हिरण्यकशिपु व प्रह्लाद - बाल उत्पीड़न व उसकी सजा
हिरण्यकशिपु व प्रह्लाद - बाल उत्पीड़न व उसकी सजा पिता शक्तिशाली राजा, पुत्र अकेला बच्चा। राजा के पास आपार धन,ऐश्वर्य व सैनिक । बालक प्रह्लाद चाहता तो वह पिता के स्नेह को पाकर राजे ऐश्वर्यों का भोग कर सकता था। लेकिन वह अपने विश्वास, अराध्य, ईष्ट को न छोड़ सका। पिता लालच देता है कि छोड़ दे अपने विश्वास, श्रद्धा को और उसे मान ले ईश्वर यानि उसकी अधीनता स्वीकार कर ले। छोड़ दे अपना परम प्रिय धर्म व उसका धर्म अपना ले क्योंकि वही अंतिम सत्य है, वही अजेय है। लेकिन बालक प्रह्लाद अपनी श्रद्धा पर दृढ़ है। फिर होता है बालक का उत्पीड़न, अत्याचारों का सिलसिला। घृणित बाल उत्पीड़न,अत्याचार....। इसके साथ ही बाल उत्पीड़न करने वाले की सजा भी तय हो गई। चाहे वह अमर, हो अजय हो लेकिन सजा तो अब मिलेगी ही। हिरण्यकशिपु न दिन में मर सकता, न रात को, न अंदर व नही बाहर, न ऊपर न नीचे, न किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से, न किसी मानव से न किसी जीव से। लेकिन उसको मारा गया सभी शर्तों के अनुसार उसका पेट फाड़ कर आंतड़िया निकाल कर। इस कथानक को कथाकार ने इतने सशक्त रूप से लिखा कि आज हजारों साल ...