? बात अरब देशों में होगी तो उसे पत्थर मार कर मार दिया जाएगा। लेकिन रानी कुंती की बात राजा पांडु बहुत ही ध्यान
से सुनते हैं। उसकी बात का सम्मान करते हैं। कहते हैं -हे कुंती आप महान नारी हैं, आप ही मुझे संतान सुख दे सकती हैं। मैं आपका ऋणि रहूंगा। आपकी कृपा होगी तो सब ठीक हो जाएगा,मैं पिता बन जाऊंगा आप माता। आप देरी न करें ,आप मुझे संतान का सुख दें। रानी कुंती पति की आज्ञा मिलने पर संतानों को जन्म देती है।
रानी माद्री भी कुंती की मदद से माता बन जाती हैं।
अब पूरे महाभारत में पांडव पांडु व कुंती पुत्रों के नाम से सम्बोधित किए गए। आज यदि ऐसा हो भी जाए तो समाज का दृष्टिीकोण ऐसा है कि वह इसे कभी मान्यता नहीं देगा। बड़े-बड़े नीतियां बनाने वाले नेता, जज आदि इससे पीछे हट जाएंगे। हजारों साल पहले हमारा समाज कितनी खुली सोच रखता था। इससे यह तो प्रमाणित हो जाता है। कुंती माद्री के पुत्रों को अपने पुत्रों से भी ज्यादा प्यार देती है। आपस में भाईयों का भी इतना प्यार कि एक दूसरे के लिए जान देने को तैयार।
अब इस घटना को एक अलग दृष्किोण से परखा जाता है। पांडु व कुंती के आपसी सहमती से लिए निर्णय पर भी कुछ लोगों को आपत्ति है। वे इसको पूरे समाज पर थोपने का
अधिकार जताते हैं।
एक विरोधी कहता है कि देखो आपके महाभारत में कैसा लिखा है। जब उसे समझाया जाता है कि यह इन ब्रीङ्क्षडग (अपने सगे रिश्तेदारों से संबंध बनाना व शादी करना)
जैसी आम प्रथा नहीं है। यह सारे हिंदुओं पर बनाया गया कोई नियम नहीं है। यह एक बहुत ही दुर्लभ मामला है और एक दम्पति के बीच सहर्श लिया गया फैसला और वह भी हजारों
साल पहले।
ऱाजा पंाडू अपनी 2 पत्नियों रानी कुंती व रानी माद्री के साथ वन में चले जाते हैं। पांडु को श्राप मिला था कि यदि वह प्रेम वश किसी स्त्री को छुएगा तो उसी समय मर जाएगा। दोनों पत्नियां इसका पूरा ध्यान रखती। अब राजा पांडु संतान के अभिलाषी थे क्योंकि इतना बड़ा साम्राज्य चलाने के लिए संतान की आवश्कता थी।
राजा पांडु संतान पैदा करने में अक्षम थे। अब क्या किया जाए कि संतान हो और जो बड़ा होकर शासन चलाए। यह घटना हजारों साल पहले घटी। देखिए इसमें नारि की भावनाओं का कैसे ध्यान रखा गया।
आज कल आपने कई दम्पति देखे होंगे जो संतान की खातिर दर-दर भटकते हैं। कोई डाक्टर, हकीम,संत आदि नहीं छोड़ते कि संतान हो जाए। जब पत्नी में कोई कमी या पति में कई साल उपचार आदि में व्यतीत कर देते हैं। सास व अन्य परिजन महिला को ही दोष देते हैं। पति में कमी होने पर उसे कोई दोष नहीं देता। कुछ समझदार लोग बच्चा गोद ले लेते हैं और उसका लालन-पालन करते हैं। कुछ दम्पति बिना संतान के ही जीवन व्यतीत कर देते हैं। कुछ केसों पति दूसरी शादी कर लेता है। इस प्रकार जीवन चक्र चलता रहता है।
यहां महाभारत में भी ऐसा ही मामला है। लेकिन रानी कुंती में साहस है अपनी बात पति को पास रखने का। वह अपने पति की पीड़ा को समझती है। पति को कहती है कि उसके पास वरदान है कि वह मंत्र शक्ति से देवाताओं का आह्वान कर गर्भाधान कर सकती है। यदि यही बात आज हजारों साल ऐसी ही स्थिति में एक पत्नी अपने पति को यही बात कह दे तो क्या उसकी जान बख्स दी जाएगी? बात अरब देशों में होगी तो उसे पत्थर मार कर मार दिया जाएगा। लेकिन रानी कुंती की बात राजा पांडु बहुत ही ध्यान
से सुनते हैं। उसकी बात का सम्मान करते हैं। कहते हैं -हे कुंती आप महान नारी हैं, आप ही मुझे संतान सुख दे सकती हैं। मैं आपका ऋणि रहूंगा। आपकी कृपा होगी तो सब ठीक हो जाएगा,मैं पिता बन जाऊंगा आप माता। आप देरी न करें ,आप मुझे संतान का सुख दें। रानी कुंती पति की आज्ञा मिलने पर संतानों को जन्म देती है।
रानी माद्री भी कुंती की मदद से माता बन जाती हैं।
अब पूरे महाभारत में पांडव पांडु व कुंती पुत्रों के नाम से सम्बोधित किए गए। आज यदि ऐसा हो भी जाए तो समाज का दृष्टिीकोण ऐसा है कि वह इसे कभी मान्यता नहीं देगा। बड़े-बड़े नीतियां बनाने वाले नेता, जज आदि इससे पीछे हट जाएंगे। हजारों साल पहले हमारा समाज कितनी खुली सोच रखता था। इससे यह तो प्रमाणित हो जाता है। कुंती माद्री के पुत्रों को अपने पुत्रों से भी ज्यादा प्यार देती है। आपस में भाईयों का भी इतना प्यार कि एक दूसरे के लिए जान देने को तैयार।
अब इस घटना को एक अलग दृष्किोण से परखा जाता है। पांडु व कुंती के आपसी सहमती से लिए निर्णय पर भी कुछ लोगों को आपत्ति है। वे इसको पूरे समाज पर थोपने का
अधिकार जताते हैं।
एक विरोधी कहता है कि देखो आपके महाभारत में कैसा लिखा है। जब उसे समझाया जाता है कि यह इन ब्रीङ्क्षडग (अपने सगे रिश्तेदारों से संबंध बनाना व शादी करना)
जैसी आम प्रथा नहीं है। यह सारे हिंदुओं पर बनाया गया कोई नियम नहीं है। यह एक बहुत ही दुर्लभ मामला है और एक दम्पति के बीच सहर्श लिया गया फैसला और वह भी हजारों
साल पहले।
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