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Showing posts from August, 2020

शंकराचार्य ने किस तरह सनातन धर्म को बचाया?

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शंकराचार्य ने किस तरह सनातन धर्म को बचाया? शंकरार्चाय का जन्म उस समय हुआ जब चर्वाक, बौध धर्म अपने पूरे उत्थान पर था। हर तरफ बौध धर्म का प्रचार हो रहा था और उसे बौध राजाओं का संरक्षण प्राप्त था। गुरुकुल खत्म होते जा रहे थे। वैदिक सनातनी परम्परा भी लुप्त हो रही थी। इस समय दौरान एक बच्चे ने मन में ठाना कि वह अपने धर्म की रक्षा करूंगा व सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोऊंगा। शंकराचार्य के सामने विकल्प थे कि वे या तो चवार्कों जो उस समय के वामपंथी थे जो वैदिक सनातन परम्परा के घोर विरोधी थे और इसके हर पक्ष को रिजैक्ट करते थे, के साथ मोर्चे में डट जाते या फिर बौधों के समक्ष मोर्चा लगाते।  बौधों की संख्या बहुत थी और वे शक्तिशाली भी थे। शंकरा को पता था कि यदि वह अगल-अलग मोर्चों पर लड़ेंगे तो शायद उनकी जीत न हो पाए। उच्च वर्ग के लोग बौध धर्म अपना चुके थे।  एक अकेले बालक को पहाड़ से लड़ना था। उसने पैदल अपनी यात्राएं शुरु कीं और गांव-गांव सनातन वैदिक धर्म की पताका थाम कर प्रचार करने लगे।  अपने पक्ष को निडरता से सामने रखते और विरोधियों का पूर्वपक्ष जानकर उन्हें हरा देते। उन्होंने समस्त सनातन पद्तियो

क्या करोना जैसा वायरस देसी दवाइयों से ठीक हो सकता है ?

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  क्या करोना जैसा वायरस देसी दवाइयों से ठीक हो सकता है? नहीं,करोना जैसा वायरस देसी दवाइयों से ठीक नहीं हो सकता। यदि कोई दावा करता है कि करोना देसी दवाइयों से ठीक हो जाता है तो वह केवल झूठ ही बोल रहा है। यदि कोई कहे कि कुत्ते के काटने से रैबीज वायरस को देसी दवाइयों से ठीक किया जा सकता है तो यह सरासर गलत होगा। डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, टी.बी. जैसे रोग देसी दवाइयों से ठीक नहीं हो सकते क्योंकि इनके लिए एंटीबायोटिक दवाइयां ही आखिरी उपाय है। करोना का भी इलाज एंटीबाइयोटिक दवाई ही है जो इस वायरस को खत्म कर सकती है।  हां, होम्यिोपैथी व आयुर्वैदिक दवाइयों का प्रयोग शरीर मे ताकत व विषाणु प्रतिरोधक शक्ति पैदा करने के लिए किया जा सकता है ताकि रोग के आक्रमण को निरस्त किया जा सके। दावे करने वाले दावे करते रहते हैं लेकिन जीव व विषाणु वैज्ञानिक इसका हल निकालने में लगे हुए हैं।  वैक्सीन तैयार कर लिया है, जल्द ही सभी देशों को यह वैक्सीन उपलब्ध होगा और करोना का हल निकाल लिया जाएगा।   भारत ने वैक्सीन बना लिए हैं और ये लोगों को अब उपलब्ध हैं। अमेरिका, चीन व रूस ने भी अपनी वैक्सीन बना लिए हैं।  करोना की दवाई
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ईश्वर को मानव ने कैसे चालाकियों से प्रयोग किया

 ईश्वर को मानव ने कैसे चालाकियों से प्रयोग किया ईश्वर के बारे में कई नजरिए हो सकते हैं। भारतीय धार्मिक परम्पराओं में ईश्वर है और ईश्वर नहीं है। ये दो विचार प्राचीन काल से चलते आ रहे हैं। इसके साथ-साथ यह भी चल रहा था कि हमारा ईश्वर व उनका ईश्वर, इस कथन में कोई विरोधाभास नहीं। हमारी पूजा पद्धति व उनकी पूजा पद्धति इसमें भी कोई विराधाभास नहीं। मेरा ईश्वर व तुम्हारा ईश्वर इसमें भी कोई विरोधाभास नहीं। हर कोई अपने-अपने ईश्वर की अराधना अपने तरीके से करता आ रहा है।  इसी दौरान एब्राहमिक रीलीजन भी दूर अरब देशों में पैदा हो रहे थे। पहले यहूदी रिलीजन में गॉड आया और वह किसी स्थान से अपने अनुयायीयों को आदेश देता है कि जो भी जैनटाईल हैं उनसबका कत्ल कर दो क्योंकि ये लोग उसे नहीं मानते किसी अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। सारे जेनटाइट बच्चे, बूढ़े,महिलाएं, जवान आदि इस सनक के कारण नरसंहार की भेंट चढ़ गए। ईश्वर एक है और वह है यहूदियों का। इसके इलावा कोई ईश्वर नहीं क्योंकि पवित्र ग्रंथ टोरा में ऐसा लिखा है। इसके बाद ईसाईयों में एक और व्याख्या सामने आई और वह थी कि ईश्वर एक ही है और दूसरे भगवानों की पूजा

माइंडसैट क्या है और कैसे तैयार किया जाता है?

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  माइंडसैट क्या है और  कैसे तैयार किया जाता है इंसान अपनी विचारधारा, संस्कृति, पहरावा, भाषा, क्षेत्र आदि से किसी भी समय शिफ्ट हो सकता है और किसी दूसरी संस्कृति की तरफ जा सकता है। उसे ऐसा करवाने के लिए कुछ टूल्स की आवश्यकता पड़ती है। पहले तो उसके दिमाग में बार बार भरा जाता है, फिर दिखाया जाता है और इसके बाद जब उसका शरीर पढ़ाए गए के अनुसार रिएक्ट करने लगता है तो उसे तुरंत शिफ्ट करवा दिया जाता है। इसमें हिंसा, हीनता, घृणा, लालच से भी काम लिया जाता है। आतंकी एक हिंसा वाली प्रवृति की तरफ अग्रसर हैं क्योंकि उनका माइंसैट ही वैसा बनाया गया है।  जैस एक टाइपिस्ट की उंगलियां बिना देखे अपने आप दिमाग को पढ़ कर रिएक्ट करती हैं वैसे ही एजैंडे के तरह माइंड सैट तैयार किए जाते हैं। एक मुसलमान को गाय खाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन जैसे ही उसे सू्अर का गोश्त खाने का कहा जाता है तो वह हिंसक प्रतिक्रया करता है। किसी भी काम को बार-बार करते रहने से भी माइंड सेट तैयार होता है। हिन्दुओं को बताया जाए कि गाय एक सूअर, भैंसे आदि के समान ही पशु है तो वे ऐसा कभी नहीं मानेंगे। धार्मिक ग्रंथों आदि के अपमान के आरोप

एक मंदिर हजारों लोगों को कैसे रोजगार देता है

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एक मंदिर हजारों लोगों को कैसे रोजगार देता है भारत को सोने की चिढ़िया कहा जाता था क्योंकि यह देश समृद्ध था और यहां लाखों मंदिर थे। किसी भी ग्रंथ में आपको बेरोजगारी जैसा शब्द नहीं मिलेगा क्योंकि कोई बेरोजगार था ही नहीं। हर इंसान के पास कोई न कोई काम था, जैसे ही कोई जन्म लेता था उसका रोजगार जन्म से पक्का हो जाता था। एक ऐसी सुदृढ़ व्यवस्था जो अदृश्य थी लेकिन सभी के लिए रोजगार का साधन बनती थी। आज 21 सदी में आने के बाद भी कोई भी सरकार रोजगार की गारंटी देने में असमर्थ है।  जब मंदिर बनाने का फैसला होता है को भूखंड खरीदा जाता है। फिर मजदूरों, मिस्त्रियों, पेंटर, बढ़ई, मूर्तिकार, संगमरमर पर कारिगरों, वस्त्र, आभूषण आदि से सैंकड़ों लोगों को मंदिर तैयार होने तक व मंदिर बनने के बाद पक्का रोजगार मिल जाता है। संगीतकारों को भजन गाने का काम मिलता है, संगीत वाद्य यंत्र बनाने वाले के हारमोनियम, सितार ढोलक आदि बिकते हैं, हलवाईयों का काम चलता है जो प्रसाद मिठाइयां तैयार करते हैं, पूजा का सामान बेचने वालों की दुकानें खुलती हैं, फूल बेचने वाले, उगाने वालों को पक्का रोजगार मिलता है, भगवान को दूध आदि का अभिषेक

लिबरल सैकुलर हिन्दुओं का माइंड सैट

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लिबरल सैकुलर हिन्दुओं का माइंड सैट  हमारे सैकुलर गुरु लिबरल सैकुलर हिन्दुओं का माइंडसैट अच्छी तरह से समझते हैं। ये वह वर्ग है जो कालेजों से प्रोफैशनल शिक्षा लेकर निकला है जैसे कि वकील, डाक्टर, व्यापारी आदि। इन लोगों के घरों में कोई सनातन धार्मिक ग्रंथ नहीं है और न ही इनके दादा-दादी या माता-पिता ने इनको कभी पौराणिक नायकों की कथाएं सुनाई हैं लेकिन ये परिवार धार्मिक हैं और ईश्वर में विश्वास रखते हैं। इनको संस्कृत नहीं आती लेकिन ये संस्कृत को प्रेम करते हैं। ये अंग्रेजी में प्रवीण लोग हैं।इन्होंने जो कुछ जाना टीवी या इंटरनेट से ही जाना है। ये वेदों का आदर करते हैं, गाय का सम्मान करते हैं, महादेव में विश्वास रखते हैं लेकिन इनके पास समय नहीं है कि ये किसी शास्त्र को श्रद्धा भाव से पढ़ें या उनका मनन करें। बस इस माइंड सैट को सैकुलर गुरुओं ने जाना और अपना काम शुरु किया। केवल 25 सालों में इतनी तेजी से प्रचार व प्रसार तंत्र का सहारा लेकर इन्होंने  अपनी वाकपटुता से सबको अपने खेमे में कर लिया। इस प्रकार आज इनके दुनियाभर में करोड़ों भक्त हैं। यह अपनी बात इतनी चालाकी से कह जाते हैं कि कोई भी आसानी से

कर्म का सिद्धांत पश्चिम में कैसे पहुंचा

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कर्म का सिद्धांत पश्चिम में कैसे पहुंचा भारत के लोग सदियों कर्म पर बहुत विश्वास करते हैं। अच्छा कर्म करोगे तो अच्छा होगा बुरा कर्म करोगे तो बुरा फल मिलेगा। हर इंसान को अच्छा कर्म करने के लिए संत, धर्म गुरु प्रेरित करते रहते हैं। सेवा के प्रकल्प भी चलाए जाते रहते हैं। अच्छा कर्म करेंगे तो इस जन्म व आने वाले अगले जन्म में भी इसका लाभ मिलेगा। जब कोई हिन्दू सेवा प्रकल्प करता है चाहे वह गऊओं को चारा देता है, कुत्तों व पंछियों को भोजन देता है तो उसका विश्वास होता है कि ये जीव उससे अलग नहीं हैं और इनमें आत्मा का वास है इसलिए इनकी सेवा करने से इस जन्म में तो अच्छा फल मिलेगा ही अगले जन्म में भी अच्छा फल मिलेगा। इसमें कहीं व कहीं आध्यात्मिक सुख भी जुड़ा है। हिन्दू ये सोचते हैं कि सभी जीवों, पेड़ों आदि का संरक्षण करना उनकी जिम्मेदारी है क्योंंकि उनकी प्रार्थना तभी सुनी जाएगी जब वे ये कर्म करेंगे।  पश्चिम में कर्म व पूर्वजन्म का विश्वास प्रचलित नहीं था। वहां के लोगों ने दूसरों को गुलाम बनाया, उनपर आक्रमण करके उनकी हत्याएं की, उनके प्राकृतिक स्रोतों, मानवाधिकारों का हनन किया। वे कभी नहीं सोचते थे क