काल्पनिकता की उड़ान व मानवीय मनोविज्ञान
काल्पनिकता की उड़ान व मानवीय मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार में हर तरह के रस शामिल हैं। भाव, श्रृंगार,वात्सल्य, रौद्र आदि रसों को लेकर ही वह जीवन जीता है। वह अपनी कल्पना शक्ति को इतना विस्तारित करता है कि उसी में रम जाता है। जब इंसान ने पक्षियों को आकास मे उड़ता देखा तो उसने भी स्वप्न में उड़ना शुरु कर दिया। उसकी रचनाओं में पक्षियों आदि जीवों का नाम आने लगा। कुछ ऐसे जीवों की भी रचना हुई जो आधे मानव थे और आधे पशु या पक्षी। जीवों से मानव का इतना घनिष्ट रिश्ता था कि ये अब साहित्य में नजर आता था। यहां तक कि ये जीव बातें भी करते और सामान्य जीवन भी जीते। इतना ही नही पेड़ों को भी शामिल किया गया और पेड़ों को मानव की तरह ही जीवन जीते दिखाया गया। लोक कथाओं में सियार,भालू, बंदर आदि जीवों से बेटियों का विवाह करने व उन्हें दामाद के रूप में अपनाया गया। इन्ही जीवों पेड़ों को अपने ईष्ट व देवों के रूप में भी पूजा गया। किसी पात्र को लेकर उसके आसपास ही सारा कथानक बुना गया। इस कथानक में प्राचीन काल के राजीनितिक, धार्मिक व समाजिक इतिहास को इतने रोचक तरीके से कहा गया कि इन्हें समझने के लिए गूढ़ समझ की जर...