मैं एक स्वर्ण - मेरी आत्म कथा
मैं एक स्वर्ण - मेरी आत्म कथा मैं आपको अपनी छोटी सी आत्मकथा के बारे में बता रहा हूं क्योंकि मैं बहुत ही द्रवित व दुखी हूं। मुझे नहीं पता कि आज से हजार साल पहले क्या हुआ था। मुझे यह भी नहीं पता कि भगवान ने पहले दलित बनाए या स्वर्ण या दलित पहले इस दुनिया में पहले आए या स्वर्ण।क्या दलित सैंकड़ों सालों से दलित ही रहे। मैं स्टेशनों के प्लेटफार्मों पर पड़े गरीब लोगों को देखकर दुखी होता हूं, ठंड, बरसात व गर्मी में बेघर लोगों बाहर सड़कों के किनारे बैठे लोगों को देखकर मेरा मन दुखी होता है। मेरे पिता जी आज से 60 साल पहले अपने गांव से शहर की तरफ काम की तलाश में भाग आए थे। यह एक ऐसा गांव है कि अभी भी यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची। इस गांव से सारे लोग पलायन कर चुके हैं। यहां उजाड़ व बिरान पड़े घर अब गिर चुके हैं। अपने चार बच्चों के साथ एक कोठरी में रहना और पिता जी का मजदूरी करना मैंने अपनी आंखों से देखा है। कैसे प्लास्टिक की चप्पल में छेद हो जाते थे और कैसे ठंड में भी उनके शरीर पर दो कपड़े होते थे। मां के पेट में जब हम थे तो उसे पूरी खुराक न मिल पाने के कारण , उसकी आंखों में पड़े गड्ढे...