मीडिया में खबरें किस तरह राजनीतिक हथियार की तरह प्रयोग की जाती हैं
मीडिया में खबरें किस तरह राजनीतिक हथियार की तरह प्रयोग की जाती हैंwww.bhrigupandit.com
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आम नागरिकों, पुलिस, सेना के जवानों व राजनेताओं ुप विगत कुछ
वर्षों में भयंकर हमले हुए और कई निर्दोष लोग मारे गए। मीडिया में हैडलाइन साथ खबरें लगी
नक्सली हमले में इतने लोग मारे गए, फिर अंदर सभी खबरों में एक जैसा विवरण 2 चार लाइनें
किसी ने ज्यादा व कम जरूर लिख दी होंगी लेकिन तस्वीरें खबरें लगभग एक जैसी।
बस्तर इलाके में गए विशेष प्रतिनिधी ने जब सच्चाई जानी तो उनके पैरों के तले जमीन निकल गई।
मरने वालों निर्दोष लोगों के पेट फाड़ दिए गए थे, जिगर व दिल आदि निकाल कर नक्सलियों
ने शराब पी उनके अंगों का भक्षण किया और वहां पुलिस व मीडिया के पहुंचनेसे पहले कई
घंटों तक नाच किया। लेकिन यह सच्चाई आम जनता तक नहीं पहुंचाई गई। खबरों को फिल्टर कर
दिया गया।
अब नोटबंदी के दौरान मीडिया ने इन खबरों को ऐसा फैलाया कि जैसे देश में पाकिस्तान के साथ
परमाणु युद्ध लग गया हो। अमीर लोगों ने कैसे अपनी काली कमाई को अपने नौकरों के जरिए
बैंकों में जामा करवाया यह खबर कहीं भी नहीं लगाई गई। ऐसे 24 घंटे कार्यक्रम चलाया गया
जैसे सरकार ने लोगों पर कोई अटैक कर दिया हो। सुधार लाने के लिए कई कड़े कदम सरकारों को
उठाने पड़ते हैं.जनता को कुछ समय तकलीफ तो होती है लेकिन धीरे-धीरे माहौल सामान्य हो जाते
हैं। इसी प्रकार अन्य मामलों की भी उदाहरण ली जा सकती है।
अब आपने गौर किया होगा कि मीडिया में हिन्दू संतों के खिलाफ खबरें छपने की एकतरफा बाड़
सी आ गई है। ये खबरें करोड़ों की आबादी को यह दिखाने के लिए बार-बार प्रसारित की जाती
हैं ताकि उनका अपने संतों व धर्म से विश्वास उठ जाए। दूसरी अन्य धर्मों के गुरु व प्रधान क्या
करते उन खबरों को कूड़े में फैंक दिया जाता। एक वर्ग विशेष के लिए सिलैक्टिव नीति अपनाई
जाती है। हम यह नहीं कहते कि खबरें झूठी होंगी लेकिन जिस तरह से 24 घंटों महीना-महीना ये
खबरें दिखाई जाती हैं। इनका यही उद्देश्य होता है कि उस संत या विशेष व्यकित की इतनी बदनामी कर
दो कि लोग धर्म से किनारा करने लगें। यही शंकाराचायज्ञ ज्ञानेन्द्र सरस्वती व स्वामी नित्यानंद
के साथ हुआ। ये लोग आप ही पुलिस, आप ही अदालत व जज
बनकर फैसला दे
देते हैं। जब यह मीडिया वाले चीख-चीख कर एक ही बात बार-बार कहते हैं तो लोग अपनी
धारणा उनके अनुसार बना लेते हैं। जब स्वामी नित्यानंद व शंकराचार्य ज्ञानेन्द्र सरस्वती अदालत
से बरी होते हैं तो एक मिनट के लिए ये खबरें नहीं चलाई जाती। अब पाठकों व दर्शकों को
पक्के होना होगा कि इन पर अंधों की तरह विश्वास न करें और समझे कि इनकी मुल मंशा क्या है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आम नागरिकों, पुलिस, सेना के जवानों व राजनेताओं ुप विगत कुछ
वर्षों में भयंकर हमले हुए और कई निर्दोष लोग मारे गए। मीडिया में हैडलाइन साथ खबरें लगी
नक्सली हमले में इतने लोग मारे गए, फिर अंदर सभी खबरों में एक जैसा विवरण 2 चार लाइनें
किसी ने ज्यादा व कम जरूर लिख दी होंगी लेकिन तस्वीरें खबरें लगभग एक जैसी।
बस्तर इलाके में गए विशेष प्रतिनिधी ने जब सच्चाई जानी तो उनके पैरों के तले जमीन निकल गई।
मरने वालों निर्दोष लोगों के पेट फाड़ दिए गए थे, जिगर व दिल आदि निकाल कर नक्सलियों
ने शराब पी उनके अंगों का भक्षण किया और वहां पुलिस व मीडिया के पहुंचनेसे पहले कई
घंटों तक नाच किया। लेकिन यह सच्चाई आम जनता तक नहीं पहुंचाई गई। खबरों को फिल्टर कर
दिया गया।
अब नोटबंदी के दौरान मीडिया ने इन खबरों को ऐसा फैलाया कि जैसे देश में पाकिस्तान के साथ
परमाणु युद्ध लग गया हो। अमीर लोगों ने कैसे अपनी काली कमाई को अपने नौकरों के जरिए
बैंकों में जामा करवाया यह खबर कहीं भी नहीं लगाई गई। ऐसे 24 घंटे कार्यक्रम चलाया गया
जैसे सरकार ने लोगों पर कोई अटैक कर दिया हो। सुधार लाने के लिए कई कड़े कदम सरकारों को
उठाने पड़ते हैं.जनता को कुछ समय तकलीफ तो होती है लेकिन धीरे-धीरे माहौल सामान्य हो जाते
हैं। इसी प्रकार अन्य मामलों की भी उदाहरण ली जा सकती है।
अब आपने गौर किया होगा कि मीडिया में हिन्दू संतों के खिलाफ खबरें छपने की एकतरफा बाड़
सी आ गई है। ये खबरें करोड़ों की आबादी को यह दिखाने के लिए बार-बार प्रसारित की जाती
हैं ताकि उनका अपने संतों व धर्म से विश्वास उठ जाए। दूसरी अन्य धर्मों के गुरु व प्रधान क्या
करते उन खबरों को कूड़े में फैंक दिया जाता। एक वर्ग विशेष के लिए सिलैक्टिव नीति अपनाई
जाती है। हम यह नहीं कहते कि खबरें झूठी होंगी लेकिन जिस तरह से 24 घंटों महीना-महीना ये
खबरें दिखाई जाती हैं। इनका यही उद्देश्य होता है कि उस संत या विशेष व्यकित की इतनी बदनामी कर
दो कि लोग धर्म से किनारा करने लगें। यही शंकाराचायज्ञ ज्ञानेन्द्र सरस्वती व स्वामी नित्यानंद
के साथ हुआ। ये लोग आप ही पुलिस, आप ही अदालत व जज
बनकर फैसला दे
देते हैं। जब यह मीडिया वाले चीख-चीख कर एक ही बात बार-बार कहते हैं तो लोग अपनी
धारणा उनके अनुसार बना लेते हैं। जब स्वामी नित्यानंद व शंकराचार्य ज्ञानेन्द्र सरस्वती अदालत
से बरी होते हैं तो एक मिनट के लिए ये खबरें नहीं चलाई जाती। अब पाठकों व दर्शकों को
पक्के होना होगा कि इन पर अंधों की तरह विश्वास न करें और समझे कि इनकी मुल मंशा क्या है।
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