वर- कन्या मिलान में वर्णादि अष्टकूटों का महत्व क्या होता है
वर- कन्या मिलान में वर्णादि अष्टकूटों का महत्व क्या होता है विवाह गृस्थाश्रम की आधारशिला है। इसी के माध्यम से मानव, देव, ऋषि एवम पितृ आदि ऋण क्रय से मुक्त होकर परम कल्याण को प्राप्त कर सकता है। उत्तम लक्षणों जैसे- सुंदर, सशीला, मधुरभाषिणी तथा पतिव्रता कन्या,जिम्मेदारी निभाने वाला, स्वस्थ, शिक्षित, सदाचारी एवम् सुसंस्कृत लड़के के साथ विवाह संबंध शुभ होता है। विवाह करने से पहले लड़के-लड़की का कुल-गोत्र,सनाथता, शिक्षा, धन, स्वास्थ्य और आयु इन सात गुणो की परीक्षा करने के बाद ही कुंडलियों में परस्पर मांगलीक तथा अरिष्ट योगों तथा वर्ग,स्त्रीदूर, कर्तरि एवम् वर्णादि अष्टकूटों का विचार करना चाहिए। मेलापक प्रक्रिया में मांगलीक व अष्टकूटों का बहुत महत्व है। वर व कन्या के दाम्पत्य जीवन को अधिकाधिक सुखी व मंगलमय बनाने के लिए उनके जन्म नक्षत्रों तथा जन्म कुंडलियों के अनुसार मिलान करना जरूरी है। उपयुक्त मिलान न होने की स्थिति में पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन ्िवचार वैमनस्य, संतान कष्ट,वैधव्य अथवा पारिवारिक कष्ट होने की सम्भावनाएं हो सकती हैं। मांगलीक दोष का भी विचार कि...